नई दिल्ली: पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी ने अमेरिकी सरकारी दक्षता विभाग (DOGE) द्वारा किए गए उस दावे को पूरी तरह खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि उनके कार्यकाल के दौरान भारत में चुनाव में मतदान बढ़ाने के लिए अमेरिकी धन का उपयोग किया गया था। यह विवाद तब सामने आया जब अरबपति एलन मस्क की अगुवाई वाले DOGE ने सरकारी खर्चों में कटौती की घोषणा की, जिसमें "भारत में मतदान" के लिए 21 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुदान को भी रद्द कर दिया गया।

DOGE के दावे और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

DOGE ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि अमेरिकी करदाताओं के पैसों से कई कार्यक्रमों का वित्तपोषण किया जा रहा था, जिनमें "भारत में मतदाता मतदान" के लिए 21 मिलियन अमेरिकी डॉलर भी शामिल थे। इस घोषणा के बाद भारतीय राजनीति में हलचल मच गई।

भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित मालवीय ने इस अनुदान को "भारतीय चुनावों में बाहरी हस्तक्षेप" करार दिया और सवाल उठाया कि इस धन का असली लाभार्थी कौन था। उन्होंने स्पष्ट किया कि सत्तारूढ़ भाजपा को इस निधि का कोई लाभ नहीं मिला। मालवीय ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि पूर्ववर्ती यूपीए सरकार विदेशी ताकतों को भारतीय संस्थानों में हस्तक्षेप करने की अनुमति दे रही थी।

दूसरी ओर, कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने भाजपा पर पलटवार किया और तर्क दिया कि यदि 2012 में यह फंडिंग दी गई थी, तो कांग्रेस को इससे कोई लाभ नहीं हुआ, क्योंकि 2014 के चुनाव में भाजपा सत्ता में आ गई थी। खेड़ा ने यह भी सवाल किया कि क्या कांग्रेस ने जानबूझकर ऐसी विदेशी सहायता लेकर अपनी चुनावी संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया? उन्होंने भाजपा के आरोपों को हास्यास्पद करार दिया।

एस.वाई. कुरैशी का स्पष्टीकरण

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी ने DOGE के दावों को पूरी तरह से निराधार और झूठा बताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि 2012 में जब वे मुख्य चुनाव आयुक्त थे, तब चुनाव आयोग (ECI) को किसी अमेरिकी एजेंसी से कोई वित्तीय सहायता नहीं मिली थी।

उन्होंने बताया कि उस समय इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स (IFES) के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए थे, लेकिन इसका उद्देश्य केवल चुनाव आयोग के प्रशिक्षण और संसाधन केंद्र में इच्छुक देशों को चुनावी प्रक्रियाओं का प्रशिक्षण देना था।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस समझौते में किसी भी प्रकार की वित्तीय सहायता या धनराशि का उल्लेख नहीं था। कुरैशी ने दोहराया कि किसी भी पक्ष पर कोई वित्तीय या कानूनी दायित्व नहीं था और यह बात समझौते में दो अलग-अलग स्थानों पर दर्ज की गई थी। उन्होंने DOGE के दावे को "पूरी तरह से झूठा और दुर्भावनापूर्ण" बताया।

DOGE की इस घोषणा के बाद भाजपा और कांग्रेस के बीच राजनीतिक बहस तेज हो गई है। भाजपा इसे "विदेशी हस्तक्षेप" करार दे रही है, जबकि कांग्रेस इसे भाजपा द्वारा फैलाया गया झूठा प्रचार बता रही है। इस बीच, एस.वाई. कुरैशी ने पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है कि उनके कार्यकाल में चुनाव आयोग को किसी भी विदेशी संस्था से कोई वित्तीय सहायता नहीं मिली थी।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यह विवाद आगे कैसे बढ़ता है और क्या सरकार इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक जांच या स्पष्टीकरण जारी करती है।