नई दिल्ली: बांग्लादेश के राष्ट्रीय पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तक बोर्ड (NCTB) ने 2025 के शैक्षणिक वर्ष के लिए स्कूली किताबों में बड़े बदलाव किए हैं। अगस्त 2024 में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के पद से हटने के बाद इन संशोधनों को लागू किया गया। यह बदलाव अंतरिम सरकार द्वारा बांग्लादेश के राष्ट्रीय आख्यान को पुनर्परिभाषित करने की कोशिश का हिस्सा माने जा रहे हैं।

मुक्ति संग्राम में भारत की भूमिका सीमित

संशोधित पाठ्यपुस्तकों में बांग्लादेश की आज़ादी में भारत के योगदान को स्वीकार किया गया है, लेकिन उसकी भूमिका को सीमित कर दिया गया है। सबसे बड़ा बदलाव भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बांग्लादेश के संस्थापक राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान की दो ऐतिहासिक तस्वीरों को हटाना है। इनमें 1972 में कोलकाता और ढाका में हुए समारोहों की तस्वीरें शामिल थीं, जो अब किताबों में नहीं दिखेंगी।

हालांकि, भारतीय सेना और मुक्ति वाहिनी की भूमिका को बरकरार रखा गया है, जिसमें 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण का चित्रण भी शामिल है। लेकिन भारत के सैन्य रणनीति, आर्थिक और कूटनीतिक समर्थन को सीमित रूप में प्रस्तुत किया गया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि बांग्लादेश सरकार अब अपने इतिहास को नए दृष्टिकोण से देखना चाहती है और इसे भारत-केंद्रित आख्यान से अलग करने की कोशिश कर रही है।

शेख हसीना और मुजीबुर रहमान की भूमिका कम की गई

सबसे महत्वपूर्ण बदलावों में से एक है कि शेख हसीना को सभी पाठ्यपुस्तकों से पूरी तरह से हटा दिया गया है। पहले उनकी तस्वीरें और संदेश कक्षा की किताबों के पिछले कवर पर होते थे, लेकिन अब उनकी जगह जुलाई 2024 के विद्रोह की छवियां लगा दी गई हैं।

इसके अलावा, शेख मुजीबुर रहमान से संबंधित कई महत्वपूर्ण अध्यायों को या तो हटा दिया गया है या फिर से लिखा गया है। पहले, स्कूली किताबों में शेख मुजीब को बांग्लादेश के "एकमात्र नायक" के रूप में प्रस्तुत किया जाता था, लेकिन अब उनके योगदान को अन्य नेताओं के बीच संतुलित रूप से बांट दिया गया है।

इतिहास की पुनर्व्याख्या और आगे की राजनीति

सरकार ने 57 विशेषज्ञों की टीम के जरिए 441 पाठ्यपुस्तकों में बदलाव किया है, जिससे 40 करोड़ से अधिक नई किताबें प्रकाशित हुई हैं। अब पाठ्यपुस्तकों में भूटान को पहला देश बताया गया है, जिसने 3 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश की स्वतंत्रता को मान्यता दी थी, जबकि पहले यह श्रेय भारत को दिया जाता था।

इस बीच, बांग्लादेश की राजनीति में अस्थिरता बनी हुई है। वर्तमान सरकार ने न्यायपालिका और प्रशासनिक सुधारों के लिए आयोगों का गठन किया है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि 2025 के अंत या 2026 की शुरुआत में बांग्लादेश में चुनाव हो सकते हैं।