नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी7 शिखर सम्मेलन-2024 में भाग लेने के लिए दो दिनों के इटली के दौर पर हैं। जी7 बैठक 13 से 15 जून तक इटली के अपूलिया में होनी है। इस बीच पीएम मोदी इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी के साथ द्विपक्षीय वार्ता भी करेंगे। इटली की प्रधानमंत्री पिछले साल मार्च 2023 में भारत यात्रा पर आई थीं। इसके अलावा पीएम मोदी 14 जून को एक आउटरीच सेशन में भी हिस्सा लेंगे जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ऊर्जा और अफ्रीका और भूमध्य सागर में क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा की जाएगी।
इसके अलावा 15 जून को स्विट्जलैंड में यूक्रेन पीस समिट भी आयोजित हो रहा है। इसमें भी भारत हिस्सा ले रहा है। हालांकि पीएम मोदी इसमें हिस्सा लेंगे या कोई और भारत की ओर से प्रतिनिधित्व करेगा, इस बारे में फिलहाल स्थिति साफ नहीं है। कुल मिलाकर अगले तीन-चार दिन वैश्विक कूटनीति के लिए अहम रहने वाले हैं। जी7 की बैठक में इटली के अलावा इसके अन्य स्थायी सदस्य देश अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, जापान हिस्सा ले रहे हैं। यूरोपीय संघ भी इस बैठक में होगा।
G7 समिट-2024 कहां आयोजित हो रहे हैं?
G7 शिखर सम्मेलन दक्षिणी इटली के पुगलिया (अपूलिया का इतालवी नाम) क्षेत्र में एक लक्जरी रिसॉर्ट बोर्गो एग्नाजिया में हो रहा है। इसके अलावा दुनिया भर से आए नेताओं के सम्मान में एक विशेष रात्रिभोज पास के ब्रिंडिसि (Brindisi) शहर में आयोजित किया जाएगा। मीडिया सेंटर शिखर सम्मेलन स्थल से लगभग 80 किलोमीटर दूर बारी (Bari) में स्थापित किया गया है।
G7 समिट में कौन-कौन हिस्सा ले रहे हैं?
G7 में संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, कनाडा, जर्मनी, फ्रांस, इटली और यूनाइटेड किंगडम शामिल हैं। यूरोपीय संघ भी सभी चर्चाओं में भाग लेता है। इसका प्रतिनिधित्व यूरोपीय परिषद और यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष करते हैं। इस साल इटली ने कई दूसरे देशों को भी निमंत्रण दिया है। इनमें भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पोप फ्रांसिस, जॉर्डन के राजा और यूक्रेन के नेता शामिल हैं। इसके अलावा ब्राजील, अर्जेंटीना, तुर्की, संयुक्त अरब अमीरात, केन्या, अल्जीरिया, ट्यूनीशिया और मॉरितानिया के नेता शामिल होंगे। संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, आईएमएफ, अफ्रीकन डेवलपमेंट बैंक और ओईसीडी के प्रतिनिधि भी इसमें होंगे।
G7 समिट के एजेंडे में क्या-क्या होगा?
अफ्रीका, जलवायु परिवर्तन और विकास: क्लाइमेंट चेंज G7 के लिए एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है। दरअसल इसका कोई भी सदस्य देश वर्तमान में अपने 2030 उत्सर्जन कटौती लक्ष्य को पूरा करने की राह पर नहीं है। G7 का लक्ष्य 2030 तक उत्सर्जन में 40-42% की कटौती करना है लेकिन वर्तमान नीतियों बताती हैं कि केवल 19-33% की कटौती ही संभव है। ऐसे में जाहिर है और मजबूत नेतृत्व और नीतियों की जरूरत है। इस शिखर सम्मेलन में जलवायु संबंधित लक्ष्यों को पूरा करने के लिए और नए रास्ते खोजने और ज्यादा प्रतिबद्धता दिखाने पर बात हो सकती है। स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों में तेजी लाने के लिए 2030 के मध्य तक कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से बंद करने पर जोर दिया जाएगा। इसके अलावा G7 शिखर सम्मेलन के मेजबान इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी के लिए अफ्रीका सर्वोच्च प्राथमिकता है। उनका लक्ष्य इटली को यूरोपीय संघ और अफ्रीका के बीच एक महत्वपूर्ण स्वच्छ-ऊर्जा पुल के रूप में स्थापित करना है ताकि रूसी गैस पर निर्भरता कम हो। उनकी विदेश नीति के केंद्र में माटेई योजना (Mattei) प्रमुख है जो अफ्रीका में बुनियादी ढांचे, विकास और ऊर्जा क्षेत्रों में निवेश पर केंद्रित है।
इजराइल-गाजा युद्ध: जी7 बैठक में गाजा संकट को हल करने पर प्रमुखता से बात हो सकती है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इजराइल और हमास के बीच तत्काल युद्धविराम, बंधकों की रिहाई, गाजा के लिए मानवीय सहायता में वृद्धि और इजराइल और गाजा दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक शांति समझौते का प्रस्ताव रखा है। इस प्रस्ताव को पहले से ही G7 देशों और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों द्वारा समर्थन मिला हुआ है।
रूस-यूक्रेन युद्ध: यूक्रेनी राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की को भी इस सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए न्योता दिया गया है। ऐसे में सम्मेलन के एजेंडे में यूक्रेन युद्ध का मामला भी अहम होगा। यूक्रेन को जी7 से एक बड़ा सहायता पैकेज मिलने की उम्मीद है। व्हाइट हाउस ने कहा है कि महीनों की बातचीत के बाद, बाइडेन और जेलेंस्की जी7 के दौरान अमेरिका और यूक्रेन के बीच एक द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे। वाशिंगटन ने शिखर सम्मेलन की पूर्व संध्या पर यह भी घोषणा की कि वह रूस की युद्ध अर्थव्यवस्था से जुड़े 300 से अधिक व्यक्तियों और संस्थाओं पर प्रतिबंध लगा रहा है, जिसमें वित्तीय संस्थान, मॉस्को स्टॉक एक्सचेंज और चीनी कंपनियां शामिल हैं।
विस्थापन: माइग्रेशन का प्रबंधन करना और विस्थापित आबादी के समर्थन के लिए क्या और करना चाहिए, इसे लेकर चर्चा संभव है। चर्चा में विस्थापन पर नीति, मानवीय सहायता प्रदान करना और विस्थापन को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए सीमा सुरक्षा बढ़ाने जैसे विषय शामिल होंगे।
इंडो-पैसिफिक और आर्थिक सुरक्षा: आर्थिक संबंधों को मजबूत करना और इंडो-पैसिफिक में सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करना भी अहम विषय है, जिस पर चर्चा होगी। एजेंडे में व्यापार सुरक्षा सुनिश्चित करना, क्षेत्रीय साझेदारी बनाना और क्षेत्र में आर्थिक और सुरक्षा स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए चीन के प्रभाव का मुकाबला करना शामिल है।
चीन की औद्योगिक नीति: चीन की ओर से इकोनॉमी और व्यापार में मिल रही चुनौतियों के समाधान पर भी ये देश बात कर सकते हैं। चर्चा में चीन की औद्योगिक अतिक्षमता पर चिंताओं को लेकर बात होगी। सभी देशों के व्यापार के लिए एक समान स्तर का माहौल देने पर चर्चा संभव है। इसके अलावा भारी सब्सिडी वाली चीनी कंपनियों का मुकाबला करने के लिए संभावित प्रतिबंधों पर विचार किया जा सकता है।
जी7 से जुड़ी ये जरूरी बातें भी जान लीजिए
जी7 मुख्य रूप से दुनिया के सात विकसित देशों का संगठन है। दुनिया की 43% जीडीपी इन्हीं सातों देशों की है। इस संगठन को 1975 में छह देशों ने मिलकर बनाया था। बाद में 1976 में कनाडा इसमें शामिल हुआ। जी7 की बैठक हर साल आयोजित होती है जिसमें वैश्विक मुद्दों, आर्थिक मुद्दों पर चर्चा होती है। हर प्रमुख सदस्य देश बारी-बारी से इस बैठक की मेजबानी करता है। इसमें मेजबान देश दुनिया के अन्य देशों और संस्थाओं को बैठक के लिए आमंत्रित कर सकता है।
भारत को क्यों जी7 के लिए बुलाया जाता है?
भारत जी7 का सदस्य नहीं है। इसके बावजूद 2019 से लगातार उसे इस बैठक के लिए आमंत्रित किया जाता रहा है। आज के दौर में भारत दुनिया के लिए बेहद अहम बन गया है। इसकी कई वजहें हैं। इसमें दुनिया में भारत की बढ़ रही ताकत भी शामिल है। भारत फिलहाल दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। ऐसे में इसे पश्चिमी देश नजरअंदाज नहीं कर सकते। इसके अलावा चीन के जवाब में दक्षिण एशिया में संतुलन बनाए रखने के लिए भारत की भूमिका अहम हो जाती है। यह अमेरिका और पश्चिमी देशों को भी रास आता है। दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश भी भारत है। यही वजह है कि 2019 से लगातार भारत जी7 बैठकों में हिस्सा ले रहा है।