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नई दिल्ली: उत्तरी बांग्लादेश में भारतीय सीमा से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित द्वितीय विश्व युद्ध के समय के एक पुराने एयरबेस लालमोनिरहाट को लेकर कई तरह की चर्चाएं इस समय तेज हो गई हैं। ऐसी खबरें हैं कि चीन इसके फिर से विकास में भूमिका निभाना चाह रहा है। बांग्लादेश में भारतीय सीमा के पास मौजूद इस एयरबेस पर चीन की चहलकदमी ने भारत के लिए चिंता बढ़ा दी है।
'टाइम्स ऑफ इंडिया' की रिपोर्ट के अनुसार लालमोनिरहाट एयरबेस द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एक महत्वपूर्ण बेस था। हाल में चीनी अधिकारियों द्वारा साइट के दौरे और हवाई क्षेत्र के आसपास बढ़ती गतिविधि की रिपोर्टों के बाद यह फिर से चर्चा में आ गया है। दरअसल, भारत के लिए रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण सिलीगुड़ी कॉरिडोर से लगभग यह 135 किमी दूर है। भारत की मुख्यभूमि को पूर्वोत्तर से जोड़ने का यह अभी एक मात्रा सड़कमार्ग है, जिसे 'चिकन नेक' भी कहते हैं।
फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार यह हवाई अड्डा बांग्लादेश के रंगपुर डिवीजन में आता है और भारतीय सीमा से केवल 12-15 किलोमीटर की दूरी पर है। यह भारतीय सेना की तोपखाने की रेंज में भी है और भारत की पूर्वी सैन्य कमान द्वारा इस पर कड़ी निगरानी रखी जाती है। इन सबके बीच सिलीगुड़ी कॉरिडोर के इतने करीब चीन की बढ़ी हुई उपस्थिति ने भारत के लिए चिंता बढ़ा दी है।
क्या है लालमोनिरहाट एयरबेस की कहानी?
ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा 1931 में निर्मित लालमोनिरहाट हवाई क्षेत्र ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसका म्यांमार सहित दक्षिण पूर्व एशिया में तब मित्र देशों की सेनाओं द्वारा एक अग्रिम बेस के रूप में जमकर इस्तेमाल किया गया था।
यह एयरबेस करीब 1,166 एकड़ में फैली हुई थी, जिसमें चार किलोमीटर लंबा रनवे और टरमैक स्पेस भी था। विभाजन के बाद पाकिस्तान ने 1958 में नागरिक उपयोग के लिए हवाई क्षेत्र को कुछ समय के लिए फिर से सक्रिय किया। हालाँकि, बेस का बाद में इस्तेमाल कम होता गया और दशकों तक काफी हद तक निष्क्रिय बना रहा।
यह स्थल वर्तमान में बांग्लादेश वायु सेना के नियंत्रण में है और उसके 9 आधिकारिक हवाई अड्डों में से एक है। इसे बीएएफ स्टेशन लालमोनिरहाट के रूप में जाना जाता है। अपने परिचालन के वर्षों में यह एशिया का दूसरा सबसे बड़ा हवाई अड्डा माना जाता था।
साल 2019 में शेख हसीना के नेतृत्व वाली बांग्लादेश सरकार ने इस जगह पर एक विमानन और एयरोस्पेस विश्वविद्यालय की स्थापना का प्रस्ताव रखा, जो अब चालू है और बांग्लादेश वायु सेना की कमान के अधीन कार्य करता है।
हाल ही में मोहम्मद युनूस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने देश में आर्थिक विकास के एक हिस्से के रूप में लालमोनिरहाट सहित छह ब्रिटिश-कालीन हवाई अड्डों को पुनर्जीवित करने के लिए एक व्यापक पहल को आगे बढ़ाया है। इस योजना के तहत अन्य हवाई अड्डों में ठाकुरगांव, ईश्वर्डी, शमशेरनगर, कोमिला और बोगरा शामिल हैं।
भारत के लिए क्यों है चिंता की बात?
भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता लालमोनिरहाट और यहां चीन की बढ़ती गतिविधि को लेकर है। असल में यह भारत की सीमा के बेहद करीब तो है ही, साथ ही सिलिगुड़ी कॉरिडोर से भी नजदीक है। भारत के लिए सिलिगुड़ी कॉरिडोर या जिसे 'चिकन नेक' भी कहते हैं, उसकी सुरक्षा प्राथमिकता रही है।
यह कॉरिडोर या गलियारा पश्चिम बंगाल के उत्तरी भाग में स्थित है, और एक जगह पर तो इसकी चौड़ाई महज 22 किलोमीटर है। यह भारत के आठ पूर्वोत्तर राज्यों को शेष मुख्य भूमि से जोड़ता है। यह नागरिक और सैन्य दोनों तरह की आवाजाही के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग के रूप में कार्य करता है।
गलियारे को कोई भी खतरा भारत की पूर्वोत्तर क्षेत्र तक पहुँच पर प्रभाव डाल सकता है, जिसमें अरुणाचल प्रदेश, असम, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, मेघालय और सिक्किम शामिल हैं। नेपाल और बांग्लादेश के बीच, भूटान और चीन के करीब स्थित यह गलियारा क्षेत्रीय भूराजनीति के संदर्भ में और मौजूदा दौर में बेहद महत्वपूर्ण हो गया है।
लालमोनिरहाट को लेकर अभी चल क्या रहा है?
लालमोनिरहाट को फिर से परिचालन के लिए सक्रिय करने की चर्चा तो चल रही है लेकिन आधिकारिक तौर पर कुछ भी साफ नहीं है। बांग्लादेश की ओर यह भी साफ नहीं किया गया है कि यह पूरी तरह से क्या नागरिक उड्डयन के लिए खोला जाएगा, या फिर ट्रेनिंग या सैन्य इस्तेमाल इसका किया जा सकता है।
हालांकि, चीनी कर्मियों की मौजूदगी ने भारत को साइट पर निगरानी बढ़ाने के लिए मजबूर कर दिया है। भारतीय रक्षा अधिकारी इस बात का आकलन कर रहे हैं कि आखिरकार वहां क्या कुछ तैनात किया जा सकता हैं और इनका क्षेत्रीय सुरक्षा पर क्या असर हो सकता है।
असम ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार एक वरिष्ठ भारतीय अधिकारी ने कहा, 'ऐसी चिंताएं हैं कि इस एयर बेस का इस्तेमाल तनाव या संघर्ष के दौरान भारतीय सैन्य गतिविधियों पर नजर रखने या खुफिया जानकारी जुटाने के केंद्र के रूप में किया जा सकता है।'
चीन के साथ-साथ पाकिस्तान भी है सक्रिय
चीन पिछले कुछ महीनों में तेजी से बांग्लादेश के साथ अपनी सांठगांठ बढ़ा रहा है। इसके अलावा मीडिया रिपोर्ट के अनुसार चीनी डेलिगेशन से पहले पाकिस्तानी सेना और इंटेलिजेंस ने भी बांग्लादेश सीमा पर स्थित स्थलों का दौरा किया है।
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार चीनी कंपनियों ने हाल के महीनों में उत्तरी बांग्लादेश में खुद का का काफी विस्तार किया है। रंगपुर के पास की परियोजनाओं में जो लालमोनिरहाट के करीब है, वहां विनिर्माण इकाइयाँ, एक सौर ऊर्जा सुविधा और एक प्रस्तावित सैटेलाइट सिटी जैसे प्रोजेक्ट शामिल हैं। इसमें चीन की बड़ी भूमिका है।
ढाका स्थित एक पत्रकार ने टीओआई से नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्तों पर बताया कि 'इन कारखानों का संचालन लगभग पूरी तरह से चीनी कर्मियों द्वारा किया जाता है, जिसमें स्थानीय श्रमिकों की न्यूनतम भागीदारी होती है।'
इस बीच चीन अभी बांग्लादेश के सैन्य उपकरणों का प्रमुख आपूर्तिकर्ता बना हुआ है। मौजूदा शासन के तहत ढाका और बीजिंग के बीच बढ़ते रक्षा संबंधों ने भी भारतीय चिंताओं को बढ़ा दिया है।