नई दिल्ली: श्रीलंका की नई सरकार के बदलते रुख के चलते अडानी ग्रीन एनर्जी ने अपनी पवन ऊर्जा परियोजनाओं से हटने का फैसला किया है। कंपनी ने श्रीलंका के निवेश बोर्ड (BOI) को पत्र भेजकर अपने निर्णय की जानकारी दी। श्रीलंका सरकार बिजली दरों को कम करने के लिए सौदे पर फिर से बातचीत करने की योजना बना रही थी, जिसके कारण अडानी समूह ने इस परियोजना से सम्मानपूर्वक हटने का निर्णय लिया। हालांकि, कंपनी ने यह भी स्पष्ट किया कि वह भविष्य में श्रीलंका के विकास कार्यों में भाग लेने के लिए तैयार रहेगी।
श्रीलंका सरकार के रुख में बदलाव से बदली परिस्थितियां
श्रीलंका सरकार ने जनवरी 2025 में घोषणा की थी कि वह अडानी समूह से बिजली खरीद की कीमत को 8.26 सेंट प्रति किलोवाट-घंटा से घटाकर 6 सेंट करने के लिए बातचीत शुरू करेगी। इसी के तहत, एक नई कैबिनेट वार्ता समिति और परियोजना समिति गठित की गई थी। अडानी समूह ने इस बदलाव पर आपत्ति जताते हुए कहा कि वह श्रीलंका की संप्रभुता का सम्मान करता है, लेकिन परियोजना की शर्तों में बार-बार बदलाव के कारण इसे जारी नहीं रख सकता।
मई 2024 में, श्रीलंका की पूर्ववर्ती सरकार ने 484 मेगावाट की पवन ऊर्जा परियोजना को 8.26 सेंट प्रति यूनिट की दर से मंजूरी दी थी, लेकिन नई सरकार ने सत्ता में आते ही इस समझौते की समीक्षा करने का निर्णय लिया।
अमेरिकी जांच और पर्यावरणीय चिंताओं से विवाद गहराया
अडानी समूह की परियोजनाएं पहले से ही अमेरिका में धोखाधड़ी और रिश्वतखोरी के आरोपों की जांच के दायरे में थीं। श्रीलंका सरकार ने इन आरोपों के बाद अडानी समूह के बिजली खरीद समझौते को रद्द कर दिया। इसके अलावा, कार्यकर्ताओं और पर्यावरणविदों ने भी पर्यावरणीय प्रभाव और ऊंची बिजली दरों को लेकर इस परियोजना पर सवाल उठाए।
श्रीलंका की अदालत में मन्नार और पूनरीन क्षेत्रों में प्रस्तावित पवन ऊर्जा संयंत्रों को चुनौती दी गई थी, जिससे यह मामला और जटिल हो गया। कार्यकर्ताओं का कहना था कि स्थानीय ऊर्जा प्रदाता अडानी समूह की तुलना में कम कीमत पर बिजली उपलब्ध करा सकते हैं, जिससे यह सौदा श्रीलंका के लिए घाटे का सौदा साबित हो सकता था।
राजनीतिक दबाव और श्रीलंका सरकार का बदलता रवैया
श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दौरान अनुरा कुमारा दिसानायके ने कहा था कि अगर वे सत्ता में आते हैं, तो अडानी समूह की पवन ऊर्जा परियोजना को रद्द कर देंगे। उन्होंने इस परियोजना को श्रीलंका की "ऊर्जा संप्रभुता के लिए खतरा" बताया था।
इसके अलावा, जून 2022 में श्रीलंका के विद्युत बोर्ड के एक अधिकारी ने संसदीय समिति में बयान दिया था कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तत्कालीन राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे पर अडानी समूह को यह परियोजना देने का दबाव डाला था। हालांकि, बाद में राजपक्षे और संबंधित अधिकारी दोनों ने इस दावे को खारिज कर दिया।
अब, अडानी समूह के इस फैसले से भारत-श्रीलंका व्यापारिक संबंधों पर भी असर पड़ सकता है। हालांकि, कंपनी ने श्रीलंका सरकार को आश्वस्त किया है कि अगर भविष्य में सरकार चाहे तो वह अन्य विकास परियोजनाओं में सहयोग के लिए तैयार है।