बर्लिन: साल 2021 में हुए साइबर हमले के लिए जर्मन सरकार ने चीन के राजदूत को समन किया है। जर्मनी ने अपनी मैपिंग एजेंसी फेडरल ऑफिस फॉर कार्टोग्राफी एंड जियोडेसी (बीकेजी) पर "गंभीर" साइबर हमले के लिए चीन को दोषी ठहराया है।

जर्मन आंतरिक मंत्री नैन्सी फेसर ने इस हमले की निंदा की है और इसके लिए चीनी "सरकार के लिए काम करने वाले लोगों" को जिम्मेदार ठहराया है। इसकी औपचारिक शिकायत के लिए जर्मन सरकार ने समन किया है।

हालांकि जर्मनी द्वारा लगाए गए सभी आरोपों को बर्लिन स्थित चीनी दूतावास ने खारिज किया है। बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब चीन पर दूसरे देशों पर साइबर अटैक करने का आरोप लगा है।

इससे पहले भी कई देशों द्वारा चीन पर इस तरह के आरोप लग चुके हैं। पिछले कुछ सालों में भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूके, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और न्यूजीलैंड सहित कई देशों द्वारा चीन पर इस तरह के आरोप लग चुके हैं।

1989 के बाद पहली बार जर्मनी ने भेजा समन

जर्मन सुरक्षा अधिकारियों और स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा तीन साल के गहम जांच के बाद यह खुलासा हुआ है कि साल 2021 के साइबर अटैक के पीछे चीन का हाथ था। ऐसे में साल 1989 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है जब जर्मनी ने किसी मामले में चीन के राजदूत को तलब किया है। इससे पहले सन 1989 में जर्मनी ने चीन के राजदूत को समन भेजा था।

दरअसल, साल 1989 में चीन के तियानमेन स्क्वायर में छात्रों द्वारा किए जा रहे विरोध प्रदर्शन पर चीनी सरकार द्वारा हिंसा का रुख अपनाया गया था जिसमें कई लोगों की जान भी गई थी। इस घटना पर जर्मनी ने चीन के राजदूत को समन भेजा था।

चीन पर क्या आरोप लगे हैं

नैन्सी फेसर ने कहा है कि यह साइबर हमला चीनी साइबर हमलों और जासूसी से उत्पन्न महत्वपूर्ण खतरे को उजागर करता है जो जर्मनी और यूरोप की डिजिटल संप्रभुता को खतरे में डालता है।

जर्मन सुरक्षा अधिकारियों ने जांच में पाया कि चीनी राज्य सुरक्षा मंत्रालय से जुड़े चीनी हैकिंग समूहों ने इसे अंजाम दिया है। अधिकारियों के अनुसार, यह हमला APT15 और APT31 जैसे नामी चीनी हैकर समूहों द्वारा किया गया है। हालांकि जर्मनी ने कहा है कि हमले के बाद उन लोगों ने अपने सिस्टम को सुरक्षित कर लिया है।

चीन पर हमले में फ्रैंकफर्ट में स्थित बीकेजी एजेंसी को निशाना बनाने का आरोप है जो विस्तृत उपग्रह के फोटो के विश्लेषण के लिए जानी जाती है। साल 2017 में अमेरिकी समाचार पत्रिका फॉरेन पॉलिसी ने कुछ विशेषज्ञों का हवाला देते हुए यह दावा किया था कि चीन के पास ट्रेनिंग प्राप्त हजारों लोगों की "हैकरों की सेना" है।

चीन ने सभी आरोपों से किया है इनकार

खुद पर लगे आरोपों को लेकर जर्मनी में चीन के दूतावास ने बयान जारी कर कहा है कि "जर्मनी ने सार्वजनिक तौर पर चीन के खिलाफ जर्मनी के संघीय मानचित्र दफ्तर में दखल के निराधार आरोप लगाए हैं। चीन ने इन्हें कठोरता से अस्वीकार किया है और जर्मनी के आगे गंभीरता से अपना पक्ष रखा है। चीन, जर्मनी से आग्रह करता है कि वह साइबर सुरक्षा मामलों के बहाने चीन विरोधी राजनीतिक तिकड़म ना करे और और जनता की राय को धूमिल करने का प्रयास ना करे।"

बयान में आगे कहा गया है, "चीन सभी तरह के हैकर हमलों का सख्त विरोध करता है, उन पर नकेल कसता है। साथ ही किसी देश या शख्स को अपनी जमीन और चीन के बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल करके अवैध काम नहीं करने देता।"

जर्मनी ने कब लिया है यह फैसला

इससे पहले जर्मनी की दूरसंचार कंपनियों की 5जी नेटवर्क में चीनी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन हाल में जर्मनी ने सुरक्षा चिंताओं को कारण बताते हुए 5जी नेटवर्क में चीनी तकनीक को इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया था। जर्मनी के इस फैसले के बाद चीन को लेकर जर्मन सरकार यह खुलासा हुआ है।

हालांकि व्यापार संबंधों को बनाए रखते हुए चीन की जासूसी का जवाब कैसे दिया जाए यह जर्मनी के सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है। मंत्रियों की आलोचना के बावजूद जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज को चीन के प्रति नरम रुख रखने का समर्थन करते हुए देखा जा रहा है।

जर्मनी के लिए तेज हो सकते हैं साइबर हमले

इस बीच जर्मनी की घरेलू खुफिया सेवा संविधान संरक्षण के लिए संघीय कार्यालय (बीएफवी) ने चीन को लेकर चेतावनी जारी की है। बीएफवी ने हाल ही में अपनी वार्षिक सुरक्षा रिपोर्ट में चेतावनी देते हुए कहा है कि आने वाले दिनों में जर्मन हितों के खिलाफ चीनी साइबर हमलों के तेज होने संभावना काफी अधिक है।

बीएफवी का दावा है कि चीन कीमती कॉर्पोरेट बौद्धिक संपदा को चुराने के लिए आक्रामक साइबर रणनीति अपना रहा है। यही नहीं चीन सरकारी एजेंसियों से जुड़े आईटी और सर्विस प्रोवाइडर को भी निशाना बना रहा है।

रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि हाल के वर्षों में चीनी साइबर जासूसी काफी विकसित हुई है जिससे इसकी पहुंच और प्रभावशीलता पहले से काफी बढ़ गई है।

चीन और जर्मनी के संबंध

दोनों देशों के बीच काफी लंबे समय से अच्छे संबंध रहे हैं लेकिन हाल के सालों में इनके रिश्तें प्रभावित हुए हैं। हाल के वर्षों में चीन की सत्तावादी प्रवृत्तियां, व्यापार करनी की नीति और संभावित सुरक्षा जोखिमों के कारण जर्मनी से इसका तनाव बढ़ा है।

यह तनाव तब और बढ़ गया है जब इसी साल अप्रैल में चीन के लिए जासूसी करने के संदेह में एक जर्मन सांसद के सहयोगी सहित चार अन्य लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था।