नई दिल्ली: वह साल था 1970 का और महीना था जनवरी…भारत को आजादी मिले 23 साल ही हुए थे और कई मोर्चों पर देश को आगे बढ़ाने और आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश जारी थी। इसी बीच श्वेत क्रांति या ऑपरेशन फ्लड की शुरुआत की जाती है। लक्ष्य था कि भारत को दूध उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया जाए। इसके लिए भारत के डेयरी सेक्टर को व्यवस्थित और संगठित रूप देने का प्रयास शुरू हुआ और कुछ सालों में इसके फायदे भी नजर आने लगे।
आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। भारत ने साल 2022-23 में 23 करोड़ टन (230.58 मिलियन टन) दूध का उत्पादन किया। वहीं, 1951-52 में भारत ने केवल 1.7 करोड़ टन (17 मिलियन टन) दूध का उत्पादन किया था। सवाल है कि भारत जब आज के दिन इतनी बड़ी मात्रा में दूध का उत्पादन कर रहा है तो फिर श्वेत क्रांति 2.0 की जरूरत क्यों है? केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह ने 19 सितंबर को श्वेत क्रांति- 2.0 को लॉन्च किया। क्या है इसका लक्ष्य और सरकार किस दिशा में आगे बढ़ना चाहती है…आइए समझते हैं।
श्वेत क्रांति 2.0 क्या है…लक्ष्य क्या है?
श्वेत क्रांति 2.0 भी सहकारी समितियों के विकास पर निर्भर है। यही सहकारी समितियां करीब पांच दशक पहले ऑपरेशन फ्लड या पहले श्वेत क्रांति का आधार भी थीं। आंकड़े बताते हैं कि डेयरी सहकारी समितियों ने 2023-24 में प्रति दिन 660 लाख किलोग्राम दूध खरीदा। सरकार का लक्ष्य है कि 2028-29 तक इसे बढ़ाकर 1,007 लाख किलोग्राम प्रतिदिन करना चाहिए। इसके लिए सरकार ने सहकारी समितियों की कवरेज और पहुंच को बढ़ाने के लिए रणनीति बनाई है।
सहकारिता मंत्रालय के अनुसार श्वेत क्रांति 2.0 अगले पांच वर्षों में डेयरी सहकारी समितियों की दूध खरीद की हिस्सेदारी में 50 प्रतिशत की वृद्धि करेगी। इस योजना के जरिए डेयरी किसानों की बाजार तक पहुंच को आसान बनाया जाएगा और उन इलाकों को कवर किया जाएगा जो अभी तक इस मामले में अछूते हैं। मंत्रालय के अनुसार इससे अतिरिक्त रोजगार पैदा होगा और इस प्रक्रिया से महिलाओं के सशक्तिकरण में भी योगदान मिलेगा। डेयरी क्षेत्र प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से देश में करीब 8.5 करोड़ से अधिक लोगों को आजीविका प्रदान करता है। इसमें भी अधिकांश महिलाएं हैं।
सहकारिता मंत्रालय द्वारा मोदी 3.0 के पहले 100 दिनों के निर्णयों पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में 3 नए पहलों का शुभारंभ किया।
श्वेत क्रान्ति 2.0 की पहल से महिला स्वावलंबन व सशक्तीकरण के साथ-साथ कुपोषण के खिलाफ जंग को भी ताकत मिलेगी। 2 लाख नई सहकारी समितियों के निर्माण के इनिशिएटिव… pic.twitter.com/mGaWcYs3DW
— Amit Shah (@AmitShah) September 19, 2024
सहकारिता मंत्रालय के अनुसार श्वेत क्रांति 2.0 की पहल से महिला स्वावलंबन व सशक्तीकरण के साथ-साथ कुपोषण के खिलाफ जंग को भी ताकत मिलेगी। 2 लाख नई सहकारी समितियों के निर्माण के इनिशिएटिव से देश की हर पंचायत तक सहकारी समितियों की पहुंच सुनिश्चित होगी। साथ ही ‘सहकारिता में सहकार’ योजना से सहकारी बैंकों की गतिविधियों को भी विस्तार मिलेगा एवं वे अत्याधुनिक बनेंगे।
अभी क्या है डेयरी सहकारी समितियों की स्थिति?
भारत में डेयरी उद्योग के नियामक राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के अधिकारियों के अनुसार देश के लगभग 70 प्रतिशत जिलों में डेयरी सहकारी समितियां काम कर रही हैं। आंकड़ों के अनुसार लगभग 1.7 लाख डेयरी सहकारी समितियां (डीसीएस) हैं जो लगभग 2 लाख गांवों (देश में गांवों की कुल संख्या का 30%) और 22 प्रतिशत दुग्ध उत्पादक परिवारों को कवर करती हैं। ये सहकारी समितियां देश के दूध उत्पादन का लगभग 10 प्रतिशत और विपणन योग्य अधिशेष (Marketable surplus) का 16 प्रतिशत ही खरीदती हैं।
अहम बात ये भी है कि अभी गुजरात, केरल और सिक्किम सहित केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में 70% से अधिक गांव डेयरी सहकारी समितियां कवर करती हैं। वहीं, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में यही कवरेज केवल 10 से 20% तक है। इसके अलावा पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश और पूर्वोत्तर के अन्य छोटे राज्यों में 10 प्रतिशत से भी कम गांव कवरेज एरिया में शामिल हैं।
कैसे बढ़ेगी सहकारी समितियों की कवरेज…क्या है योजना?
एनडीडीबी ने अगले पांच साल में लगभग 56,000 नई बहुउद्देशीय डेयरी सहकारी समितियों की स्थापना करने की योजना बनाई है। साथ ही मौजूदा ग्राम स्तरीय डीसीएस में से 46000 को और उन्नत दूध खरीद और परीक्षण के बुनियादी ढांचे प्रदान करने की योजना बनाई गई है। योजना ये है कि अधिकांश नए डीसीएस उत्तर प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में स्थापित किए जाएंगे।
इससे पहले फरवरी 2023 में एनडीडीबी ने जिंद (हरियाणा), इंदौर (मध्य प्रदेश) और चिकमंगलूर (कर्नाटक) जिलों में कवर नहीं हुई ग्राम पंचायतों में डेयरी सहकारी समितियां स्थापित करने के लिए 3.8 करोड़ रुपये की पायलट परियोजना शुरू की थी। सहकारिता मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि पायलट प्रोजेक्ट के तहत स्थापित 79 डीसीएस मिलकर लगभग 2,500 किसानों से प्रतिदिन 15,000 लीटर दूध खरीद रहे हैं। योजना के तहत ग्राम-स्तरीय दूध खरीद प्रणाली, ठंडा रखने की सुविधाएं और प्रशिक्षण सहित क्षमता बढ़ाने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।
एनिमल हस्बेंड्री स्टैटिस्टिक्स (BAHS)-2023 के अनुसार देश में अभी शीर्ष पांच दूध उत्पादक राज्य यूपी (15.72%), राजस्थान (14.44%), मध्य प्रदेश (8.73%), गुजरात (7.49%) और आंध्र प्रदेश (6.70%) हैं। यह राज्य देश के कुल दूध उत्पादन में 53.08% का योगदान करते हैं। यहां ये भी बता दें कि कुल दूध उत्पादन का लगभग 31.94 प्रतिशत देशी भैंसों से आता है। नॉनडिस्क्रिप्ट यानी विभिन्न ब्रीड के मिश्रण वाले भैंसों से 12.87 प्रतिशत दूध मिलता है। देशी पशुओं का दूध उत्पादन में योगदान 10.73 प्रतिशत है जबकि नॉनडिस्क्रिप्ट मवेशियों से 9.51 प्रतिशत दूश मिलता है। बकरी के दूध की हिस्सेदारी 3.30% है। विदेशी गायों की हिस्सेदारी 1.86% है।