गाजा वॉर के बीच इजराइल और ईरान में तनाव तेजी से बढ़ता जा रहा है। हालात को देखते हुए अमेरिका ने अपना वॉरशिप इजराइल की ओर भेजा है। इजराइल के सैन्य प्रमुख हरजी हलेवी ने कहा है कि ईरान के संभावित हमले का जवाब देने के लिए उनकी सेना यूएस सेंट्रल कमांड (सेंटकॉम) के साथ तैयार है।
इन दो मध्य पूर्वी देशों के बीच तनाव इसी महीने की शुरुआत में उस समय अत्यधिक बढ़ गया जब सीरिया के दमिश्क में ईरान के एक दूतावास पर हुए इजराइली हवाई हमले में दो जनरलों सहित सात लोग मारे गए। ईरान ने इस घटना के बाद तुरंत एक बयान जारी कर कहा कि वह युद्ध के लिए तैयार है और इजराइल को कड़ा सबक देगा।
ईरान-इजराइल के बीच थे कभी अच्छे संबंध…
ईरान और इजराइल के बीच अभी तक कभी भी सीधी जंग नहीं हुई है। हालांकि, कई मौकों पर दोनों के बीच तनाव की बात अक्सर सामने आती रही है। कुल मिलाकर कहें तो एक तरह से प्रॉक्सी वॉर इन दोनों के बीच लंबे समय से जारी है। इजराइल की ओर से आरोप लगाए जाते रहे हैं कि ईरान दरअसल हमास और हिजबुल्लाह जैसे संगठनों के जरिए इजराइल के ठिकानों या उसके दूतावास पर हमले करवाता है।
वैसे दिलचस्प बात ये है कि ईरान और इजराइल दोनों के बीच एक समय बेहद अच्छे संबंध हुआ करते थे। ऐसा तब से है जब 1948 में इजराइल बना और उसे मुस्लिमों देशों का कड़ा विरोध सहना पड़ा। उस दौर में भी ईरान ने इजराइल का साथ दिया। इजराइल यहूदी देश है और ऐसे में उसके निर्माण के बाद तब मुस्लिम देशों ने इजराइल को मान्यता देने से इनकार कर दिया था। हालांकि ईरान ने 1948 में ही इजराइल को बतौर राष्ट्र मान्यता दे दी। तुर्की के बाद तब ऐसा करने वाला ईरान दुनिया का दूसरा मुस्लिम राष्ट्र था।
ईरान-इजराइल: 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद रिश्तों में आई दरार
साल 1953 में अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने ईरान में उग्र आंदोलन शुरू करने में अहम भूमिका निभाई। इसकी बदौलत मोहम्मद मोसादेग को ईरान के राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना पड़ा। सरकार गिर गई और ईरान में कमान एक बार फिर पूरी तरह राजशाही के हाथों में आ गई। शाह रजा पहलवी ने सत्ता संभाली। वह अमेरिका के करीबी माने जाते थे।
ऐसे में इजराइल और ईरान के बीच रिश्ते और प्रगाढ़ होते चले गए। बहरहाल, 1979 में ईरान के धार्मिक नेता आयतुल्लाह खुमैनी के नेतृत्व में पहलवी परिवार के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गए। खुमैनी ने लोगों को यह बताकर एकजुट करना शुरू किया कि शाह रजा पहलवी केवल अमेरिका के इशारे पर कोई फैसला लेते हैं। आम लोग तेजी से इस आंदोलन से जुड़ने लगे और इसने इस्लामिक क्रांति का रूप ले लिया। वैसे इस पूरे आंदोलन के दौरान खुमैनी ईरान में मौजूद नहीं था।
इस आंदोलन की बदौलत शाह रजा पहलवी को आखिरकार ईरान छोड़कर भागना पड़ा। इसके बाद अप्रैल 1979 में खुमैनी ईरान लौटे और ईरान को इस्लामिक देश घोषित कर दिया गया। इस तरह ईरान में इस्लामिक शासन की स्थापना हुई और शरिया कानून भी लागू हुआ। खुमैनी के नेतृत्व वाली ईरान की नई सरकार ने इजराइल के साथ सभी संबंध भी तोड़ दिए।
सत्ता पर काबिज होने के बाद अपने एक भाषण में खुमैनी ने अमेरिका ‘बड़ा शैतान’ और इजराइल ‘छोटा शैतान’ तक कहा और फिलिस्तिन मुद्दे पर जमकर इजराइल की आलोचना की।
Iran-Israel Relations: तनाव के बाद सुधरे रिश्ते लेकिन फिर बिगड़ गए!
खुमैनी ईरान की सत्ता पर कब्जा जमा चुके थे और इजराइल के खिलाफ अपनी नीति भी स्पष्ट कर दी थी। इसी बीच इस रिश्ते में एक और टर्निंग प्वाइंट आया। 1980 में इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन की सेना ने ईरान पर हमला कर दिया। ईरान में अभी-अभी सत्ता बदली थी और खुमैनी अभी जंग के लिए तैयार नहीं थे।
कहते हैं कि ऐसे में पर्दे के पीछे से ईरान की मदद के लिए इजराइल आगे आया। ईरान के पास भी कोई विकल्प नहीं था। इजराइल की कोशिशों के बाद अमेरिका भी ईरान की मदद के लिए तैयार हो गया। यह सबकुछ हालांकि पर्दे के पीछे से होता रहा। खुलकर या आधिकारिक तौर पर ईरान की ओर से ऐसा कुछ भी जाहिर नहीं किया गया कि वह इजराइल की मदद ले रहा है।
बहरहाल, आगे चलकर इस जंग के बाद ईरान ने परमाणु हथियार हासिल करने की कोशिश शुरू कर दी। इसका खुलासा वर्षों बाद जब हुआ तो अमेरिका ने इसका विरोध किया। इजराइल भी इससे सहमत नजर आया और ईरान के साथ उसके रिश्ते एक बार फिर खराब होते चले गए जो अब सीधे-सीधे जंग के हालात तक पहुंच गए हैं।