ढाका: 5 अगस्त 2024 को शेख हसीना सरकार के हटने के बाद बांग्लादेश के राजनीतिक हालात तेजी से बदल गए हैं। तख्तापलट के बाद से ही भारत विरोधी आवाजें और अधिक मुखर हो गई हैं। मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार सत्ता में है, और अब देश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की खुलकर आलोचना हो रही है। कई जगहों पर मुजीबुर्रहमान की मूर्तियों को तोड़ दिया गया तो अब उनकी पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना को बांग्लादेश का राष्ट्रपिता घोषित करने की मांग उठ रही है।
बुधवार (11 सितंबर) को ढाका प्रेस क्लब में पहली बार मोहम्मद अली जिन्ना की 76वीं पुण्यतिथि के अवसर पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। नवाब सलीमुल्लाह अकादमी द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना को न सिर्फ बांग्लादेश का राष्ट्रपिता घोषित करने की मांग की गई, बल्कि कई वक्ताओं ने भारत की कड़ी आलोचना भी की।
शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद से बांग्लादेश में, पाकिस्तान समर्थक तत्वों, जैसे जमात-ए-इस्लामी, का प्रभाव बढ़ गया है। जिन्ना के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम में उर्दू शायरी का पाठ किया गया और बांग्लादेश के झंडे और राष्ट्रगान को बदलने की मांग भी उठाई गई।
Dhaka National Press Club of Bangladesh. Ali Jinnah’s 76th death anniversary is celebrated. Wow! wonderful Face of Bangali…!#dhakapressclub #pressclub @AsianDigest @AP @DanScavino @INCIndia @IHRF_English @Reuters #alijinnah #pakistannews #pakistanvsbangladesh pic.twitter.com/4RxLb4anrz
— Rajib Sharma (@RazzRashin) September 11, 2024
जिन्ना के बिना न तो पाकिस्तान होता और न ही बांग्लादेश
कार्यक्रम में बोलते हुए कई वक्ताओं ने दावा किया कि जिन्ना के बिना न तो पाकिस्तान होता और न ही बांग्लादेश। उन्होंने यह भी दावा किया कि यदि 1947 में बांग्लादेश पाकिस्तान का हिस्सा नहीं होता, तो उसकी हालत आज कश्मीर जैसी हती। कार्यक्रम के वक्ताओं ने यहां तक कहा कि बांग्लादेश ने दो बार स्वतंत्रता प्राप्त की — पहली बार 14 अगस्त 1947 को और दूसरी बार 5 अगस्त 2024 को, लेकिन 1971 के मुक्ति संग्राम का जानबूझकर उल्लेख नहीं किया गया।
यह बात चौंकाने वाली है, क्योंकि बांग्लादेश, जिसे पहले पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था, ने 1971 में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका के चलते पाकिस्तान के चंगुल से आजादी हासिल की थी। इसके बावजूद, इस आयोजन में जिन्ना की जमकर तारीफ की गई जबकि भारत को खलनायक के रूप में पेश किया गया। एक वक्ता ने कहा कि जिन्ना के बिना पाकिस्तान का निर्माण नहीं हो सकता था, और अगर पाकिस्तान नहीं बनता तो बांग्लादेश का भी अस्तित्व नहीं होता।
नागरिक परिषद के संयोजक मोहम्मद शमसुद्दीन ने दावा किया, “अगर बांग्लादेश 1947 में पाकिस्तान का हिस्सा नहीं होता, तो आज हम कश्मीर जैसी स्थिति में होते जहां भारतीय सेना हमारी गर्दनों पर बंदूके रखे होती। उन्होंने कहा, बांग्लादेश ने पाकिस्तान की वजह से आजादी मिली, जिसे जिन्ना ने बनाया।”
ढाका को चीन और पाकिस्तान के साथ मजबूत संबंध बनाने चाहिए
शमसुद्दीन ने यह भी कहा कि ढाका को चीन और पाकिस्तान के साथ मजबूत संबंध बनाने चाहिए। हमें अल्लामा इकबाल हॉल या जिन्ना एवेन्यू का नाम क्यों बदलना चाहिए? ये परिवर्तन दिल्ली की इच्छा के कारण हुए, लेकिन हमने इन्हें नहीं चाहा। बांग्लादेश को चीन और पाकिस्तान के साथ मजबूत संबंध बनाने चाहिए।”
एक अन्य वक्ता एमडी शखावत ने दावा किया कि भारतीय उपमहाद्वीप में राजनीतिक अस्थिरता और संघर्ष को समाप्त करने में जिन्ना की महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने कहा, “अगर जिन्ना ने 1947 में बांग्लादेश की जिम्मेदारी नहीं ली होती, तो हम आज पश्चिम बंगाल की तरह होते और भारत का हिस्सा बने रहते। जिन्ना के कारण पूर्वी पाकिस्तान पश्चिमी पाकिस्तान के साथ एकजुट रहा। अब हमें अपनी मित्रता का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए।”
जिन्ना हमारे राष्ट्रपिता
एक अन्य वक्ता नजरुल इस्लाम ने कहा कि “चाहे जैसे भी हुआ हो, हमने स्वतंत्रता हासिल कर ली है। हमें पाकिस्तान के साथ अपने संबंध बनाए रखने चाहिए। अगर जिन्ना न होते, तो पाकिस्तान नहीं होता और बिना पाकिस्तान के बांग्लादेश भी नहीं होता। जिन्ना हमारे राष्ट्रपिता हैं, लेकिन हम इसे मान्यता नहीं देते। हमें अपनी भाईचारे की भावना को बनाए रखना चाहिए और मुझे उम्मीद है कि जिन्ना की जयंती और पुण्यतिथि हर साल यहां मनाई जाएगी।”
बता दें कि बांग्लादेश में पाकिस्तान के उच्चायुक्त इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होने वाले थे, लेकिन वह अनुपस्थित रहे। उनकी जगह उप उच्चायुक्त कमरान धांगल ने कार्यक्रम में शिरकत की। धांगल ने कहा कि जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने एक महत्वपूर्ण जन आंदोलन की शुरुआत की थी। पाकिस्तान बनने के बाद, जिन्ना इसके पहले गवर्नर-जनरल बने। उनके नए राष्ट्र के लिए दृष्टिकोण स्पष्ट था। उन्होंने स्वतंत्रता और सहिष्णुता के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाते हुए एक प्रगतिशील और समावेशी राज्य की वकालत की। उनके योगदान को न केवल पाकिस्तान में, बल्कि दुनिया भर में सराहा गया।
बांग्लादेश की आजादी
गौरतलब है कि पाकिस्तान का हिस्सा होने के बावजूद, पूर्वी पाकिस्तान को हमेशा सौतेला व्यवहार झेलना पड़ा। यहां की अर्थव्यवस्था लगभग ढह गई थी। लोग परेशान थे। लेकिन पाकिस्तान के शासक वर्ग उनकी समस्याओं को अनदेखा करता रहा। लिहाजा पूर्वी पाकिस्तान के राजनीतिक नेताओं ने 26 मार्च 1971 को शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में आजादी के लिए आंदोलन छेड़ दिया और आजादी की घोषणा की, जिन्हें बाद में “राष्ट्रपिता” का खिताब मिला।
इस घोषणा से एक साल पहले, पाकिस्तानी सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान में सेना भेजी और एक भयानक नरसंहार शुरू कर दिया, जिसने आजादी की लड़ाई को और तीव्र कर दिया।
पूर्वी पाकिस्तान अपनी ताकत से स्वतंत्रता हासिल नहीं कर सकता था। भारत को मजबूर होकर हस्तक्षेप करना पड़ा और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में नई दिल्ली ने मुक्ति बाहिनी का समर्थन किया और उन्हें हथियार, गोला-बारूद और अपने सैनिक प्रदान किए।
16 दिसंबर 1971 को, पाकिस्तान के पूर्वी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जेएस अरोड़ा की उपस्थिति में ढाका में आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए, जिसके बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ।