वाशिंगटनः अमेरिकी विदेश विभाग ने विदेशी छात्रों की सोशल मीडिया गतिविधियों की निगरानी के लिए एक व्यापक पहल की शुरुआत की है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस पहल के तहत कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग किया जा रहा है ताकि सोशल मीडिया पोस्ट्स के जरिए कथित रूप से हमास या अन्य आतंकवादी संगठनों के समर्थन के संकेतों की पहचान की जा सके। अगर ऐसा कोई सबूत मिलता है, तो इसे छात्रों का वीजा रद्द करने और उन्हें देश से निर्वासित करने का आधार बनाया जाएगा।
Axios की रिपोर्ट के अनुसार, इस अभियान को "Catch and Revoke" नाम दिया गया है, जो अमेरिका में विदेशी छात्रों के भाषण और गतिविधियों की निगरानी का अब तक का सबसे बड़ा अभियान माना जा रहा है।
Catch and Revoke अभियान क्या है?
एआई-आधारित टूल हजारों छात्र वीजा धारकों की ऑनलाइन पोस्ट्स की जांच कर रहे हैं। अगर कोई पोस्ट हमास के प्रति सहानुभूति प्रकट करती है या इजराइल विरोधी प्रदर्शन का समर्थन करती है, तो उसे निशाना बनाया जा सकता है।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि सोशल मीडिया पोस्ट्स में "इंतिफादा" (Intifada) जैसे शब्दों का इस्तेमाल भी निगरानी के दायरे में है। यह शब्द फिलिस्तीनियों द्वारा इजराइली कब्जे के खिलाफ सशस्त्र और अहिंसक दोनों तरह के प्रतिरोध प्रदर्शनों के लिए प्रयोग किया जाता है।
विदेश मंत्री मार्को रूबियो, जो लंबे समय से सख्त इमिग्रेशन नियमों के समर्थक रहे हैं, ने इस पहल के प्रति अपना समर्थन जताया है। एक बयान में उन्होंने कहा था, "हम ऐसे विदेशी नागरिकों को अपने देश में प्रवेश या यहां रहने की अनुमति नहीं दे सकते जो आतंकवादी समूहों का समर्थन करते हैं या हमारी सड़कों पर 'इंतिफादा' के नारे लगाते हैं।"
AI कैसे तय करेगा कि किसे निर्वासित किया जाए?
Axios की रिपोर्ट के अनुसार, कार्यक्रम के तहत वीजा धारकों के रिकॉर्ड्स को आंतरिक सरकारी डेटाबेस से मिलाया जा रहा है। इसका उद्देश्य उन व्यक्तियों की पहचान करना है जिन्हें बाइडेन प्रशासन के कार्यकाल में गिरफ्तार किया गया था या अमेरिकी विश्वविद्यालयों से निलंबित किया गया था।
सरकारी अधिकारियों ने कहा कि उन्हें "बाइडेन प्रशासन के दौरान वीजा रद्द होने के शून्य मामले मिले"। उन्होंने इसे "कानून प्रवर्तन के प्रति आंखें मूंदने वाला रवैया" करार दिया।
इस अभियान को लागू करने के लिए न्याय विभाग (Justice Department) और गृह सुरक्षा विभाग (Homeland Security Department) समेत कई संघीय एजेंसियों ने आपस में सहयोग किया है।
अभियान की आलोचना और विरोध
इस पहल की वजह से विदेशी छात्रों के बीच पहले से ही भय का माहौल देखा जा रहा है। कई छात्र इजराइल के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों से दूर रहने की कोशिश कर रहे हैं ताकि सरकार की निगरानी से बचा जा सके।
अमेरिकन-अरब एंटी-डिस्क्रिमिनेशन कमेटी के प्रमुख अबेद अयूब ने चेतावनी दी है कि यह पहल "मौलिक अधिकारों पर हमला" है। उन्होंने कहा, "यह सिर्फ विदेशी छात्रों का मुद्दा नहीं है, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है। प्रशासन इस पहल के जरिए अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर रहा है।"
उन्होंने इस पहल की तुलना 1972 में राष्ट्रपति निक्सन के शासनकाल में शुरू किए गए विवादास्पद ऑपरेशन बाउल्डर (Operation Boulder) से की, जिसमें फिलिस्तीनी समर्थक छात्र समूहों की निगरानी की गई थी।
अयूब ने कहा, "अब यह पहल और भी खतरनाक है क्योंकि इसमें एआई तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सेंसर करने के लिए दोषपूर्ण तकनीक का सहारा ले रही है।"
क्या कहती है सरकार?
हालांकि अमेरिकी प्रशासन ने इस पहल को आतंकवाद विरोधी अभियान के रूप में पेश किया है, लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह नीति अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिए इस्तेमाल की जा रही है।
अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि इस पहल का उद्देश्य केवल उन व्यक्तियों की पहचान करना है जो हिंसक समूहों का समर्थन करते हैं।