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अंग्रेजी वेबसाइट द इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक, यह कदम गूगल पर अवैध एकाधिकार के आरोपों के बाद उठाया जा रहा है। खबर में बताया गया है कि न्याय विभाग ने पहले कहा था कि गूगल के व्यवसाय मॉडल में भारी बदलाव की जरूरत है।
इसमें यह भी शामिल हो सकता है कि कंपनी अपने एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम या क्रोम ब्राउजर को अलग कर दे। दावा यह भी है कि अमेरिकी न्याय विभाग ने कोर्ट में कहा है कि वह क्रोम के अलावा गूगल की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम से जुड़े कदमों पर भी विचार कर रहा है।
गूगल ने कदम का विरोध कर बताया "कट्टरपंथी"
अदालत में दायर एक याचिका के जरिए इस पर विचार किया जा रहा है। गूगल के विभाजन की मांग अमेरिकी सरकार की तकनीकी दिग्गज कंपनियों के खिलाफ विनियामक कार्रवाई में एक ऐतिहासिक बदलाव होगा।
मीडिया की खबरों के मुताबिक, गूगल ने इस कदम का विरोध किया है और इसको "कट्टरपंथी" बताया है। वहीं, उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि न्याय विभाग का यह अनुरोध व्यावहारिक रूप से कठिन और कानूनी सीमाओं को पार करने वाला है।
अमेरिकी जिला न्यायालय ने गूगल को पाया था दोषी
यह मामला अगस्त में शुरू हुए एंटीट्रस्ट ट्रायल से जुड़ा है, जिसमें अमेरिकी जिला न्यायालय ने गूगल को अवैध एकाधिकार का दोषी पाया था। इस ट्रायल में गूगल और अन्य कंपनियों के बीच गोपनीय समझौतों की भी जांच हुई, जिनसे गूगल ने स्मार्टफोन और अन्य डिवाइस पर अपना सर्च इंजन डिफॉल्ट विकल्प के रूप में स्थापित किया था।
रिपोर्ट के अनुसार, इस व्यवस्था से गूगल को यूजर डेटा पर काफी नियंत्रण मिल गया था, जिसने उसे तकनीकी बाजार में अपनी पकड़ मजबूत करने में मदद की। गूगल के पास साल 2020 में यूएस ऑनलाइन सर्च मार्केट का 90 फीसदी हिस्सा था, जिसमें मोबाइल पर यह आंकड़ा 95 फीसदी तक पहुंच गया था।
न्याय विभाग के संभावित उपायों में यह भी शामिल है कि गूगल को अपनी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक का उपयोग सीमित करना होगा और एंड्रॉइड को अन्य उत्पादों से अलग करना होगा।
हालांकि, गूगल इस फैसले के खिलाफ अपील करने की योजना बना रहा है, जिससे यह मामला वर्षों तक खिंच सकता है और संभवतः सर्वोच्च न्यायालय तक जा सकता है।