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नई दिल्ली: आमतौर पर कहीं भी प्रोमोशन किसी शख्स को या टीम को तब मिलती है, जब उसका काम बेहद शानदार रहता है। हालांकि, पाकिस्तान में कहानी इसके उलट है। पाकिस्तान से मंगलवार (20 मई) को खबर आई कि वहां की शहबाज शरीफ सरकार ने अपने आर्मी चीफ जनरल असीम मुनीर को पदोन्नति देने और फील्ड मार्शल का ओहदा देने का फैसला किया है। यह फैसला भारत और पाकिस्तान के बीच हाल में हुई झड़प के बाद आया है।
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर चलाया था और पाकिस्तान में आतंक के 9 ठिकानों को तबाह किया। इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने भारत के कुछ सैन्य ठिकानों और रिहायशी इलाकों पर हवाई हमला किया और एलओसी के पास से भी गोले बरसाए गए। जिसका जवाब भारतीय सेना ने भी दिया। इस झड़प के दौरान भारत ने हवाई हमले में पाकिस्तान के कुछ अहम एयरबेस को भी निशाना बनाया और व्यापक नुकसान पहुंचाया।
एक तरह से पाकिस्तान की बुरी तरह पिटाई हुई। हालांकि, पाकिस्तान की सरकार और सेना इस झड़प को वहां के लोगों के बीच अपनी जीत बताकर पेश कर रही है और इसके लिए फर्जी सूचनाओं तक का सहारा लिया जा रहा है। हार को जीत बताने की कोशिश की इसी कड़ी में अब जनरल मुनीर को प्रोमोशन दिए जाने की बात सामने आई है। हालांकि, इससे कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं।
पाकिस्तान के इतिहास में दूसरे फील्ड मार्शल
एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि जनरल मुनीर को पदोन्नत करने का फैसला प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में लिया गया। यहां गौर करने वाली बात ये भी है मुनीर की पदोन्नति से वे देश के इतिहास में इस पद पर पहुंचने वाले दूसरे अधिकारी बन गए हैं। पाकिस्तान में सरकार के ऊपर भी सेना की चलती है और ये बात किसी से छुपी नहीं है। ऐसे में क्या सेना या जनरल मुनीर की ओर से इस प्रोमोशन का दबाव बनाया गया, इसे लेकर सवाल उठ रहे हैं।
मुनीर का फील्ड मार्शल बनने का मतलब है कि वे अब ताउम्र वर्दी पहन सकेंगे। साथ ही उसकी शक्तियां और बढ़ेंगी। इससे पहले पाकिस्तान में इस पद पर पहुंचने वाले आखिरी और एकमात्र पाकिस्तानी जनरल अयूब खान थे, जिन्होंने सैन्य तख्तापलट के बाद राष्ट्रपति पद संभालने के एक साल बाद 1959 में खुद को ही इस पद पर प्रोमोट कर किया था।
जरनल मुनीर: मदरसा से फील्ड मार्शल तक
फील्ड मार्शल मुनीर के लिए यह पदोन्नति उनके करियर में एक बहुत बड़ा बदलाव है। दरअसल, मुनीर की पढ़ाई-लिखाई मदरसे में हुई है और वे वहां से निकले पहले पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष हैं। वह 'उच्च माने वाले' सैयदों के परिवार से आते हैं, जो अपने वंश को सीधे पैगंबर मोहम्मद से जोड़ता है।
यह भी बताया जाता है कि वह अक्सर पाकिस्तानी सैनिकों से ऐसे लहजे में बात करते हैं जो सैन्य प्रशिक्षण से आए अधिकांश अधिकारियों के लहजे से काफी अलग है। असल में मुनीर अक्सर जंग और उसके लक्ष्यों के बारे में बात करते हुए 'धार्मिक भाषा' बोलने लगते हैं, और अक्सर अपनी मूल भाषा पंजाबी में बोलते हैं।
उदाहरण के तौर पर भारत में पहलगाम आतंकी हमले से छह दिन पहले मुनीर ने एक कार्यक्रम में कश्मीर और मुसलमानों को हिंदुओं से अलग बताने सहित टू नेशन थ्योरी की बात कही थी। कश्मीर पर पाकिस्तान के रुख बात करते हुए उन्होंने इसे 'गले की नस' बताया था। उन्होंने लोगों से कहा कि वे अपने बच्चों को पाकिस्तान बनने की कहानियां सुनाए ताकि वे यह न भूलें कि वे 'हिंदुओं से अलग' हैं।
मुनीर ने अपने भाषण में कहा था, 'हमारा रुख बिल्कुल साफ है, यह (कश्मीर) हमारी गले की नस थी, यह हमारी गले की नस रहेगी। हम इसे नहीं भूलेंगे। हम अपने कश्मीरी भाइयों को उनके संघर्ष में नहीं छोड़ेंगे।'
मुनीर ने आगे कहा, 'हमारे पूर्वजों का मानना था कि हम जीवन के हर पहलू में हिंदुओं से अलग हैं। हमारा धर्म अलग है। हमारे रीति-रिवाज अलग हैं। हमारी परंपराएं अलग हैं। हमारे विचार अलग हैं। हमारी महत्वाकांक्षाएं अलग हैं... यही दो-राष्ट्र सिद्धांत की नींव थी। यह इस विश्वास पर आधारित था कि हम दो राष्ट्र हैं, एक नहीं।'
आसिम मुनीर का प्रोमोशन और इसके मायने?
मुनीर को फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत करने के पाकिस्तान सरकार के फैसले ने कई लोगों को चौंका दिया है। पाकिस्तानी अखबार डॉन के अनुसार पीएमओ के बयान में कहा गया है, 'पाकिस्तान सरकार ने देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने और मरक-ए-हक और ऑपरेशन बन्यानुम मरसूस (Bunyanum Marsoos) के दौरान उच्च रणनीति और साहसी नेतृत्व के जरिए दुश्मन को हराने के लिए जनरल सैयद असीम मुनीर (निशान-ए-इम्तियाज मिलिट्री) को फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत करने को मंजूरी दे दी है।'
हालांकि, हकीकत इससे बिलकुल अलग है। सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि पाकिस्तान के एयरबेस और आतंकी ठिकानों को भारी नुकसान पहुंचा है। इसके अलावा, चीन और तुर्की निर्मित ड्रोन और मिसाइलों - जैसे कि यिहा ड्रोन और पीएल-15 मिसाइलों - के जरिए भारत पर हमला करने की उसकी कई कोशिशों को भारतीय सेना ने नाकाम कर दिया। साथ ही भारत ने पाकिस्तान के एयर डिफेंस सिस्टम की भी पोल खोलकर रख दी।
विशेषज्ञों और पाकिस्तान पर नजर रखने वालों का मानना है कि मुनीर को फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत करना दरअसल पाकिस्तानी सेना द्वारा अपने पक्ष में समर्थन जुटाने की एक चाल हो सकती है। इसके अलावा, यह बात दर्शाती है कि पाकिस्तान की मौजूदा सरकार सेना के प्रति कितनी अधीन है।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार मेजर माणिक एम जॉली (सेवानिवृत्त) ने कहा, 'मुनीर को फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत करना यह साबित करता है कि पाकिस्तान की सरकार और नागरिक प्रशासन कितना असहाय और बेकार है। सेना अपनी जीत की कहानी को और बड़ा कर रही है और अपने पद को बढ़ाकर, पाकिस्तान पर अपनी पकड़ और नियंत्रण मजबूत कर रही है। मुशर्रफ 2.0 लोड हो रहा है।'
कुछ जानकार मानते हैं कि मुनीर की पदोन्नति उन्हें अब भविष्य में किसी भी आंतरिक चुनौती से बचाएगी, जिसमें संभावित कोर्ट मार्शल भी शामिल है। साथ ही यह अभी स्पष्ट नहीं है कि क्या यह पद उन्हें सेवानिवृत्ति की आयु सीमा से छूट देता है। मुनीर को पहले ही नवंबर 2024 में 2027 तक के लिए अपने कार्यकाल में विस्तार मिल चुका है।
अयूब खान से मिलती जुलती कहानी?
मुनीर के फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत होने के साथ ही वे फील्ड मार्शल अयूब खान के बाद देश में दूसरे शख्स बन गए हैं, जिन्हें यह पद मिला है। अयूब खान पाकिस्तान के पहले सैन्य शासक के तौर पर जाने जाते हैं। साल
1958 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने मार्शल लॉ घोषित किया और जनरल अयूब खान को चीफ मार्शल लॉ एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त किया।
मिर्जा का मानना था कि अयूब उनके वफादार बने रहेंगे, और वे राष्ट्रपति पद से जुड़े रहेंगे। इसके बजाय, अयूब ने अपनी अलग योजना तैयार कर ली थी। उन्होंने खुद राष्ट्रपति पद पर कब्जा किया और पाकिस्तान के पहले सैन्य शासक बने। जब अयूब ने 1959 में सत्ता संभाली, तो उन्होंने सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए सबसे पहले खुद को फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया। अयूब खान का शासन 1969 तक रहा।
बहरहाल, अब यह देखना बाकी है कि क्या मुनीर भी अयूब के पदचिन्हों पर चलते हुए देश की कमान सीधे अपने हाथ में लेंगे? वैसे पाकिस्तान पर करीब से नजर रखने वाले मानते हैं कि असीम मुनीर को फील्ड मार्शल बनाया जाना दिखाता है कि इस देश की सेना ने अपने इतिहास से कुछ नहीं सीखा। मनीकंट्रोल की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ताजा घटनाक्रम बताता है कि पाकिस्तानी सेना को लगता है कि अब भी हिंदू विरोधी बयानबाजी और गुपचुप तरीके से जिहाद ऑपरेशन और आतंकियों को शह देने से आंतरिक विफलताओं को छिपाया जा सकता है।