वॉशिंगटन: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप टैरिफ बढ़ाने की जो धमकी दी थी, वो अब लागू हो गई है। इसके बाद से अमेरिका की एक तरह से चीन, कनाडा और मैक्सिको के साथ 'ट्रेड वॉर' जैसी स्थिति बन गई है। इन देशों ने भी अमेरिका के टैरिफ बढ़ाने के जवाब में अमेरिकी प्रोडक्ट पर अपने यहां निर्यात को लेकर टैक्स बढ़ा दिया है। कनाडा ने वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन का भी रुख किया है।

ट्रंप ने इन देशों के अलावा भारत समेत कुछ और देशों पर भी पारस्परिक यानी रेसिप्रोकल ट्रैरिफ लगाने का ऐलान कर दिया है। रेसिप्रोकल का मतलब होता है प्रतिशोधात्मक, यानी जैसे को तैसा वाली नीति। 

अमेरिका ने कनाडा और मैक्सिको से आयात पर 25% टैक्स और चीनी सामानों पर 20% टैरिफ लगाया हैं। तीनों देशों ने भी इसका जवाब दिया है। परिणामस्वरूप, इलेक्ट्रॉनिक्स और उपकरणों से लेकर भोजन और ईंधन तक रोजमर्रा की वस्तुओं की लागत अब आने वाले दिनों में बढ़ने की संभावना है। 
इससे व्यवसायों और उपभोक्ताओं दोनों पर भारी असर पड़ेगा। जानकारों के अनुसार अमेरिकी भी इससे अछूते नहीं रहने वाले हैं।

टैरिफ बढ़ाने के पीछे ट्रंप का तर्क

ट्रंप का तर्क है कि ये टैरिफ अमेरिकी उद्योग की रक्षा करेंगे और विनिर्माण नौकरियों को वापस देश में लाएंगे। जबकि कई विशेषज्ञों का मानना है कि इससे ऊंची कीमतें, आपूर्ति श्रृंखला में बाधा और अमेरिका को आर्थिक नुकसान भी हो सकता है। 

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार कॉर्नेल विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर वेंडोंग झांग ने चेतावनी दी है कि 'टैरिफ में शामिल सभी अर्थव्यवस्थाओं को उनके वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में नुकसान होगा और सामान्य तौर पर उपभोक्ता कीमतों में वृद्धि होगी।' 

सवाल है कि आखिर इस टैरिफ वॉर का कितना असर और किस सेक्टर पर ज्यादा असर नजर आ सकता है? अमेरिका पर कितना असर होगा और आगे का रास्ता क्या है? आइए इन सभी पहलुओं को समझने की कोशिश करते हैं....

ट्रंप के एक्शन का तीनों देशों ने क्या जवाब दिया?

ट्रंप ने कनाडा और मैक्सिको से आयात पर 25% और चीनी सामानों पर 20% टैरिफ लगाया है। ये टैरिफ इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटो पार्ट्स, खाद्य और उपभोक्ता वस्तुओं सहित कई अन्य उत्पादों पर लागू होंगे।

इसके बाद चीन, कनाडा और मैक्सिको ने अमेरिकी उत्पादों पर प्रतिशोध के तौर पर टैरिफ बढ़ाने की घोषणा की है। चीन ने सोयाबीन, पोर्क, बीफ और चिकन सहित अमेरिकी कृषि निर्यात पर 15% तक टैरिफ लगाने की घोषणा की है। 

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि ओटावा '30 बिलियन कनाडाई डॉलर' (20.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर) मूल्य के अमेरिकी आयातों पर तत्काल 25% टैरिफ लगाएगा, और यदि ट्रंप के टैरिफ 21 दिनों तक लागू रहे तो '125 बिलियन कनाडाई डॉलर' (86.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का अतिरिक्त टैरिफ लगाएगा। उन्होंने पहले कहा था कि कनाडा अमेरिकी बीयर, वाइन, बॉर्बन, घरेलू उपकरणों और फ्लोरिडा संतरे के जूस को लक्षित करेगा।

वहीं, मेक्सिको की ओर से लगाए जाने वाले टैरिफ की घोषणा अभी नहीं की गई है लेकिन माना जा रहा है कि वह अमेरिका के कृषि और औद्योगिक वस्तुओं पर टैरिफ का ऐलान कर सकता है।

टैरिफ से कैसे प्रभावित होंगे लोग...अमेरिका पर भी असर होगा?

ऊंचे टैरिफ का मतलब रोजमर्रा की आयातित वस्तुओं की कीमत बढ़ेगी। इलेक्ट्रॉनिक्स, किराने का सामान, गैसोलीन और उपकरण सभी की कीमतों में बढ़ोतरी देखी जा सकती है। अमेरिकी उपभोक्ताओं पर भी इसका असर होगा। बेस्ट बाई (Best Buy) के सीईओ कोरी बैरी ने कहा कि कंपनी की आपूर्ति श्रृंखला "अत्यधिक वैश्विक, तकनीकी और जटिल" है, जिससे कीमतों पर असर की संभावना काफी बढ़ जाती है।

ये इंडस्ट्री होंगी ज्यादा प्रभावित

खुदरा (Retail)- इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़े और रोजमर्रा की उपभोक्ता वस्तुएं अधिक महंगी हो सकती हैं। 

ऑटोमोटिव- आपूर्ति श्रृंखला में बाधा आने के कारण कारों की कीमतें बढ़ सकती हैं। 

कृषि- अमेरिकी किसानों को ख़तरा है क्योंकि चीन ने सोयाबीन, पोर्क और मक्का के आयात में कटौती कर दी है। 

खाद्य और पेय पदार्थ- फल, सब्जियां, व्हिस्की और टकीला आदि की कीमत बढ़ सकती है।

कॉर्नेल विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर वेंडोंग झांग का अनुमान है कि सकल घरेलू उत्पाद में अमेरिका को 0.4% की हानि होगी, जो 100 अरब डॉलर से अधिक के बराबर है। कनाडा और मैक्सिको को अपनी छोटी अर्थव्यवस्थाओं और अमेरिकी व्यापार पर ज्यादा निर्भरता के कारण और भी अधिक नुकसान हो सकता है।

कब तक चलेगा ये सबकुछ?

इसे लेकर अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। यदि अमेरिकी अर्थव्यवस्था को गंभीर नुकसान होता है, तो ट्रंप को टैरिफ वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। उन्होंने कंप्यूटर चिप्स और फार्मास्यूटिकल्स जैसे अधिक उत्पादों को लक्षित करते हुए भारत और यूरोपीय संघ जैसे देशों पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की भी धमकी दी है।

फल, सब्जियां और मांस जैसी जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं के लिए, कीमतों में बढ़ोतरी अगले कुछ दिनों या हफ्तों में नजर आ सकती है। उदाहरण के तौर पर मैक्सिकन एवोकैडो की कीमतों में कुछ ही दिनों में जल्द ही वृद्धि दिख सकती है। अन्य सामान जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स और उपकरणों पर टैरिफ-संबंधी मूल्य वृद्धि के असर के नजर आने में कुछ अधिक समय लग सकता है।

क्या पहले भी इस तरह का उच्च टैरिफ दुनिया ने देखा है?

इससे पहले इतने बड़े पैमाने पर और टैरिफ वॉर जैसी स्थिति सामने नहीं आई है। हालांकि, 1930 के दशक के अंत तक अमेरिका में उच्च टैरिफ लागू थे, लेकिन इसी दौरान यहां आए ग्रेट डिप्रेशन (मंदी) के बाद व्यापार नीति फ्री ट्रेड समझौतों की ओर बढ़ चली। तब मंदी के लिए अमेरिका में स्मूट-हॉले टैरिफ एक्ट (Smoot-Hawley Tariff Act) को भी एक अहम जिम्मेदार माना गया था। बहरहाल, ट्रंप की ओर से लागू टैरिफ 1943 के बाद से अमेरिका में लागू टैरिफ का सबसे उच्च स्तर है।

अब आगे क्या?

कुल मिलाकर अभी कहा जाए तो वैश्विक अर्थव्यवस्था अनिश्चितता की स्थिति में है। यदि टैरिफ ऐसे ही बने रहते हैं, तो महंगाई बढ़ सकती है। आपूर्ति श्रृंखला में भी बदलाव नजर आ सकता है। यह भी संभव है कि चीन, मैक्सिको या कनाडा से देशों से उत्पादन स्थानांतरित होकर दूसरी जगहों पर जा सकते हैं। फिर भी भविष्य क्या होने वाला है, इसे लेकर अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।