जम्मू और कश्मीर के 6 निर्वाचन क्षेत्रों में 1999 में लोकसभा प्रतिनिधि चुनने के लिए हुए चुनाव में गुजरात, महाराष्ट्र और बिहार से वरीय आईएएस अधिकारियों को पर्यवेक्षक बनाकर भेजा गया था। मुझे याद है, एक महिला पर्यवेक्षक तो सर्किट हाउस में अपने कमरे से बाहर ही नहीं निकली थीं।
रणजीत बनर्जी गुजरात से अनंतनाग आए थे। जिस दिन मतदान हो रहा था, वे जिले के आंतरिक मतदान केंद्रों पर गए। उन्होंने पाया कि वहाँ काफी अनियमितता हुई है, पीठासीन अधिकारी निष्पक्ष नहीं थे। मतदान समाप्त होने पर उन्होंने निर्वाचन आयुक्त को रिपोर्ट भेजी और सिफारिश की कि अनंतनाग का चुनाव रद्द कर दिया जाए। एक प्रति मुझे भी मिली। टाइम्स ऑफ इंडिया ने अगले ही सुबह इसे मुख्य समाचार के रूप में प्रकाशित किया।
श्रीनगर में दिल्ली के अखबार दोपहर में हवाई जहाज से आते थे। इसी बीच राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने मुझे फोन कर नाराजगी जताई। उनका दावा था कि रिपोर्ट झूठी है। लेकिन दोपहर में ही निर्वाचन आयोग का निर्णय आ गया- पूरा मतदान रद्द कर दिया गया।
उस वक्त के निर्वाचन आयुक्त एम. एस. गिल ने निराशा जाहिर की- “दुर्भाग्य है कि श्रीनगर और अनंतनाग के रिटर्निंग ऑफिसर आईएएस नहीं, बल्कि गार्डनर और स्टोरकीपर थे। इन्हें ‘Own Pay and Grade (OPG)’ पर आईएएस वाली पोस्टिंग मिलती है, लेकिन वेतन वही मूल ग्रेड का होता है।”
पूर्व केंद्रीय मंत्री और तीन राज्यों के राज्यपाल रह चुके मोहम्मद शफी कुरैशी, जो श्रीनगर के संत नगर में रहते थे, ने मुझे बताया- “अनंतनाग के निर्वाचन अधिकारी ने मुझे कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में विजय घोषित कर दिया था। जुलूस भी निकल गया था, लेकिन आधे घंटे के भीतर ही उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस के पराजित उम्मीदवार को विजेता घोषित कर दिया।”
इसी तरह, अमीरा कदल से मोहम्मद सलाउद्दीन जीते थे, लेकिन रिटर्निंग ऑफिसर ने उनसे हारे हुए उम्मीदवार को निर्वाचित घोषित कर दिया। सलाउद्दीन बारामुला के रास्ते पाकिस्तान चला गया और बाद में आतंकवादी बन गया।मैंने चुनाव के दिन चडूरा में देखा कि राष्ट्रीय राइफल्स के एक मेजर एक पोलिंग बूथ पर बैठे हैं। मैंने उनसे पूछा- “क्या आपको चुनाव आयोग ने यहां बैठने के लिए कहा है?” उनका जवाब था- “वोटर्स को लाने की जिम्मेदारी है।”
मैंने पूछा- “क्या आयोग का यही निर्देश है?”मैं अपने कैमरे से फोटो लेने लगा तो मेजर साहब भाग खड़े हुए और अपने जवानों को भी तुरंत हट जाने को कहा।फिर मैं श्रीनगर–अनंतनाग हाईवे पर निकला। पुलवामा के पास हाईवे पर देखा कि आगे राष्ट्रीय राइफल्स का एक अधिकारी लीड कर रहा है, पीछे भी अधिकारी थे और बीच में बुजुर्ग लोग थे। मैंने एक बुजुर्ग से पूछा- “कहां जा रहे हैं?” उन्होंने बताया कि उन्हें बुखार है, लेकिन सेना के जवान घर से जबरन निकालकर ले जा रहे हैं।
मैंने लीड कर रहे अधिकारी से पूछा- “आप इन लोगों को क्यों ले जा रहे हैं? क्या निर्वाचन आयोग का आदेश है कि बीमार लोगों को जबरन पोलिंग बूथ ले जाया जाए?”
मैंने यहाँ भी फोटो लिया। तब अधिकारी ने निवेदन किया- “क्योंकि पोलिंग बहुत कम हो रही है, इसीलिए… आयोग का कोई निर्देश नहीं है। कृपया फोटो मत लीजिए।” अधिकारी तुरंत वहां से चले गए।चुनाव प्रचार में भीड़ नहीं होती थी। एक बार उमर अब्दुल्ला, जो स्वयं उम्मीदवार थे, मुझे बडगाम ले गए। वहां उन्हें सुनने के लिए केवल 28 लोग मौजूद थे, जबकि सुरक्षा कर्मियों की संख्या उनसे कहीं अधिक थी।
श्रीनगर शहर में लोग चुनाव अभियान में भाग लेने से डरते थे। पैलेडियम सिनेमा हॉल के पास सफेद कुर्ता–पायजामा पहने कुछ लोग श्रोता बने खड़े थे। मुझे एक अधिकारी ने बताया- “क्योंकि कोई सुनने भी नहीं आता, इसलिए केंद्रीय सुरक्षा कर्मियों को आम श्रोता बनाकर लाया गया है। दूरदर्शन का कैमरामैन ऑडियो–वीडियो बनाकर समाचार देता है कि चुनाव में आम लोग भी भाग ले रहे हैं।”
महबूबा मुफ्ती और मुफ्ती सैयद की बुलेटप्रूफ एम्बेसडर में चुनाव अभियान देखने मैं अनंतनाग गया। महबूबा के स्वागत में भारी संख्या में महिलाएं आई थीं, और उनकी तुलना इंदिरा गांधी से की जा रही थी। ‘वानवून’ गाना गाकर नाचती हुई महिलाओं ने उनका स्वागत किया था।
इसी बीच, बीजेपी के एक उम्मीदवार को आतंकवादियों ने बम से उड़ा दिया। उनका शरीर 80 फीट ऊंचाई पर चिनार के पेड़ पर लटका मिला था। लेकिन अब स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है- पंचायत चुनाव और फिर विधानसभा निर्वाचन में बिना किसी दबाव के भारी मतदान हुआ।

