यह भारत बनाम 'आतंकिस्तान' है, न कि भारत-पाक संघर्ष, EU में विदेश मंत्री जयशंकर का दो टूक संदेश

यह बयान भारत और यूरोपीय संघ के बीच हुई पहली रणनीतिक सुरक्षा वार्ता के बाद आया, जिसमें समुद्री सुरक्षा, साइबर स्पेस और अंतरिक्ष क्षेत्र सहित व्यापक रक्षा-सहयोग पर चर्चा हुई।

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Photograph: (IANS)

ब्रुसेल्सः विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मंगलवार को ब्रुसेल्स में स्पष्ट कहा कि भारत आतंकवाद को लेकर किसी भी तरह के परमाणु या सामरिक ब्लैकमेल के आगे नहीं झुकेगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत आतंकवाद के सभी रूपों के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर कायम है।

यूरोपीय संघ के उच्च प्रतिनिधि और यूरोपीय आयोग की उपाध्यक्ष काजा कालास के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए जयशंकर ने कहा, "यह दो देशों के बीच कोई पारंपरिक संघर्ष नहीं है। यह उस खतरे का जवाब है, जिसे आतंकवाद के तौर पर अंजाम दिया गया है। इसलिए मैं आग्रह करूंगा कि इसे भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष न समझा जाए, बल्कि इसे भारत और 'आतंकिस्तान' के बीच लड़ाई के रूप में देखा जाए।"

उन्होंने यह भी कहा कि आतंकवाद अब केवल क्षेत्रीय नहीं, बल्कि वैश्विक खतरा बन चुका है, और इसके समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच मजबूत सहयोग और साझा समझ बेहद आवश्यक है।

रणनीतिक वार्ता में सुरक्षा और वैश्विक व्यवस्था पर चर्चा

यह बयान भारत और यूरोपीय संघ के बीच हुई पहली रणनीतिक सुरक्षा वार्ता के बाद आया, जिसमें समुद्री सुरक्षा, साइबर स्पेस और अंतरिक्ष क्षेत्र सहित व्यापक रक्षा-सहयोग पर चर्चा हुई। दोनों पक्षों ने यूक्रेन युद्ध, मध्य-पूर्व संकट, हिंद-प्रशांत क्षेत्र और वैश्विक शक्ति संतुलन जैसे मुद्दों पर भी विचार-विमर्श किया।

काजा कालास ने भी परमाणु धमकियों पर चिंता जताते हुए कहा कि परमाणु धमकियां न केवल निरर्थक हैं, बल्कि वैश्विक अस्थिरता को बढ़ावा देती हैं। बदलती विश्व व्यवस्था में हमें अधिक सहयोगियों की आवश्यकता है, और भारत के साथ हमारा रक्षा सहयोग इसी दिशा में बढ़ रहा है।

मुक्त व्यापार समझौते को लेकर उम्मीद

जयशंकर ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को वर्ष के अंत तक अंतिम रूप देने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि आज का दौर बहुध्रुवीयता और रणनीतिक स्वायत्तता का है, जहां भारत और यूरोपीय संघ के संबंध पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गए हैं। उन्होंने कहा, हम मानते हैं कि हमेशा हर मुद्दे पर हमारी राय एक जैसी नहीं हो सकती, लेकिन सबसे जरूरी है कि हम संवाद बनाए रखें, साझा समझ को बढ़ाएं और विश्वास की नींव को मजबूत करें।

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