यरुशलम: फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर इजराइल के कब्जे को लेकर संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) ने एक महत्वपूर्ण बात कही है। आईसीजे ने कहा है कि पिछले कुछ सालों से जिस तरीके से इजराइल फिलिस्तीन के क्षेत्रों पर कब्जा बनाए हुए है, यह अंतरराष्ट्रीय कानून के खिलाफ है।
कोर्ट ने कहा है कि इजरलाइल को जल्द से जल्द वेस्ट बैंक और पूर्वी येरुशलम में अपनी बस्तियों के निर्माण और इन क्षेत्रों और गाजा पट्टी पर अपने कब्जे को खत्म कर देना चाहिए।
आईसीजे के इस बात पर इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कोर्ट द्वारा कही गई बात को “झूठा” बताया है और कहा है कि यह क्षेत्र यहूदी लोगों की ऐतिहासिक ‘मातृभूमि’ का हिस्सा है।
कोर्ट ने और क्या कहा है
शनिवार को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के प्रेसिंडेंट और जज नवाफ सलाम ने फिलिस्तीनी क्षेत्र में इजराइल की लगातार मौजूदगी को अवैध करार दिया है और मांग की है कि इजराइल को ‘गैरकानूनी’ उपस्थिति को तेजी से समाप्त करना चाहिए।
बता दें कि पिछले 57 सालों में यह पहली बार है जब आईसीजे ने इजराइल के कब्जे की वैधता पर कोर्ट ने अपना कोई रुख रखा है। शीर्ष अदालत के 15 न्यायाधीशों की एक पैनल ने यह भी कहा है कि 2005 में जब इजराइल ने गाजा से वापसी की थी तब से उन क्षेत्रों में बस्तियों का निर्माण रूका नहीं है क्योंकि इजलाइल अभी भी उन क्षेत्रों को कंट्रोल करता रहा है।
इजराइल ने 1967 से अब तक इन इलाकों में करीब 160 बस्तियां बनाई हैं और करीब सात लाख यहूदियों को बसाया है, जिन्हें आईसीजे ने अवैध करार दिया है। कोर्ट ने कहा है कि वह इजराइल की नीतियों को फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर कब्जा करने और उनके साथ उनकी जाति, धर्म या जातीयता के आधार पर भेदभाव करने के रूप में देखती है।
इजराइल द्वारा फिलिस्तीनी प्राकृतिक संसाधनों के शोषण और उनके आत्मनिर्णय के अधिकार के उल्लंघन को लेकर भी कोर्ट ने इजराइल की निंदा की है। आईसीजे ने आगे कहा है कि क्षेत्र में इजराइल के कब्जे के कारण हुए नुकसान का फिलिस्तीनियों को मुआवजा भी देना चाहिए।
अदालत की बात क्या असर होगा
इजराइल को लेकर आईसीजे की यह बात कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है लेकिन इसका महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रभाव पड़ सकता है। इससे फिलिस्तीन को और समर्थन मिल सकता है वहीं इससे इजराइल पर दबाव बढ़ सकता है।
आमतौर पर इजराइल संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरणों को लेकर अलग ही राय रखता है और वह उनके फैसले को अनुचित और पक्षपातपूर्ण बताता रहता है। इस मामले में उसने सुनवाई के लिए कोई कानूनी टीम नहीं भेजी थी बल्कि एक लिखित टिप्पणियां पेश किया है जिसमें कोर्ट की बात पर सवाल उठाया है।
इजराइल पीएम ने क्या कहा
कोर्ट के इस बात पर इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने बयान देते हुए कहा है कि ‘यहूदी अपनी भूमि पर कब्जा नहीं कर रहे, ना ही तो वो राजधानी यरूशलेम पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं और ना ही अन्य इलाकों में।’ पीएम ने आगे कहा है, ‘हेग में झूठ का कोई भी फैसला सत्य को नहीं झुठला सकता और इजरायली बस्तियों की वैधता पर भी विवाद संभव नहीं है।’
The Jewish people are not occupiers in their own land, including in our eternal capital Jerusalem nor in Judea and Samaria, our historical homeland. No absurd opinion in the Hague can deny this historical truth or the legal right of Israelis to live in their own communities in…
— Benjamin Netanyahu – בנימין נתניהו (@netanyahu) July 19, 2024
फिलिस्तीनी नेताओं ने क्या प्रतिक्रिया दी है
आईसीजे के इस बात पर फिलिस्तीनी नेताओं ने अपनी प्रतिक्रिया भी दी है। फलस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास के सलाहकार रियाद मलकी ने इसे “फलस्तीन, न्याय और अंतरराष्ट्रीय कानून के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण” बताया है।
फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) के महासचिव हुसैन अल शेख ने आईसीजे के इस बात को फिलिस्तीनी अधिकारों और उनके आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए “ऐतिहासिक जीत” करार दिया है।
इजराइल पर दबाव डाले अंतरराष्ट्रीय समुदाय-शेख
शेख ने कहा है कि जिस तरीके से बस्तियों और अपनी नस्लवादी प्रथाओं के जरिए से फिलिस्तीनियों के जमीन पर इजराइल ने कब्जे का प्रयास किया है, कोर्ट की यह बात इजराइल के उन कोशिशों का अंत है।
शेख ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आईसीजे की बात का सम्मान करने की भी बात कही है। इसे लेकर शेख ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया है कि वे फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर अपने कब्जा खत्म करने के लिए इजराइल को मजबूर करें।
इजराइल की गतिविधियों को कोर्ट ने जिनेवा कन्वेंशन का उल्लंघन बताया
कोर्ट ने यह भी कहा है कि इजराइल के कानून और उसके एक्शन से इजराइल द्वारा विवादित जगहों पर बसाए गए लोगों और फिलिस्तीनी समुदायों के बीच दूरी पैदा हुई है जो कन्वेंशन के अनुच्छेद 3 का उल्लंघन दर्शाता है।
आईसीजे ने यह भी कहा कि जिस तरीके से इजराइल ने अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन किया है उससे फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर उसके चल रहे कब्जे की वैधता भी प्रभावित होती है।
अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि इजराइल को अपनी सीमाओं के बाहर अपने कब्जे वाले क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय कानूनों और नियमों का पालन करना चाहिए। आईसीजे ने यह भी कहा है कि जिस तरीके से इजराइल द्वारा फिलिस्तीनी जगहों पर बस्तियों का निर्माण होता है और वहां लोगों को बसाया जाता है, यह चौथे जिनेवा कन्वेंशन का उल्लंघन है।
फैसले पर भारत का क्या है रूख
इससे पहले फिलिस्तनियों के प्रति इजराइल की गतिविधियों के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा में जो प्रस्ताव पेश किया गया था उस पर भारत ने मतदान नहीं किया था। गौर करने वाली बात यह है कि आईसीजे में भारतीय न्यायाधीश दलवीर भंडारी ने इजराइल के खिलाफ उठाए जाने वाले जरूरी कदमों के पक्ष में मतदान किया है।
यह मामला दक्षिण अफ्रीका द्वारा आईसीजे में किए गए केस से अलग है
कोर्ट के इस बात को संयुक्त राष्ट्र महासभा को भेजा जाएगा जहां पर एक प्रस्ताव को अपनाने सहित इसके अलगे कदम को लोकर कोई अहम फैसला लिया जाएगा। इस फैसले से दोनों पक्षों के बातचीत शुरू करने और भविष्य के समझौते के लिए कानूनी आधार निर्धारित करने में मदद मिल सकती है।
बता दें कि यह मामला दक्षिण अफ्रीका द्वारा आईसीजे में चल रहे उस केस से अलग है जिस केस में दक्षिण अफ्रीका ने इजराइल पर गाजा में युद्ध के दौरान फिलिस्तीनियों के खिलाफ नरसंहार करने का आरोप लगाया है।