तेल अवीवः इजराइल की अर्थव्यवस्था, जो कभी उभरती हुई और सुदृढ़ मानी जा रही थी, अब लंबे समय से चल रहे युद्ध के कारण गंभीर संकट में फंस चुकी है। गाजा से युद्ध के बीच हिजबुल्ला के साथ अब उसकी जमीनी लड़ाई और ईरान के साथ ताजा तनाव ने इजराइल के आर्थिक चुनौतियों को और बड़ा कर दिया है।
जीडीपी, जो पहले लगातार बढ़ रही थी, अब बुरी तरह प्रभावित हुई है। 2024 की दूसरी तिमाही में इजराइल की जीडीपी वृद्धि दर केवल 0.7% रही, जो आर्थिक विशेषज्ञों की 5.2% अधिक की उम्मीद से काफी नीचे थी। 16 सितंबर को इजराइल के वित्त मंत्री बेजलेल स्मोट्रिच को एक बार फिर से आपातकालीन घाटा बढ़ाने की मंजूरी के लिए विधायकों से अपील करनी पड़ी, जिससे देश की बिगड़ती वित्तीय स्थिति साफ दिखाई देती है।
मौजूदा स्थिति को वित्त मंत्री बेजलेल स्मोट्रिच द्वारा प्रस्तुत 2025 के बजट योजना से समझा जा सकता है। उन्होंने हाल ही में सरकार की नई बजट योजना पेश की, जिसमें व्यापक खर्च कटौती की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य युद्ध के खर्चों से उत्पन्न हुए आर्थिक घाटे को नियंत्रित करना है।
बजट योजना और आर्थिक घाटे का सामना
इस योजना के तहत 2025 में घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य रखा गया है, जो 2024 में 6.6 प्रतिशत था। लेकिन सबसे बड़ी चिंता गाजा में चल रहे सैन्य अभियानों की भारी लागत है, जिसके चलते अगस्त 2023 से जुलाई 2024 तक इजराइल का घाटा जीडीपी के 8.1 प्रतिशत तक पहुँच चुका है जो युद्ध से पहले के अनुमान से तीन गुना अधिक है। इससे निवेशकों की चिंता और गहरा गई है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने पहले ही इजराइल की रेटिंग घटा दी है, और अगर युद्ध लंबा खिंचा, तो इसमें और गिरावट हो सकती है।
मूडीज द्वारा इजराइल की क्रेडिट रेटिंग में कटौती
पिछले दिनों मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने इजराइल की क्रेडिट रेटिंग को “A2″ से घटाकर “Baa1″ कर दिया। रेटिंग एजेंसी ने चेतावनी दी है कि यदि हिजबुल्लाह के साथ तनावपूर्ण स्थिति पूर्ण युद्ध में बदल जाती है, तो आगे और गिरावट संभव है। उधर, अहरोन इंस्टीट्यूट का अनुमान है कि हिजबुल्लाह के साथ युद्ध से 3.1% आर्थिक संकुचन हो सकता है। इस बीच, बैंक ऑफ इजराइल घाटे को कम करने के लिए खर्च में कटौती और कर वृद्धि की सिफारिश कर रहा है।
युद्धकाल में किसी भी देश की अर्थव्यवस्था संतुलन की नाजुक स्थिति में होती है। सरकार को अपनी सेना का वित्तपोषण करना होता है और यह अक्सर भारी घाटे का कारण बनता है। इजराइल के लिए सबसे बड़ा खतरा यह है कि यह संघर्ष यरुशलम और तेल अवीव जैसे वाणिज्यिक केंद्रों तक फैल सकता है। लेकिन उत्तरी इजराइल में सीमित संघर्ष भी उसकी अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर हो सकता है।
स्मोट्रिच ने युद्ध की आर्थिक क्षति का जिक्र करते हुए कहा कि यह इजराइल के इतिहास का सबसे लंबा और सबसे महंगा युद्ध है, जिसकी अनुमानित लागत 200-250 बिलियन शेकेल (इजराइल की मुद्रा) (लगभग 54-68 बिलियन डॉलर) के बीच हो सकती है।
युद्ध के बढ़ते खतरों से निवेशकों की चिंता
23 सितंबर को इजराइल ने लेबनान की सीमा पर हवाई हमले किए, जिसमें 558 लोग मारे गए। यह हमला उस समय हुआ जब हिजबुल्लाह द्वारा इजराइल के खिलाफ रॉकेट हमले पहले से हो रहे थे। इसने निवेशकों में गहरी चिंता पैदा कर दी है, और विदेशी निवेश की दर गिरती जा रही है। मई से जुलाई के बीच इजराइली बैंकों से विदेशी संस्थानों में $2 बिलियन (लगभग ₹167.94 अरब) का धन स्थानांतरित किया गया, जो पिछले साल की तुलना में दोगुना है। इससे इजराइल के आर्थिक नीति निर्माताओं के सामने बड़ी चुनौतियाँ खड़ी हो गई हैं।
रोजगार और विकास की चुनौतियाँ
युद्ध की शुरुआत के बाद से, इजराइल की अर्थव्यवस्था को श्रमिकों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। अक्टूबर 7 के हमलों के बाद 80,000 फिलिस्तीनी श्रमिकों को काम करने से रोक दिया गया था, जिससे निर्माण उद्योग 40% तक सिकुड़ गया। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि इजराइल ने श्रमिकों की कमी को पूरा करने के लिए भारत और श्रीलंका से श्रमिकों को लाने की कोशिश की, लेकिन फिर भी प्रमुख नौकरियों में खालीपन बना हुआ है।
दूसरी तरफ, इजराइल की बेरोजगारी दर वर्तमान में 2.7 प्रतिशत है, जिससे उद्योगों में कुशल श्रमिकों की भारी कमी हो गई है। यह स्थिति विशेष रूप से छोटे और मझोले तकनीकी उद्यमों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो रही है, जो इस समय संसाधनों और वित्तपोषण के अभाव में संघर्ष कर रहे हैं।
निवेशकों की अनिश्चितता और इजराइली मुद्रा की अस्थिरता
युद्ध की लंबी अवधि ने निवेशकों के बीच अविश्वास पैदा कर दिया है। शेकल की विनिमय दर लगातार अस्थिर बनी हुई है, और इज़राइली बैंकों से पूंजी पलायन की स्थिति गंभीर होती जा रही है। बड़ी संख्या में निवेशक अब अपने धन को डॉलर या अन्य मुद्राओं में स्थानांतरित कर रहे हैं, जिससे इज़राइल की वित्तीय स्थिति और अधिक कमजोर हो गई है।
भविष्य की चुनौतियाँ और नीतिगत कठिनाइयाँ
आगे की राह इज़राइल के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण दिख रही है। अगर संघर्ष यरुशलम और तेल अवीव तक फैलता है, तो इजराइल की अर्थव्यवस्था को अपूरणीय क्षति हो सकती है। वित्तीय घाटा, जो पहले से ही जीडीपी के 8.1% तक पहुंच चुका है, और भी बढ़ सकता है। इस स्थिति में, इज़राइल के पास दो ही विकल्प बचेंगे: या तो भारी कर्ज लेना या अपने सामाजिक और सुरक्षा कार्यक्रमों में कटौती करना। दोनों ही विकल्प देश की अर्थव्यवस्था को और अधिक दबाव में डाल सकते हैं।
युद्ध के आर्थिक और क्षेत्रीय प्रभाव
गाजा में जारी युद्ध का प्रभाव न केवल इजराइल और फिलिस्तीन तक सीमित है, बल्कि इसने पूरे पश्चिमी एशिया की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएएफ) ने 2024 में मध्य पूर्व की आर्थिक वृद्धि दर को घटाकर 2.6% कर दिया है, जिसमें गाजा युद्ध और क्षेत्रीय संघर्ष के बढ़ते खतरे का प्रमुख योगदान है। इस क्षेत्र में आर्थिक अस्थिरता बढ़ती जा रही है, और यह वैश्विक वित्तीय बाजारों को भी प्रभावित कर रही है।
इजराइल और फिलिस्तीन दोनों के लिए आर्थिक संकट का समाधान तभी संभव है जब इस युद्ध का कोई स्थायी अंत हो। जब तक संघर्ष जारी रहता है, इजराइल की अर्थव्यवस्था के लिए संकट से उबरना मुश्किल होता जाएगा। केवल एक स्थायी युद्धविराम ही इजराइल, फिलिस्तीन और पूरे क्षेत्र के लिए आर्थिक पुनर्निर्माण की राह तैयार कर सकता है।