वॉशिंगटनः वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के हालिया अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि कोविड महामारी के कारण किशोरों, खासकर युवा लड़कियों के दिमाग में उम्र से पहले बदलाव हुए हैं। महामारी के दौरान घर में रहने के आदेश और सामाजिक मेलजोल में कमी से लोगों के रोजमर्रा के जीवन और दिनचर्या में खलल पड़ा। इसका सबसे ज्यादा असर युवाओं के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर देखा गया।
अब, वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया है कि महामारी ने किशोरों के मस्तिष्क विकास में असामान्य बदलाव किए हैं, जिससे उनके दिमाग की परिपक्वता तेजी से हो रही है।
शोध की मुख्य लेखिका और वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट फॉर लर्निंग एंड ब्रेन साइंसेज की वैज्ञानिक नेवा कॉरिगन ने कहा, “हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि महामारी के बाद एकत्र किए गए डेटा में मस्तिष्क की बाहरी परत (कॉर्टिकल थिकनेस) उम्मीद से काफी पतली हो गई थी। खासतौर पर यह बदलाव लड़कियों के दिमाग के अधिक हिस्सों में देखा गया, जबकि लड़कों में यह कम था।”
2018 में शुरू हुआ अध्ययन ‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ में प्रकाशित
2018 में शुरू किए गए इस अध्ययन का मूल उद्देश्य 9 से 17 साल के किशोरों के मस्तिष्क के सामान्य विकास को ट्रैक करना था। हालांकि, कोविड महामारी के कारण 2021 तक फॉलो-अप परीक्षण में देरी हो गई, जिसके बाद शोधकर्ताओं ने महामारी के मस्तिष्क विकास पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करना शुरू किया।
शोधकर्ताओं ने मस्तिष्क की परिपक्वता का आकलन इसके बाहरी परत (सेरेब्रल कॉर्टेक्स) की मोटाई में समय के साथ आने वाले बदलावों से किया। यह शोध ‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
शोधकर्ताओं ने कोविड से पहले और बाद के स्कैन में क्या फर्क पाया?
शोधकर्ताओं ने महामारी से पहले और बाद में लिए गए स्कैन की तुलना की, जिसमें पाया गया कि किशोरों के दिमाग में सामान्य से तेज़ी से बदलाव हुए, खासकर लड़कियों में। हालांकि उम्र के साथ दिमाग की बाहरी परत (सेरेब्रल कॉर्टेक्स) का पतला होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, लड़कियों में यह बदलाव औसतन 4.2 साल की गति से हुआ, जबकि लड़कों में यह प्रक्रिया 1.4 साल की दर से देखी गई।
शोध की प्रमुख लेखिका, नेवा कॉरिगन ने बताया, सेरेब्रल कॉर्टेक्स का पतलापन उम्र के साथ सामान्य होता है, लेकिन पोस्ट-कोविड किशोरों में यह मोटाई उनके उम्र के हिसाब से सामान्य से बहुत कम पाई गई। उन्होंने कहा कि यह मस्तिष्क के तेज़ी से उम्र बढ़ने का संकेत है, जो इन बच्चों के साथ हुआ।
अध्ययन की कुछ सीमाएं हैं, जैसे छोटे सैंपल साइज, जीवनशैली और व्यवहार से संबंधित डेटा की कमी, और यह समझना कि कोविड-19 या लॉकडाउन के तनाव ने इन नतीजों को कितना प्रभावित किया।
मस्तिष्क के बाहरी परत का जल्दी पतला होना क्या संकेत देता है?
पिछले शोधों में भी देखा गया है कि मस्तिष्क के बाहरी परत का जल्दी पतला होना गंभीर मानसिक आघात, तनाव और बचपन की उपेक्षा से जुड़ा होता है। इसी कारण शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि लॉकडाउन के दौरान हुए तनाव ने किशोरों के मस्तिष्क विकास को प्रभावित किया।
अध्ययन की वरिष्ठ लेखिका, पैट्रिशिया कुहल ने बताया कि एक बार पतली हो जाने के बाद मस्तिष्क की बाहरी परत फिर से मोटी नहीं होती, लेकिन किशोरों के जीवन में सामान्य सामाजिक संपर्क लौटने के बाद यह प्रक्रिया धीमी हो सकती है।
उन्होंने यह भी कहा, “यह भी संभव है कि इन किशोरों का मस्तिष्क इसी तेजी से परिपक्व होता रहेगा।” हालांकि इसपर और शोध की जरूरत है, लेकिन पिछले अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि मस्तिष्क के तेज़ी से पतले होने का संबंध किशोरों में मानसिक और व्यवहारिक समस्याओं, जैसे अवसाद, से हो सकता है।
नेवा कॉरिगन ने कहा, “यह एक और प्रमाण है कि लॉकडाउन के नतीजे हमारी उम्मीद से कहीं ज्यादा गंभीर थे। हम जानते हैं कि बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ा है और वे अभी भी इसके परिणाम झेल रहे हैं। मानसिक विकार, चिंता और अवसाद के मामले भी बढ़े हैं, जो दिखाता है कि युवा पीढ़ी के लिए मानसिक स्वास्थ्य सहायता कितनी जरूरी है।”