बांग्लादेश में हिंसक प्रदर्शनों के बाद जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध, कोटा विरोधी प्रदर्शन को हाईजैक करने और ISI से संबंध के गंभीर आरोप

सरकार के बैन के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए जमात के नेता शफीकुर रहमान ने इसकी निंदा की है और इसे अवैध और असंवैधानिक करार दिया है।

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Jamaat-e-Islami banned after violent protests in Bangladesh serious allegations against hijacking anti-quota protests having links with pakistan ISI

बांग्लादेश की पूर्व प्रधान मंत्री शेख हसीना (फोटो- IANS)

ढाका: बांग्लादेश में सत्तारूढ़ अवामी लीग के नेतृत्व वाले 14-पार्टी गठबंधन ने सोमवार को दक्षिणपंथी कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी पार्टी को बैन करने का ऐलान किया है। यही नहीं जमात की छात्र शाखा छात्र शिबिर को भी प्रतिबंधित करने का फैसला किया गया है।

जमात और उसकी छात्र शाखा पर हाल में बांग्लादेश में हुए छात्र प्रदर्शनों को हाईजैक करने और हिंसा फैलाने का आरोप है।

पड़ोसी देश बांग्लादेश में पिछले कुछ दिनों से चल रहे विरोध-प्रदर्शन के कारण कम से कम 200 लोगों की मौत हो चुकी है। सरकारी नौकरियों में स्वतंत्रता सेनानियों के रिश्तेदारों को 30 प्रतिशत कोटा देने के सरकार के फैसले के खिलाफ यह विरोध-प्रदर्शन शुरू हुआ था।

प्रधान मंत्री शेख हसीना की अध्यक्षता में उनके आवास पर हुई एक बैठक के दौरान जमात शिबिर पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया गया है। हालांकि सरकार के बैन को फैसले पर जमात की प्रतिक्रिया भी सामने आई है जिसने सरकार के इस कदम को अवैध और असंवैधानिक बताया है।

इन आरोपों के चलते बैन किया जाएगा जमात

बैठक में शामिल अवामी लीग के महासचिव ओबैदुल कादर ने कहा है कि लोगों की हत्या, राज्य संपत्ति को नष्ट करने और आतंकवादी हमलों को अंजाम देने में जमात की संलिप्तता के कारण गठबंधन ने बैन पर सहमति जताई है।

वर्कर्स पार्टी के अध्यक्ष राशेद खान मेनन और जातीय समाजतांत्रिक दल के अध्यक्ष हसनुल हक इनु सहित गठबंधन के अन्य केंद्रीय नेता भी इस बैठक में शामिल हुए थे और इस बैन को अपना समर्थन दिया है।

बुधवार को बैन किया जाएगा जमात

कानून मंत्री अनीसुल हक ने कहा है कि बांग्लादेश सरकार बुधवार तक जमात-ए-इस्लामी पर बैन लगा देगी। मंगलवार को पत्रकारों से बात करते हुए हक ने कहा है कि एक कार्यकारी आदेश के जरिए पार्टी पर प्रतिबंध लगाया जाएगा।

हक के अनुसार, बैन की प्रक्रिया को अंतिम रूप देने के लिए मंगलवार को गृह मंत्री असदुज्जमान खान कमाल के साथ चर्चा की जाएगी।

हसीना की सहयोगी मैजभंडारी ने कहा कि इस बैन के जरिए जमात-ए-इस्लामी की छात्र शाखा जमात-शिबिर को बांग्लादेश में प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करने या देश के भीतर किसी भी राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने पर रोक लग जाएगी।

जमात पर लगते आ रहे हैं आरोप

शेख हसीना की सरकार ने जमात पर बार-बार हिंसक गतिविधियों में शामिल होने और आतंकवादी समूहों के साथ सहयोग करने के लिए पार्टी को दोषी ठहराते आ रही है। ऐसे में अब जब जमात पर कोटा विरोधी प्रदर्शनों को हाईजैक करने का आरोप लगा है तो इसे बैन करने के लिए आवाज उठने लगी है।

यह पहली बार नहीं है जब जमात पर बैन लगाने की बात की जा रही है। इससे पहले कई बार अवामी लीग और 14 दलीय गठबंधन के नेताओं ने जमात पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी लेकिन तब सरकार द्वारा कोई भी फैसला नहीं लिया गया था।

सरकार को इस बात का भी संदेह है कि जमात पाकिस्तानी सेना की जासूसी एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) से मिला हुआ है। सरकार को इस पर बांग्लादेश में आईएसआई के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए काम करने का शक है।

जमात पर अल-बद्र, रजाकर, अल शम्स और शांति समिति जैसे आतंकवादी समूहों को बढ़ावा देने का भी आरोप है जिन पर बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान बंगालियों पर आत्याचार करने का भी आरोप है।

आखिर क्यों शुरू हुआ है यह विरोध-प्रदर्शन

दरअसल, बांग्लादेश में प्रदर्शन कर रहे छात्र सरकारी नौकरियों में स्वतंत्रता सेनानियों के रिश्तेदारों को 30 प्रतिशत आरक्षण देने का विरोध कर रहे हैं। ये बांग्लादेश के वो सेनानी थे जिन्होंने पाकिस्तान से आजादी दिलाई थी।

ढाका के अधिकारियों के अनुसार, पाकिस्तानी सैनिकों और उनके समर्थकों द्वारा की गई नरसंहार में 30 लाख लोग मारे गए थे। सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण को घटाकर पांच प्रतिशत कर दिए जाने के बाद, छात्र नेताओं ने पिछले सप्ताह विरोध प्रदर्शन रोक दिया था।

सरकार ने छात्र नेताओं को रिहा करने की मांग को पूरा नहीं किया, इसलिए छात्रों ने सोमवार को फिर से विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया था। इस हिंसक घटना में पुलिसकर्मियों समेत कम से कम 200 लोग मारे गए हैं और एक हजार से ज्यादा घायल हुए हैं।

फैसले पर जमात के नेता ने क्या कहा है

सरकार के बैन के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए जमात के नेता शफीकुर रहमान ने इसकी निंदा की है और इसे अवैध और असंवैधानिक करार दिया है। रहमान ने तर्क दिया है कि किसी भी राजनीतिक दल या गठबंधन के पास किसी अन्य दल पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार नहीं है।

कैसे वजूद में आया जमात-ए-इस्लामी

दक्षिणपंथी कट्टरपंथी इस्लामी पार्टी जमात-ए-इस्लामी का बांग्लादेश में एक विवादास्पद इतिहास रहा है। विवादास्पद इस्लामवादी विचारक सैय्यद अबुल आला मौदुदी ने सन 1941 में अंग्रेजों के शासन के दौरान और अविभाजित भारत के समय जमात की स्थापना की थी।

जमात को बांग्लादेश के 1971 के स्वतंत्रता आंदोलन का विरोध करने और इस दौरान इसे पाकिस्तानी सेना का पक्ष लेने के लिए भी जाना जाता है। ऐसे में बांग्लादेश को आजादी मिलने के बाद जमात पर बैन लगा दिया था।

इसके बाद सन 1975 में बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद बीएनपी के संस्थापक और खालिदा जिया के पिता दिवंगत राष्ट्रपति जियाउर रहमान द्वारा यह बैन हटा दिया गया था। उनके शासन के दौरान जमात की राजनीतिक गतिविधियों को फिर से शुरू करने की अनुमति दे दी गई थी।

बैन होने के बाद भी गतिविधियां जारी रखा था जमात

लंबे समय से राजनीति में उग्रवादी कट्टरपंथी दृष्टिकोण रखने वाली पार्टी जमात का अगस्त 2013 में उच्च न्यायालय के एक फैसले के बाद उसका पंजीकरण रद्द हो गया था। चुनाव आयोग में इसका पंजीकरण अवैध होने के कारण इसे रद्द कर दिया गया था।

इस फैसले के खिलाफ जमात ने अपील भी की थी लेकिन 2018 में पार्टी ने अपना पंजीकरण खो दिया था।

साल 2018 में अपना पंजीकरण खोने के बावजूद जमात अपनी राजनीतिक गतिविधियों को जारी रखा था। जमात ने पिछले कुछ वर्षों में बीएनपी के नेतृत्व वाले 20-पार्टी गठबंधन और अन्य विपक्षी गुटों के सहयोगी के रूप में अपनी राजनीतिक रूप से काम करना जारी रखा।

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