हमास से गुप्त वार्ता पर अमेरिका-इजराइल के बीच बढ़ा तनाव, नेतन्याहू सरकार ने जताई कड़ी आपत्ति, क्या है मामला?

ट्रंप प्रशासन और हमास के बीच गुप्त वार्ता को लेकर इजराइल में नाराजगी बढ़ गई है। प्रधानमंत्री नेतन्याहू के सलाहकार रॉन डेरमर ने अमेरिकी वार्ताकार एडम बोहलर से तीखी बहस की, क्योंकि यह वार्ता इजराइल की सहमति के बिना हुई।

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Photograph: (IANS)

वाशिंगटनः डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन और हमास के बीच हो रही गुप्त वार्ता से इजराइल में असंतोष बढ़ गया है। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के करीबी सलाहकार रॉन डेरमर और अमेरिका के वार्ताकार एडम बोहलर के बीच मंगलवार को इसी मुद्दे पर तीखी बहस हुई।

इजराइली अधिकारियों के अनुसार, फरवरी की शुरुआत में जब ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों ने हमास से सीधी बातचीत की संभावना पर इजराइल से परामर्श किया था, तब इजराइल ने साफ इनकार कर दिया था। हालांकि, इसके बावजूद अमेरिका ने वार्ता जारी रखी, जिससे इजराइल की चिंता और बढ़ गई।

इस वार्ता के बारे में जब खुलासा हुआ, तो नेतन्याहू ने सार्वजनिक रूप से ट्रंप प्रशासन की आलोचना करने से बचते हुए केवल इतना कहा कि इजराइल ने अमेरिका को अपनी आपत्तियों से अवगत करा दिया है। लेकिन नेतन्याहू के सबसे करीबी सहयोगी डेरमर ने अमेरिकी वार्ताकार बोहलर से फोन पर हुई बातचीत में स्पष्ट नाराजगी जताई।

हमास से क्यों बातचीत कर रहा है अमेरिका?

यह वार्ता अमेरिकी बंधक एडन अलेक्जेंडर (21) और चार मृत अमेरिकी बंधकों के शवों की वापसी के प्रयासों का हिस्सा थी। एडम बोहलर को इस वार्ता की जिम्मेदारी दी गई थी।

Axios के अनुसार, ट्रंप प्रशासन इस वार्ता को एक व्यापक समझौते का आधार बनाना चाहता था, जिसमें— दीर्घकालिक युद्धविराम, हमास नेताओं को गाजा से सुरक्षित बाहर निकलने का मार्ग, सभी बंधकों की रिहाई और युद्ध की समाप्ति शामिल हो सकते थे।

अमेरिकी अधिकारियों को उम्मीद थी कि वे ट्रंप के कांग्रेस संबोधन से पहले कोई बड़ा समझौता हासिल कर लेंगे, लेकिन हमास का जवाब उम्मीद के मुताबिक नहीं था।

इजराइल ने जताई कड़ी नाराजगी

रिपोर्ट के मुताबिक, इजराइली अधिकारी इस वार्ता को लेकर नाराज थे, क्योंकि इसमें हमास कैदियों की रिहाई जैसी बातें भी शामिल थीं, जिन पर इजराइल की मंजूरी नहीं ली गई थी।

जब ट्रंप प्रशासन ने हमास से वार्ता शुरू की, तो नेतन्याहू ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन जब वार्ता वास्तविकता बन गई, तो उनके लिए यह एक बड़ा मुद्दा बन गया। इसी संदर्भ में डेरमर और बोहलर के बीच बातचीत हुई, जिसे सूत्रों ने "बहुत कठिन" करार दिया।

सूत्रों के अनुसार, डेरमर ने बोहलर से हमास से बातचीत के लिए इज़राइल की सहमति न लेने पर कड़ा ऐतराज जताया। इस पर बोहलर ने उन्हें आश्वस्त किया कि अभी कोई समझौता नहीं हुआ है और वे इज़राइल की सीमाओं को समझते हैं।

इजराइली अधिकारियों के अनुसार, इस बातचीत के बाद व्हाइट हाउस को अपनी रणनीति पर दोबारा विचार करना पड़ा।

बाइडेन प्रशासन के रुख से अलग क्यों थी यह वार्ता?

बाइडन प्रशासन के दौरान अमेरिकी बंधकों के परिजनों ने कई बार अनुरोध किया था कि अमेरिका हमास से सीधी बातचीत करे, लेकिन बाइडन प्रशासन ने इसे खारिज कर दिया था।

बाइडन प्रशासन का मानना था कि ऐसी वार्ता सफल नहीं होगी और इससे हमास को वैधता मिल जाएगी। इसके बजाय, बाइडन प्रशासन ने "ट्रैक 1.5 वार्ता" के तहत एक पूर्व अमेरिकी अधिकारी को हमास से अनौपचारिक बातचीत करने की जिम्मेदारी दी थी। लेकिन इस वार्ता में हमास केवल युद्धविराम और कैदियों की रिहाई पर बात कर रहा था, जो इजराइल के नियंत्रण में था, न कि अमेरिका के।

अमेरिका की हमास को 'आखिरी चेतावनी'

बुधवार को ट्रंप और उनके सलाहकारों ने हमास के साथ वार्ता पर विस्तृत चर्चा की और तय किया कि अब एक सख्त संदेश देना जरूरी है। इसके दो उद्देश्य थे—पहला, हमास पर दबाव बढ़ाना ताकि वह झुकने को मजबूर हो, और दूसरा, यह साफ़ करना कि अमेरिका की नीति में कोई बदलाव नहीं आया है। इसी रणनीति के तहत, बुधवार शाम ट्रंप ने बंधकों के परिजनों से मुलाकात के बाद हमास को खुली चेतावनी दी- "यह तुम्हारी आखिरी चेतावनी है!"

7 मार्च को ट्रंप ने सोशल मीडिया पर दोहराते हुए लिखा- "यह तुम्हारी आखिरी चेतावनी है!" उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर हमास सभी बंधकों को जल्द रिहा नहीं करता, तो इजराइल की सैन्य कार्रवाई और तेज होगी। ट्रंप प्रशासन ने संकेत दिया कि अगर हमास "अच्छी मानवतावादी पहल" करता है, तो उसे कूटनीतिक लाभ मिल सकता है।

गुरुवार को ट्रंप ने इन वार्ताओं का बचाव करते हुए कहा, "हम यह बातचीत इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इसमें इजराइली बंधक भी शामिल हैं।" प्रशासन के दूत स्टीव विटकॉफ अगले हफ्ते क्षेत्र का दौरा करेंगे।

विटकॉफ ने कहा कि एडन अलेक्जेंडर की रिहाई ट्रंप प्रशासन की सर्वोच्च प्राथमिकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यदि हमास नरमी दिखाता है, तो उसे कूटनीतिक लाभ मिल सकता है, लेकिन अगर वह अड़ियल रुख अपनाए रखता है, तो इजराइल की कार्रवाई निश्चित है।

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