ढाका: बांग्लादेश की अंतरिम सरकार द्वारा मंगलवार की रात को देश की सेना को विशेष कार्यकारी मजिस्ट्रेट की शक्तियां दी गई हैं। इस संबंध में बांग्लादेश के लोक प्रशासन मंत्रालय द्वारा एक गजट अधिसूचना जारी किया गया है।
बांग्लादेश में कानून और व्यवस्था को बेहतर बनाने और देश के कई हिस्सों में हो रहे हमलों को रोकने के लिए यह कदम उठाया गया है। सेना को दो महीने के लिए यह अधिकार दिए गए हैं और कहा गया है कि इसके बाद अगर देश में हालात सही हो जाते हैं तो इस व्यवस्था को आगे खत्म कर दी जाएगी।
इस निर्देश को तत्काल प्रभाव से लागू किया गया है। हालांकि सरकार के इस आदेश की आलोचना भी हुई है।
सेना की अधिकारियों को क्या अधिकार दिए गए हैं
एक रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश की दंड प्रक्रिया संहिता या CrPC की धारा 17 सेना के अधिकारियों को विशेष कार्यकारी मजिस्ट्रेट का दर्जा प्रदान करता है। इसके तहत ये अधिकारी जिला मजिस्ट्रेट या डिप्टी कमिश्नर के अधीन होंगे।
यह धारा सेना के अधिकारियों को लोगों को गिरफ्तार करने और उन्हें जेल में डालने का अधिकार देता है। इससे उन्हें गैरकानूनी सभाओं को भी तितर-बितर करने का अधिकार मिलता है।
अधिकार के तहत गोली भी चला सकते हैं अधिकारी
यही नहीं अंतरिम सरकार के एक सलाहकार ने मंगलवार को कहा कि इन अधिकारियों को आत्मरक्षा और ज्यादा जरूरी होने पर उन्हें अपनी रक्षा में गोली चलाने का भी अधिकार दिया गया है।
विधि सलाहकार आसिफ नजरुल ने कहा है कि हाल में देश के कई जगहों पर हमले हुए हैं जिससे हालात बेकाबू होते जा रहा है। उनके अनुसार, इन हमलों में औद्योगिक क्षेत्रों को खास तौर पर निशाना बनाया जा रहा है।
हालात को काबू करने के लिए सेना के अधिकारियों को यह अधिकार दिए गए हैं। उन्होंने कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि सेना के जवान इस अधिकार का गलत इस्तेमाल नहीं करेंगे।
पुलिस की गौर मौजूदगी के कारण देश भर में अशांति
अंतिरम सरकार के एक और सलाहकार ने बताया है कि पांच अगस्त को जब देश में शेख हसीना की सरकार गिरी थी तब से सड़कों से पुलिस अनुपस्थित है। ऐसा इसलिए क्योंकि कोटा विरोधी विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस पर अधिक बल प्रयोग करने और प्रदर्शनकारियों को निशाना बनाने का आरोप लगा था।
इसके चलते उस समय प्रदर्शनकारियों द्वारा पुलिस पर कई हमले भी किए गए थे जिसमें उनकी गाड़ियों और उनकी संपत्तियों को आग लगा दी गई थी।
सुलह के बाद भी ड्यूटी पर नहीं लौटे हैं अधिकारी
यही नहीं पुलिस के रूकने जगहों पर भी तोड़फोड़ की गई थी और कई अधिकारों को भी भीड़ द्वारा निशाना बनाया गया था। देश में पुलिस पर इस तरह के हमलों के बाद बांग्लादेश पुलिस अधीनस्थ कर्मचारी संघ ने छह अगस्त को अनिश्चितकालीन हड़ताल की घोषणा की थी।
बाद में गृह मंत्रालय के तत्कालीन सलाहकार ब्रिगेडियर जनरल (सेवानिवृत्त) एम सखावत हुसैन के साथ कई बैठकों हुई थी। इसके बाद 10 अगस्त को संघ ने हड़ताल वापस ले ली थी। इसके बाद भी अभी तक कई पुलिस अधिकारी काम पर नहीं लौटे हैं।
आधे से ज्यादा पुलिस थानों पर हुए हैं हमले-दावा
पुलिस सूत्रों के अनुसार, उस दौरान 664 में से 450 से भी ज्यादा पुलिस थानों पर भीड़ द्वारा हमला किया गया था और उनकी संपत्तियों को भी टारगेट किया गया था। पुलिस मुख्यालय के अनुसार, एक अगस्त से लेकर मंगलवार तक जब यह अधिसूचना जारी हुआ है, कुल 187 पुलिस कर्मचारी अपनी ड्यूटी पर वापस नहीं लौटे हैं।
सरकार के आदेश की हुई है आलोचना
पूर्व सचिव अबू आलम मोहम्मद शाहिद खान ने कहा कि मौजूदा कानून और व्यवस्था की स्थिति को देखते हुए मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार का निर्णय को सही ठहराया है। उन्होंने कहा है कि यह फैसला सही समय पर लिया गया है और यह काफी जरूरी भी था।
खान का कहना है कि इससे देश की कानून व्यवस्था में सुधार होगी। हालांकि बांग्लादेश के वरिष्ठ वकील जेडआई खान पन्ना ने सरकार के इस फैसले की आलोचना की है। पन्ना ने तर्क दिया है कि इस निर्देश से मजिस्ट्रेट की भूमिका कमजोर हो सकती है।
जेडआई खान पन्ना ने यह भी कहा है कि नागरिकों के मामलों में सेना के जवानों को शामिल करने से देश की समस्या और भी बढ़ सकती है।
क्यों सेना के अधिकारियों को दिया गया है यह अधिकार
जब से पड़ोसी देश बांग्लादेश में तख्तापलट हुआ है तब से वहां पर अशांति है। देश में पिछले कई हफ्तों में भीड़ द्वारा भारी हिंसा और अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों पर हमलों की घटना में काफी इजाफा हुआ है।
इन सब घटनाओं को देखते हुए देश में शांति की व्यवस्था को बनाए रखने के लिए सेना के अधिकारियों को यह अधिकार दिए गए हैं।
लोक प्रशासन मंत्रालय और गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया है कि सेना के जवानों को इस तरह के अधिकार देश में कानून और व्यवस्था बनाए रखने और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए दिए जाते हैं।
कब कब दिए गए हैं सेना को ऐसे अधिकार
बता दें कि इससे पहले दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान और एचएम इरशाद द्वारा सेना को इस तरह के अधिकार दिए गए थे। बंग्लादेश के अंतरिम सरकार के एक सलाहकार ने कहा है कि देश में हाल में तख्तापलट के बाद यह पहली बार है कि सेना के जवानों को इस तरह के अधिकार दिए गए हैं।