नई दिल्ली/दुशांबे: भारत ने ताजिकिस्तान में सिंधु जल संधि पर पाकिस्तान के राजनीतिक करने की कोशिश की कड़ी निंदा की। यहां आयोजित 'हिमनद संरक्षण पर उच्च स्तरीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन' में भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री कृति वर्धन सिंह ने पाकिस्तान को करारा जवाब दिया। 

उन्होंने कहा, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पाकिस्तान ने ऐसे मंच का उपयोग ऐसे मुद्दे उठाने के लिए किया जो इस सम्मेलन के दायरे से बाहर हैं। भारत ऐसे अनुचित प्रयासों का कड़ा विरोध करता है।"

भारत ने क्यों उठाया सिंधु संधि का मुद्दा?

भारत ने 23 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को स्थगित करने का निर्णय लिया था। यह पहला मौका है जब दोनों देशों ने किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर इस विषय पर सार्वजनिक रूप से अपनी बात रखी।

कृति वर्धन सिंह ने कहा, "सिंधु संधि के क्रियान्वयन के बाद से परिस्थितियों में बुनियादी परिवर्तन आए हैं– जैसे तकनीकी प्रगति, जनसंख्या में बदलाव, जलवायु परिवर्तन और सबसे महत्वपूर्ण सीमापार आतंकवाद का लगातार खतरा।"

उन्होंने संधि के मूल उद्देश्य की याद दिलाते हुए कहा, "यह संधि सद्भाव और मित्रता की भावना में बनी थी। लेकिन पाकिस्तान द्वारा लगातार प्रायोजित आतंकवाद इस भावना को ठेस पहुंचाता है। संधि का ईमानदारी से पालन जरूरी है, लेकिन पाकिस्तान खुद इसके उल्लंघन का दोषी है।"

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के दावे पर भारत का जवाब

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने सम्मेलन के दौरान कहा था कि भारत द्वारा संधि को स्थगित करना "एकतरफा और गैरकानूनी" है तथा इससे "लाखों लोगों की जिंदगी खतरे में पड़ सकती है।"

इस पर भारत ने वैज्ञानिक आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि सिंधु बेसिन में जल वितरण को लेकर जलवायु परिवर्तन ने असमान असर डाला है। पूर्वी हिमालय में ग्लेशियर अधिक तेजी से पिघल रहे हैं जबकि पश्चिमी सहायक नदियों में पानी की भंडारण क्षमता अपेक्षाकृत अधिक है। यह बदलाव 1960 की संधि के मूलभूत आधारों को ही चुनौती देता है।

भारत का हिमालयी रणनीति पर फोकस

भारत के हिमालयी रणनीति पर बोलते हुए कृति वर्धन सिंह ने सम्मेलन में विस्तार से बताया कि देश किस तरह हिमनदों की निगरानी और जलवायु अनुकूलन के लिए ठोस कदम उठा रहा है।

उन्होंने कहा कि भारत राष्ट्रीय हिमालयी पारिस्थितिकी मिशन (NMSHE) के तहत रणनीतिक पहलों को आगे बढ़ा रहा है। इसके तहत इसरो की मदद से रिमोट सेंसिंग और जीआईएस तकनीक के माध्यम से ग्लेशियरों की निगरानी की जा रही है। इसके साथ ही, ग्लेशियर झील विस्फोट बाढ़ (GLOF) जैसी आपदाओं से निपटने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की अगुवाई में तैयारियों को मजबूत किया गया है।

सिंह ने यह भी बताया कि देश के प्रमुख वैज्ञानिक संस्थान जैसे राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र, राष्ट्रीय जल संस्थान, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, और जीबी पंत हिमालयी पर्यावरण संस्थान इस दिशा में अनुसंधान कार्यों को गति दे रहे हैं।

भारत ने यह भी रेखांकित किया कि हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए क्षेत्रीय सहयोग, आंकड़ों की साझेदारी और संयुक्त प्रयास अत्यंत आवश्यक हैं। साथ ही, भारत ने अंतरराष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई में न्याय और साझा लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों के सिद्धांत को भी दोहराया।