Israel-Iran conflict: इजराइल और ईरान इन दिनों जंग के मैदान में आमने-सामने हैं। इजराइल ने पिछले हफ्ते शुक्रवार तड़के ईरान के परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया। सैन्य ठिकानों पर भी हमले किए गए। ईरान के एयर डिफेंस सिस्टम सहित कई मिसाइल लॉन्चरों को निशाना बनाया गया। इसमें ईरान को व्यापक नुकसान हुआ। उसके कुछ वरिष्ठ सैन्य अधिकारी भी मारे गए। इसके बाद ईरान ने पलटवार किया और दोनों देश एक-दूसरे पर ड्रोन और मिसाइलों से हमले कर रहे हैं।

पिछले करीब डेढ़ साल में यह तीसरी बार है जब दोनों देश सीधे तौर पर आमने-सामने हैं। ताजा टकराव सबसे ज्यादा उग्र और खतरनाक हालात पैदा करने वाला नजर आ रहा है। ईरान ने फिलहाल किसी भी तरह के युद्धविराम को लेकर बातचीत से इनकार किया है। दूसरी तरफ नेतन्याहू के मिजाज भी उग्र हैं। इससे पश्चिम एशिया का संकट गहराता नजर आ रहा है। इससे पहले कुछ मौकों पर कुछ तनातनी और हमलों के बाद स्थिति संभल गई थी।

आईए, एक नजर ईरान और इजराइल के रिश्तों पर डालते हैं। मौजूदा स्थिति देखकर ऐसा लग सकता है कि इन दोनों के बीच शुरू से दुश्मनी रही होगी। हालांकि, ऐसा नहीं है। ईरान और इजराइल कभी बेहद करीबी देश माने जाते थे। लेकिन समय के साथ परिस्थितियां बदलती चली गई। 

ईरान में 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद बदले हालात

ईरान और इजराइल दोनों के बीच एक समय बेहद अच्छे संबंध हुआ करते थे। ऐसा तब से है जब 1948 में इजराइल बना और उसे मुस्लिमों देशों का कड़ा विरोध सहना पड़ा। उस दौर में भी ईरान ने इजराइल का साथ दिया। इजराइल यहूदी देश है और ऐसे में उसके निर्माण के बाद तब पश्चिम एशिया में मुस्लिम देशों ने इजराइल को मान्यता देने से इनकार कर दिया था। हालांकि ईरान ने 1948 में ही इजराइल को बतौर राष्ट्र मान्यता दे दी। तुर्की के बाद तब ऐसा करने वाला ईरान दुनिया का दूसरा मुस्लिम राष्ट्र था।

ईरान और अरब देशों के बीच पारंपरिक शत्रुता ने भी उसे इजराइल के साथ सहयोग को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया। साल 1953 में अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने ईरान में उग्र आंदोलन शुरू करने में अहम भूमिका निभाई। इसकी बदौलत मोहम्मद मोसादेग को ईरान के राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना पड़ा। सरकार गिर गई और ईरान में कमान एक बार फिर पूरी तरह राजशाही के हाथों में आ गई। शाह रजा पहलवी ने सत्ता संभाली। वह अमेरिका के करीबी माने जाते थे।

ऐसे में इजराइल और ईरान के बीच रिश्ते और प्रगाढ़ होते चले गए। हालांकि, 1979 में ईरान के धार्मिक नेता आयतुल्लाह खुमैनी के नेतृत्व में पहलवी परिवार के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गए। खुमैनी ने लोगों को यह बताकर एकजुट करना शुरू किया कि शाह रजा पहलवी केवल अमेरिका के इशारे पर कोई फैसला लेते हैं। आम लोग तेजी से इस आंदोलन से जुड़ने लगे और इसने इस्लामिक क्रांति का रूप ले लिया। वैसे इस पूरे आंदोलन के दौरान खुमैनी ईरान में मौजूद नहीं था।

इस आंदोलन की बदौलत शाह रजा पहलवी को आखिरकार ईरान छोड़कर भागना पड़ा। इसके बाद अप्रैल 1979 में खुमैनी ईरान लौटे और ईरान को इस्लामिक देश घोषित कर दिया गया। इस तरह ईरान में इस्लामिक शासन की स्थापना हुई और शरिया कानून भी लागू हुआ। खुमैनी के नेतृत्व वाली ईरान की नई सरकार ने इजराइल के साथ सभी संबंध भी तोड़ दिए।

सत्ता पर काबिज होने के बाद अपने एक भाषण में खुमैनी ने अमेरिका 'बड़ा शैतान' और इजराइल 'छोटा शैतान' तक कहा और फिलिस्तिन मुद्दे पर जमकर इजराइल की आलोचना की।

इराक के खिलाफ जंग में भी इजराइल ने ईरान की मदद की

मौजूदा स्थिति में इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने तेहरान में अयातुल्ला खामेनेई के शासन को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया है। ये दर्शाता है कि इजराइन और अमेरिका दोनों ईरान में सत्ता परिवर्तन चाहते हैं और मौजूदा व्यवस्था बदलना चाहते हैं। वैसे, इजराइल ने 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति के बाद भी वर्षों तक तेहरान के साथ संबंध बेहतर बनाए रखने की कोशिश की। 

इजराइल ने ईरान-इराक युद्ध (1980-88) में ईरान का समर्थन किया था। ये वो समय था जब ईरान में खुमैनी सत्ता पर मजबूती से कब्जा जमा चुके थे और इजराइल के खिलाफ अपनी नीति भी स्पष्ट कर दी थी। इसी बीच रिश्ते में एक और टर्निंग प्वाइंट आया। 1980 में इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन की सेना ने ईरान पर हमला कर दिया। ईरान में अभी-अभी सत्ता बदली थी और खुमैनी अभी जंग के लिए तैयार नहीं थे।

कहते हैं कि ऐसे में पर्दे के पीछे से ईरान की मदद के लिए इजराइल आगे आया। ईरान के पास भी कोई विकल्प नहीं था। इजराइल की कोशिशों के बाद अमेरिका भी ईरान की मदद के लिए तैयार हो गया। यह सबकुछ हालांकि पर्दे के पीछे से होता रहा। खुलकर या आधिकारिक तौर पर ईरान की ओर से ऐसा कुछ भी जाहिर नहीं किया गया कि वह इजराइल की मदद ले रहा है।

मदद भी ली और इजराइल के खिलाफ दुश्मनी की जमीन भी तैयार की

ईरान ने इराक के साथ जंग के दौरान इजराइल की मदद जमकर ली। हालांकि, इसके बावजूद ईरान का शासन इजराइल के खिलाफ दुश्मनी की जमीन तैयार करने में लगा रहा। ईरान ने लेबनान में हिज्बुल्लाह को बड़े पैमाने पर समर्थन देना शुरू किया। आलम ये हुआ कि हिज्बुल्लाह बाद के सालों में पश्चिमी एशिया में हजारों लड़ाकों की फौज तैयार करने में कामयाब रहा। ईरान की मदद से उसे मिसाइल और रॉकेट तक मिल गए और हिज्बुल्लाह उन संसाधनों से लैस होता चला गया जैसा किसी देश की सेना के पास होता है।

हिजबुल्लाह ने एक देश (लेबनान) के अंदर अपने वर्चस्व वाला 'भूभाग' हासिल किया। लेबनान के दक्षिणी हिस्से में जो इजरायल की सीमा से लगा भूभाग है, वहां लेबनान का जबर्दस्त नियंत्रण हो गया। इस समूह ने कई बार इजराइल के साथ संघर्ष किया, उस पर हमले किए और युद्ध लड़े। ये सबकुछ ईरान के समर्थन से होता रहा।

1990 के दशक में ईरान ने हमास का भी समर्थन करना शुरू कर दिया था, जो आज प्रमुख इजराइल विरोधी समूह बन गया है। हिजबुल्लाह और हमास दोनों ही इजराइल को नष्ट करने के लक्ष्य के तहत काम करते हैं।

90 के दशक से ईरान-इजराइल के बीच प्रॉक्सी वार की बड़ी घटनाएं

- 1992 में अर्जेंटीना में इजराइलीय दूतावास पर बमबारी: हिजबुल्लाह ने अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में इजराइल के दूतावास पर बमबारी की, जिसमें चार इजराइली सहित 29 लोग मारे गए।

- 1994 में अर्जेंटीना में AMIA यहूदी केंद्र पर बमबारी की गई, जिसमें 85 लोग मारे गए। हमले के लिए हिजबुल्लाह को दोषी ठहराया गया।

- साल 2002 में पश्चिमी खुफिया एजेंसियों ने ईरान के परमाणु हथियार बनाने के कार्यक्रम का पर्दाफाश किया। इसके बाद ईरान ने औपचारिक रूप से परमाणु कार्यक्रम बंद कर दिया और बातचीत के लिए सहमत हुआ। हालांकि, 2006 में ईरान ने परमाणु ईंधन संवर्धन को फिर से शुरू किया।

- साल 2010 के बाद कुछ ईरानी परमाणु वैज्ञानिकों की हत्याएँ की गई। 2010-20 के बीच आरोप है कि इजराइल ने कम से कम छह ईरानी परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या की। इसमें मोहसेन फखरीजादेह भी शामिल थे, जिन्हें ईरानी परमाणु कार्यक्रम के जनक के रूप में जाना जाता था। बताया जाता है कि उन्हें 2020 में रोबोटिक बंदूक से मार दिया गया था। मारे गए अन्य ईरान वैज्ञानिकों में मसूद अलीमोहम्मदी (2010), माजिद शाहरीरी (2010), दारयूश रेजाई-नेजाद (2011) और मुस्तफा अहमदी रोशन (2012) भी शामिल हैं। साल 2010 में  फेरेदून अब्बासी-दावानी पर भी हमला हुआ लेकिन वे बच गए।

इसके बाद 2020 में अमेरिका ने इराक में इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (IRGC) के कुद्स फोर्स के प्रमुख कासिम सुलेमानी की हत्या कर दी। इस हमले में इजराइल ने भी सहायता की थी।

ईरान-इजराइल संघर्ष का ताजा दौर

करीब तीन दशकों तक प्रॉक्सी वॉर के बाद ईरान और इजराइल पहली दफा पिछले साल पहली बार आमने-सामने आए। 7 अक्टूबर, 2023 को इजराइल पर हमास के हमले के बाद गाजा का संघर्ष शुरू हुआ था। इसी संघर्ष के बीच पिछले साल 2024 की अप्रैल में इजराइल ने सीरिया के दमिश्क में ईरान के एक दूतावास पर किए गए हवाई हमले में दो जनरलों सहित सात लोगों को मारा। इसके बाद ईरान ने भी जवाबी कार्रवाई शुरू की। हालांकि, जल्द दोनों के बीच ये संघर्ष खत्म हो गया।

इसके कुछ दिनों बाद 31 जुलाई को इजराइल ने एक और बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया। इजराइल ने तेहरान में एक बम विस्फोट में तत्कालीन हमास प्रमुख इस्माइल हानिया की हत्या कर दी। ईरान के लिए शर्मिंदगी की बात यह रही कि हानिया को IRGC गेस्टहाउस के अंदर उस समय मारा गया, जब वे नए ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए वहां गए थे। उसी दिन इस घटना से पहले इजराइल ने लेबनान की राजधानी बेरूत में हवाई हमले में हिज्बुल्लाह के सैन्य प्रमुख फुआद शुक्र की हत्या कर दी थी।

इसके बाद ईरान ने अक्टूबर में सैकड़ों मिसाइलों और ड्रोनों से इजराइल को जवाब दिया। इजराइल ने भी पलटवार किया। इस बार भी यह संघर्ष ज्यादा नहीं खींच सका और मामला वहीं रूक गया। हालांकि, अब तीसरी बार के इस संघर्ष में लगातार तनाव बढ़ता जा रहा है और फिलहाल इसके टलने या रूकने की संभावना नजर नहीं आ रही है।