नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड द लेवांत (ISIL/Daesh) भारत में बड़े पैमाने पर हमले करने में असमर्थ रहा है। हालांकि, संगठन ने देश में मौजूद समर्थकों के माध्यम से अकेले हमले (लोन वुल्फ अटैक) को बढ़ावा देने की कोशिश की है।
रिपोर्ट के अनुसार, आईएसआईएल समर्थक अल-जौहर मीडिया अपने प्रकाशन 'सेरत उल-हक' के जरिए भारत विरोधी प्रचार अभियान चला रहा है। इसके बावजूद, भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की सतर्कता के कारण आईएसआईएल की गतिविधियाँ सीमित हो गई हैं और यह किसी बड़े आतंकी हमले को अंजाम नहीं दे सका है।
भारत में आईएसआईएल की सीमित गतिविधियाँ और सुरक्षा एजेंसियों की मुस्तैदी
संयुक्त राष्ट्र की विश्लेषणात्मक सहायता और प्रतिबंध निगरानी टीम की 35वीं रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंकवादी संगठन और उनके सहयोगी समूह बाहरी सुरक्षा दबाव के बावजूद खुद को सक्रिय बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं।
आईएसआईएल ने पिछले कुछ वर्षों में कम केंद्रीकृत संगठनात्मक संरचनाओं के माध्यम से अपने अस्तित्व को बनाए रखा है। हालांकि, भारत में सुरक्षा एजेंसियों की सतर्कता और मजबूत आतंकवाद विरोधी नीतियों के कारण यह संगठन किसी बड़े हमले को अंजाम देने में असफल रहा है।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, आईएसआईएल की रणनीति मुख्य रूप से अकेले हमलावरों को प्रेरित करने पर केंद्रित रही है। इसके लिए यह संगठन ऑनलाइन प्रचार और चरमपंथी विचारधारा फैलाने के तरीकों का उपयोग कर रहा है।
हालांकि, भारत सरकार की साइबर सुरक्षा एजेंसियों और आतंकवाद विरोधी बलों की कड़ी निगरानी के कारण आईएसआईएल समर्थक प्रचार अभियानों को ज्यादा सफलता नहीं मिली है।
अफगानिस्तान में सक्रिय आतंकवादी समूह और क्षेत्रीय सुरक्षा पर खतरा
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अफगानिस्तान में 24 से अधिक आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं, जो क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्थिरता के लिए गंभीर खतरा बने हुए हैं।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इस रिपोर्ट में कहा कि अफगानिस्तान की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है और आईएसआईएल-के (इस्लामिक स्टेट – खुरासान प्रांत) क्षेत्र और उसके बाहर भी सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बना हुआ है।
गुटेरेस ने सभी सदस्य देशों से आग्रह किया कि वे अफगानिस्तान को फिर से आतंकवादी गतिविधियों का केंद्र बनने से रोकने के लिए एकजुट हों।
तालिबान और आईएसआईएल-के के बीच संघर्ष
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान सरकार द्वारा आईएसआईएल-के को रोकने के प्रयासों के बावजूद, यह संगठन अफगानिस्तान में अपनी गतिविधियों को तेजी से बढ़ा रहा है।
आईएसआईएल-के के लड़ाके तालिबान के अधिकारियों, जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों, संयुक्त राष्ट्र कर्मियों, विदेशी नागरिकों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों को निशाना बना रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान सरकार के भीतर बढ़ते आंतरिक मतभेद और भ्रष्टाचार के कारण आईएसआईएल-के को अपनी गतिविधियाँ फैलाने का अवसर मिल रहा है।
आईएसआईएल-के उत्तरी अफगानिस्तान से मध्य एशियाई देशों को भी धमकाने की रणनीति पर काम कर रहा है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि संगठन ने हाल के महीनों में ईरान और रूस में भी आतंकवादी हमले किए हैं, जिससे यह साफ होता है कि इसका प्रभाव केवल अफगानिस्तान तक सीमित नहीं है।
आईएसआईएल-के की भर्ती और विस्तार की रणनीति
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि आईएसआईएल-के ने मध्य और दक्षिण एशिया में अपनी उपस्थिति बनाए रखने के लिए नई भर्ती अभियानों पर ध्यान केंद्रित किया है। इस संगठन ने मध्य एशियाई देशों से नए लड़ाकों की भर्ती की प्रक्रिया को तेज कर दिया है, जिसमें ताजिक नागरिकों की संख्या सबसे अधिक है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अफगानिस्तान में नए आतंकवादियों की भर्ती के लिए तुर्की और ईरान के रास्तों का उपयोग किया जा रहा है। इसके लिए संगठन तुर्की के वान प्रांत और ईरान के ओरुमियेह, मशहद और जाहेदान जैसे इलाकों से आतंकियों की आवाजाही को प्राथमिकता दे रहा है।
अल-कायदा पड़ोसी देशों में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए अफगानिस्तान में सक्रिय गैर-अफगानी मूल के आतंकवादी समूहों के साथ गठजोड़ कर रहा है। इसमें तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी), इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज्बेकिस्तान, ईस्टर्न तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) और जमात अंसारुल्लाह जैसे संगठन शामिल हैं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि तालिबान ने अल-कायदा को समर्थन देना जारी रखा है, जिसके तहत उन्हें अफगानिस्तान में सुरक्षित ठिकाने और प्रशिक्षण सुविधाएँ प्रदान की जा रही हैं।