Saturday, November 15, 2025
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संजय यादव और रमीज कौन हैं? रोहिणी आचार्य ने परिवार छोड़ने की पोस्ट में जिन दो नामों का जिक्र किया

लालू परिवार के भीतर संजय यादव को लेकर विवाद पहले से चल रहा है। तेज प्रताप यादव कई बार सार्वजनिक रूप से संजय पर नाराजगी जता चुके हैं। उनका आरोप है कि संजय यादव के कारण ही उन्हें पार्टी से किनारे कर दिया गया।

बिहार के चुनावी नतीजे के बाद लालू परिवार में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। तेज प्रताप के परिवार और पार्टी से निकाले जाने के बाद अब रोहिणी ने राजनीति छोड़ने का ऐलान कर दिया है। यही नहीं उन्होंने परिवार से भी नाता तोड़ने की बात कही है। दिलचस्प बात है कि उन्होंने ऐसा संजय यादव और रमीज के कहने पर किया।

रोहिणी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “मैं राजनीति छोड़ रही हूं और अपने परिवार से नाता तोड़ रही हूं। संजय यादव और रमीज ने मुझसे जो करने को कहा था वही कर रही हूं। मैं पूरा दोष अपने ऊपर ले रही हूं।” उनके इस पोस्ट में दो नामों का जिक्र किया गया, जिनकी वजह से उन्होंने यह कदम उठाने का दावा किया। बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की करारी हार के ठीक अगले दिन रोहिणी का यह बयान सामने आया, जिसने पार्टी के भीतर नई हलचल पैदा कर दी।

गौरतलब है कि रोहिणी आचार्य पिछले कुछ सालों से राजद की सोशल मीडिया टीम का चेहरा मानी जाती रही हैं। 2022 में उन्होंने अपने पिता लालू प्रसाद यादव को किडनी दान की थी और इस वजह से वह लगातार चर्चा में भी रहीं। ऐसे में चुनाव परिणाम आते ही उनका अचानक राजनीति से हटना इस बात का संकेत माना जा रहा है कि राजद की अंदरूनी खींचतान अब खुलकर सामने आ चुकी है।

लालू परिवार के भीतर संजय यादव को लेकर विवाद पहले से चल रहा है। इसी साल मई में लालू प्रसाद यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को छह साल के लिए पार्टी से निकाल दिया था। तेज प्रताप यादव कई बार सार्वजनिक रूप से संजय पर नाराजगी जता चुके हैं। उनका आरोप है कि संजय यादव के कारण ही उन्हें पार्टी से किनारे कर दिया गया। तेज प्रताप कई मौकों पर उन्हें जयचंद तक कह चुके हैं। रोहिणी भी अब उसी नाराजगी को दोहराती नजर आ रही हैं। इससे पहले भी उन्होंने तेजस्वी की ‘बिहार अधिकार यात्रा’ के दौरान बस की फ्रंट सीट पर संजय के बैठने पर आपत्ति जताई थी।

संजय यादव कौन हैं?

सवाल अब यह उठ रहा है कि आखिर संजय यादव कौन हैं, जिनके कारण लालू परिवार में इतना बड़ा तनाव पैदा हो गया है। संजय मूल रूप से हरियाणा के महेंद्रगढ़ के रहने वाले हैं। उन्होंने कंप्यूटर साइंस में एमएससी और फिर एमबीए किया है। निजी क्षेत्र की नौकरी में रहते हुए उनकी पकड़ डेटा विश्लेषण, मैनेजमेंट और रणनीति बनाने में मजबूत मानी जाती है। उनकी बोली में हरियाणवी का असर साफ दिखता है, लेकिन बिहार की राजनीति में उनका प्रभाव किसी वरिष्ठ नेता से कम नहीं है।

संजय और तेजस्वी की दोस्ती दिल्ली से शुरू हुई थी। कहा जाता है कि दोनों साथ क्रिकेट भी खेलते थे। 2012 के आसपास तेजस्वी ने उनसे राजनीतिक सलाह लेनी शुरू की और जल्द ही संजय ने नौकरी छोड़ पूरी तरह से तेजस्वी के साथ काम करना शुरू कर दिया। 2015 के चुनाव से वे सक्रिय रूप से पार्टी की रणनीति का हिस्सा बने। 2024 में आरजेडी ने उन्हें राज्यसभा भेजा, जिससे पार्टी में उनका कद और बढ़ गया।

फिलहाल वे तेजस्वी यादव के सबसे भरोसेमंद रणनीतिकारों में गिने जाते हैं। पार्टी संगठन, चुनावी रणनीति और सोशल मीडिया मैनेजमेंट में उनकी मजबूत भूमिका बताई जाती है। तेजस्वी के राजनीतिक फैसलों में भी संजय की सलाह अहम मानी जाती है।

इस बार के विधानसभा चुनाव में संजय यादव की भूमिका बेहद प्रभावी रही। चुनावी रणनीति बनाने, सीट शेयरिंग, गठबंधन वार्ता, टिकट वितरण और सोशल मीडिया, हर जगह उनकी मौजूदगी इस बार भी खूब दिखी थी। पार्टी के भीतर यह भी चर्चा रही कि कई टिकट उनके सुझाव पर तय किए गए थे, जिससे नाराजगी बढ़ गई। कुछ नेताओं ने खुले तौर पर कहा कि उनकी सीट संजय की वजह से काटी गई। यही वजह है कि चुनाव बाद फूट खुलकर सामने आने लगी है।

कौन हैं रमीज?

रमीज की बात करें तो वे तेजस्वी यादव के पुराने दोस्त बताए जाते हैं। वे उत्तर प्रदेश के एक राजनीतिक परिवार से आते हैं और लंबे समय से तेजस्वी के करीबी सर्कल में शामिल रहे हैं। कुछ मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि रमीज का पूरा नाम रमीज नेमत खान है जो साल 2016 में राजद से जुड़े थे। शुरुआत में वह तत्कालीन उपमुख्यमंत्री कार्यालय में बैकडोर समन्वय का काम संभालते थे। इसी दौरान उनकी पकड़ मजबूत हुई और वे धीरे-धीरे तेजस्वी यादव के निजी दायरे में शामिल हो गए।

बाद में रमीज पूरी तरह तेजस्वी कार्यालय से जुड़े और रोजमर्रा के कार्यक्रमों से लेकर चुनावी कैंपेन की रणनीति तक कई जिम्मेदारियां देखने लगे। तेजस्वी की टीम में उनकी भूमिका लगातार बढ़ती गई और वे उन चुनिंदा लोगों में शामिल हो गए, जिनकी सलाह पर कई अहम फैसले लिए जाने लगे।

अनिल शर्मा
अनिल शर्माhttp://bolebharat.com
दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में उच्च शिक्षा। 2015 में 'लाइव इंडिया' से इस पेशे में कदम रखा। इसके बाद जनसत्ता और लोकमत जैसे मीडिया संस्थानों में काम करने का अवसर मिला। अब 'बोले भारत' के साथ सफर जारी है...
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