LTTE प्रमुख प्रभाकरण को जिंदा बताकर करोड़ों की वसूली कर रहे 'माफिया गिरोह', दुनिया भर के तमिलों से पैसे न देने की गुहार कर रहा भतीजा

श्रीलंका में सिंघली भाषा बोलने वाले बहुसंख्यकों के अत्याचारों से तंग आकर तमिलों ने लिट्टे के नेतृत्व में हथियार उठा लिए थे और एक नई देश की मांग कर रहे थे।

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Mafia gang extorting crores of rupees by claiming that LTTE chief Prabhakaran is alive nephew pleading Tamils ​​around the world not to give money

लिट्टे के दिवंगत प्रमुख वेलुपिल्लई प्रभाकरण (फोटो- https://commons.wikimedia.org/wiki/User:Rajasekharan_Parameswaran)

कोलंबो: लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम यानी लिट्टे (LTTE) के दिवंगत प्रमुख वेलुपिल्लई प्रभाकरण के परिवार वाले ने एक "बड़े घोटाले" का दावा किया है। परिवार का कहना है कि भारत और दुनिया के अन्य देशों में लिट्टे प्रमुख वी प्रभाकरण के जिंदा होने के दावे किए जा रहे हैं और उनके नाम पर करोड़ों के चंदे जमे किए जा रहे हैं।

प्रभाकरण के परिवार वालों ने दुनिया भर में सभी तमिलों से आग्रह करते हुए कहा है कि वे किसी झूठे दिखावे के तहत पैसा इकट्ठा करने वाले कुछ प्रवासी भारतीयों के बहकावे में न आएं और पैसों का दान न करें।

मनोहरण के परिवार वालों ने क्या कहा है

प्रभाकरण के बड़े भाई मनोहरण के बेटे कार्तिक मनोहरण ने कहा है कि एक "माफिया गिरोह" वैश्विक तमिलों से फंड जमा करने के लिए प्रभाकरण को बतौर एक ब्रांड के तौर पर उनके नाम का इस्तेमाल कर रहा है।

बता दें कि प्रभाकरण मई 2009 में लिट्टे के खिलाफ श्रीलंका के युद्ध के दौरान मारा गया था। कार्तिक ने यह भी कहा कि प्रभाकरण के नाम से जमा किया हुआ पैसा न तो उसके फैमली तक पहुंच रहा है और न ही इससे श्रीलंका के जरूरतमंदों को फायदा पहुंच रहा है। उनके अनुसार, पूरा पैसा धोखेबाजों के पास जा रहा है जो उनके नाम पर फंड जमा कर रहे हैं।

परिवार को कब लगा हो रहा है घोटाला

दरअसल, पिछले साल नवंबर में स्विट्ज़रलैंड में कुछ प्रवासी समूहों द्वारा प्रभाकरण की बेटी द्वारका प्रभाकरण का एक फेक एआई वीडियो स्पीच जारी किया गया था। इस वीडियो के बाद परिवार ने अपील की थी कि उनके परिवार के खिलाफ झूठे वीडियो जारी न किए जाए।

कार्तिक ने इस मिथक को कायम रखने के लिए कुछ भारतीय तमिल नेताओं और तमिल ईलम प्रचारकों की भी आलोचना की है।

अगर प्रभाकरण होते जिंदा तो करते संपर्क-कार्तिक

कार्तिक ने कहा है कि लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण और उनके परिवार की मौत 2009 में हो गई है। उनकी मौत से एक साल पहले 2008 में आखिरी बार प्रभाकरण से बात हुई थी। कार्तिक का कहना है कि अगर वे जिंदा होते तो वे परिवार वालों से जरूर संपर्क करने की कोशिश करते।

इस कारण तमिलों ने उठाया था हथियार

श्रीलंका में तमिलों के खिलाफ युद्ध शुरू होने पर सन 1983 में प्रभाकरण के बड़े भाई और कार्तिक के पिता मनोहरण अपने परिवार के साथ भारत वापस भारत लौट आए थे।

श्रीलंका में सिंघली भाषा बोलने वाले बहुसंख्यकों के अत्याचारों से तंग आकर तमिलों ने लिट्टे के नेतृत्व में हथियार उठा लिए थे और एक नई देश की मांग कर रहे थे। पाकिस्तान, सिंगापुर और दक्षिण अफ्रीका से हथियार मिलने के बाद मजबूत श्रीलंकाई सेना ने अल्पसंख्यक तमिलों के गढ़ जाफना को चारो और से घेर लिया था जिसके बाद यह युद्ध चला था।

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1987 समझौते में लिट्टे ने हथियार डालने से किया था इनकार

श्रीलंका में शांति लाने के लिए भारत और श्रीलंका के बीच सन 1987 में एक समझौता हुआ था। इसके तहत दोनों पक्षों के बीच शांति बनाए रखने और लिट्टे द्वारा हथियार डालने की बात तय हुई थी। लेकिन लिट्टे ने हथियार डालने से मना कर दिया था जिससे धीरे-धीरे यह युद्ध भारतीय सेना और लिट्टे के बीच बदल गया था।

कहा जाता है कि इस समझौते से लिट्टे खुश नहीं था। इस युद्ध में सैकड़ों भारतीय जवान शहीद हुए थे और सैकड़ों घायल भी हुए थे। इसके दो साल बाद 1989 में बोफोर्स घोटाले में फंसी कांग्रेस लोकसभा चुनाव हार गई थी।

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राजीव गांधी की हत्या की लिट्टे ने रची थी साजिश

साल 1991 के चुनाव में राजीव गांधी की सत्ता की वापसी से प्रभाकरण डर गया था और उसने उन्हें मारने की साजिश रची थी जिसका नाम 'ऑपरेशन वेडिंग' रखा गया था। 21 मई 1991 को लिट्टे आत्मघाती हमलावर धनु ने राजीव गांधी से मिलने के बहाने अपने कपड़ों में रखे बम को ब्लास्ट कर दिया था जिसमें उनकी मौत हो गई थी।

इस हादसे में 16 लोगों की मौत हुई थी और 45 अन्य लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे।

राजीव गांधी की हत्या के बाद डेनमार्क चला गया था परिवार

प्रभारण का परिवार करीब 13 साल तक भारत में रहा था और इस दौरान उसके बड़े भाई महोहरण ने भारत में कारोबार भी शुरू करने की कोशिश की थी। लेकिन राजीव गांधी की हत्या के बाद परिवार को भारत छोड़ना पड़ा था।

प्रभाकरण के फैमिली से रिश्ता होने के कारण नया जीवन शुरू करने के उनके प्रयासों के बावजूद परिवार को डेनमार्क में कुछ प्रवासी समूहों द्वारा दुर्व्यवहार का भी सामना करना पड़ा था। यही नहीं उन्हें रॉ का एजेंट भी करार दिया गया था।

एक दूसरे से नहीं मिल पाते हैं प्रभाकरण के परिवार

कार्तिक का शुरू में मानना था कि उसके दादा-दादी यानी प्रभाकरण के माता पिता का युद्ध में मारे गए हैं। लेकिन बाद में पता चला था कि उसके दादा-दादी युद्ध में मारे नहीं गए थे और वे सेना के कैंप में थे। कार्तिक के दादा का निधन 2010 में हुआ था और उसके बाद दादी की भी मौत हो गई थी।

प्रभाकरण की एक बहन अपने परिवार के साथ भारत में रहती है और दूसरे लोग कनाडा में हैं। प्रभाकरण का परिवार जो अब दुनिया के अलग-अलग देशों में बसा हुआ है, वे वीजा समस्या और कई अन्य समस्याओं के कारण वे एक दूसरे से नहीं मिल पाते हैं।

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