बिहार चुनाव में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद भाजपा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह समेत तीन नेताओं को पार्टी से 6 साल के लिए निलंबित कर दिया है। कटिहार की मेयर ऊषा अग्रवाल और एमएलसी अशोक अग्रवाल के खिलाफ भी पार्टी ने कार्रवाई की है। भाजपा ने आरके सिंह और अग्रवाल दोनों को नोटिस जारी कर एक सप्ताह के भीतर उनकी भूमिका पर स्पष्टीकरण मांगा है।
आरके सिंह कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी माने जाते थे, लेकिन पिछले कुछ समय से वे सक्रिय राजनीति से लगभग दूर थे। चुनाव के दौरान और उससे पहले उनके कई बयानों ने पार्टी और एनडीए नेतृत्व को असहज करने का काम किया।
भाजपा ने आरके सिंह को क्यों पार्टी से निकाला?
राज्य इकाई की ओर से जारी पत्र में कहा गया कि आरके सिंह की हाल की गतिविधियां और बयान पार्टी अनुशासन के खिलाफ थे। इसी कार्रवाई के तहत भाजपा ने विधान परिषद सदस्य अशोक अग्रवाल को भी निलंबित कर दिया है। दोनों नेताओं को एक सप्ताह के भीतर अपना पक्ष रखने के लिए कहा गया है।
पार्टी के अनुसार आरके सिंह लंबे समय से क्रॉस-पार्टी बयानबाजी कर रहे थे और चुनाव अभियान के दौरान कई एनडीए उम्मीदवारों पर गंभीर आरोप लगा रहे थे। अक्टूबर में उन्होंने फेसबुक पर एक पोस्ट डालकर मतदाताओं से “अपराधी पृष्ठभूमि वाले नेताओं” को वोट न देने की अपील भी की थी, जिसमें जदयू के अनंत सिंह और भाजपा के ही नेता व उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी का नाम भी शामिल था।
आरके सिंह कई इंटरव्यू में नीतीश सरकार पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगाते दिखे थे। उन्होंने नीतीश सरकार पर 62 हजार करोड़ रुपये के बिजली घोटाले का आरोप लगा चुके थे और इसकी सीबीआई जांच की मांग भी कर चुके थे। एक चुनावी सभा के दौरान उन्होंने तारापुर में एनडीए उम्मीदवार सम्राट चौधरी को वोट न देने की अपील भी कर दी थी। पार्टी नेताओं ने यह भी नोट किया कि शाहाबाद क्षेत्र में प्रधानमंत्री के चुनावी कार्यक्रमों से वे लगातार दूरी बनाए रहे।
आरके सिंह का असंतोष कोई नया नहीं था। 2024 लोकसभा चुनाव में आरा से हार के बाद उन्होंने आरोप लगाया था कि उनकी हार में भाजपा के ही कुछ अंदरूनी नेताओं का हाथ था। उन्होंने यह भी दावा किया था कि भाजपा नेताओं ने भोजपुरी स्टार पवन सिंह को कराकाट से निर्दलीय लड़वाने के लिए पैसे दिए, जिससे एनडीए उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा की हार हुई। हाल के वर्षों में वे पार्टी से दूरी भी बनाते दिखे और कई मौकों पर प्रशांत किशोर के बयानों का सार्वजनिक समर्थन किया।
निलंबन पत्र में साफ लिखा गया है कि सिंह की गतिविधियों से पार्टी को नुकसान पहुंचा है और यह अनुशासन का गंभीर उल्लंघन है। गौरतलब बात है कि भाजपा ने अपने नेताओं पर यह कार्रवाई तब की है जब बिहार चुनाव में 89 सीटें हासिल कर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है और एनडीए के खाते में 202 सीटें आई हैं। जबकि एनडीए की घटक दल जदयू को 85 सीट मिले हैं। इस चुनाव में महागठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा है। उसे बिहार की जनता ने सिर्फ 35 सीटों से नवाजा है। जिसमें राजद के हिस्से 25 और कांग्रेस के हिस्से सिर्फ 6 सीटें आई हैं। लेफ्ट को 3 सीटें मिली हैं।

