‘एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस’ (Axis of Resistance) यानी प्रतिरोधी गठबंधन, ईरान-समर्थित स्वायत्त इस्लामी लड़ाकू समूहों का एक नेटवर्क है, जिसका उद्देश्य इजराइल और अमेरिका की पश्चिम एशिया में प्रभावी गतिविधियों से मोर्चा लेना है। इस गठबंधन में प्रमुखता से हिजबुल्लाह, हमास, फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद (पीआईजे), हूती विद्रोही, इराक और सीरिया के आतंकवादी समूह शामिल हैं। यह गठबंधन ईरान की रणनीतिक योजनाओं का हिस्सा है, जिसके माध्यम से वह अपनी ताकत को पश्चिम एशिया में प्रोजेक्ट करता है और क्षेत्रीय घटनाओं को नियंत्रित करता है।
गठबंधन का गठन कैसे हुआ?
इस गठबंधन की जड़ें 1979 की ईरानी क्रांति में हैं, जब कट्टर शिया मुस्लिम नेताओं ने सत्ता संभाली। ईरान ने तब से क्षेत्रीय ताकतों के खिलाफ अपने हितों की रक्षा और विस्तार के लिए गैर-राज्य समूहों का समर्थन करना शुरू किया। खासकर इजराइल के निर्माण और अमेरिका के हस्तक्षेप को रोकने के लिए, ईरान ने हिजबुल्लाह और हमास जैसे समूहों का समर्थन किया।
7 अक्टूबर को जब इजराइल पर हमला हो रहा था, हमास के सैन्य कमांडर ने इस नेटवर्क से संघर्ष में शामिल होने की अपील की। मोहम्मद देइफ ने एक ऑडियो संदेश में कहा, “लेबनान, ईरान, यमन, इराक और सीरिया में इस्लामी प्रतिरोध के हमारे भाइयों, यह वह दिन है जब आपका प्रतिरोध फिलिस्तीनी लोगों के साथ एकजुट होता है।” इसके बाद, इस गठबंधन के सहयोगी विभिन्न उत्साह के साथ इस व्यापक क्षेत्रीय संघर्ष में शामिल हो गए।
शुरुआत में इस नेटवर्क को सीमित सफलता मिली थी, लेकिन हाल के वर्षों में सीरिया, इराक और यमन में उथल-पुथल ने इसके विस्तार के नए अवसर पैदा किए। इसके साथ ही, वेस्ट बैंक और गाजा में फिलिस्तीनियों के बीच बढ़ती अशांति ने भी इसे और मजबूती प्रदान की। मौजूदा हालात को देखते हुए यह नेटवर्क कई मोर्चों पर सक्रिय हुआ है।
हिजबुल्लाह
हिजबुल्लाह का अर्थ है “अल्लाह की पार्टी। इसकी स्थापना 1982 में ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स द्वारा की गई थी। जिसका उद्देश्य उस वर्ष लेबनान पर आक्रमण करने वाली इजराइली सेना से लड़ना था। यह ‘एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस’ का सबसे बड़ा और ताकतवर सदस्य है। संयुक्त राज्य अमेरिका और यूएस-सहयोगी खाड़ी अरब देशों सहित अन्य सरकारें हिजबुल्लाह को एक आतंकवादी समहू मानती हैं।
इसके पास लगभग 30,000 से 45,000 सदस्य हैं। बड़े पैमाने पर रॉकेटों का भंडार भी है, जो इजराइल के किसी भी हिस्से को निशाना बना सकते हैं। इजराइल इस बात को बखूबी जानता है यही वजह है कि वह हिजबुल्लाह के रॉकेट और मिसाइलों को निशाना बना रहा है।
भारी हथियारों से लैस यह समूह, एक प्रभावशाली राजनीतिक खिलाड़ी भी है, जो ईरान की शिया इस्लामवादी विचारधारा को साझा करता है और इसे व्यापक रूप से लेबनानी राज्य से अधिक शक्तिशाली माना जाता है। हिजबुल्लाह और इसराइल के बीच कई बार लड़ाई हो चुकी है, पहली बार 2006 में युद्ध हुआ था। इन युद्धों में हिजबुल्लाह ने इजराइल को भारी नुकसान भी पहुंचाया। पिछले साल अक्टूबर में इजराइल पर इसने कई रॉकेट दागे थे जिसके बाद से अब तक घातक युद्ध जारी है। इजराइल ने इस समूह को खत्म करने तक जंग जारी रखने की बात कही है। लिहाजा वह लेबनान में हिजबुल्लाह के प्रमुख नेताओं और इसके घातक हथियारों को निशाना बना रहा है।
हमास
हमास का ईरान से संबंध हिजबुल्लाह जितना निकट नहीं है। यह सुन्नी इस्लामी परंपरा से उभरा, जो ईरानी क्रांति से बहुत पहले से अस्तित्व में था। 1987 में पहले फिलिस्तीनी इंतिफादा (इजराइल के खिलाफ विद्रोह और उस पर जोरदार हमले को फिलिस्तीन के लोग इंतिफादा कहते हैं।) के बाद, यह गाजा में स्थापित हुआ। हमास और ईरान के बीच एक ‘समझौतापरक रिश्ता’ है, जिसमें कई बार विवाद भी हुए हैं। ईरान ने हमास को धन, हथियार और तकनीकी सहायता दी है और हाल के वर्षों में उनके बीच संबंध सुधार हुए हैं।
7 अक्टूबर के हमलों ने इस रिश्ते की सीमाओं को स्पष्ट कर दिया। ईरान को इस हमले की अग्रिम जानकारी नहीं दी गई थी, जो ईरान के किसी भी सहयोगी द्वारा दशकों में सबसे बड़ा हिंसक हमला था। इजराइल का गाजा पर आक्रामक अभियान हमास को ‘ध्वस्त’ करने के मकसद से चलाया जा रहा है, जिससे उसकी क्षमताओं में भारी गिरावट आई है।
हूती
हूती, एक यमनी मिलिशिया, 1980 के दशक में उभरी और इसका नाम इसके संस्थापक हुसैन बदरेद्दीन अल-हौथी के नाम पर रखा गया। यह शिया इस्लाम की एक छोटी शाखा का प्रतिनिधित्व करती है और सऊदी अरब के प्रति इसकी दुश्मनी ने इसे ईरान का सहयोगी बना दिया। इसके लगभग 20,000 लड़ाके यमन के पश्चिमी हिस्से और लाल सागर के तट को नियंत्रित करते हैं।
7 अक्टूबर के हमलों के तुरंत बाद हूती नेता ने कहा था कि उसकी सेना “हजारों की संख्या में फिलिस्तीनी लोगों के साथ जुड़ने के लिए तैयार है।” गाजा युद्ध की शुरुआत के तुरंत बाद हूतियों ने लाल सागर में जहाजों और इजराइल की ओर मिसाइल और ड्रोन हमले शुरू किए। हालांकि इनमें से अधिकांश को अमेरिकी और इजराइली डिफेंस सिस्टम ने तबाह कर दिया।
इराकी और सीरियाई मिलिशिया
गाज़ा युद्ध की शुरुआत से ही ईरान-समर्थित मिलिशिया ने इराक और सीरिया में अमेरिकी बलों पर हमले किए हैं। ये मिलिशिया 2003 में इराक पर अमेरिकी हमले के बाद और सीरियाई गृहयुद्ध के दौरान स्थापित हुए थे। इनके कई उद्देश्य हैं: ईरानी प्रभाव को बढ़ाना, सहयोगियों को मजबूत करना और पश्चिमी योजनाओं का विरोध करना। इन देशों में फैले कई गुट अब कम संख्या में हैं, लेकिन ये तेहरान के लिए सस्ते और उपयोगी उपकरण साबित हुए हैं।
इस बीच इराकी शिया मिलिशिया कताइब हिजबुल्लाह ने धमकी दी कि अगर इजराइल ने इराक पर हमला किया तो वह देश में मौजूद अमेरिकी सेना पर हमला करेगा। ईरान समर्थित शिया मिलिशिया के सिक्योरिटी लीडर अबू अली अल-असकर ने बुधवार को एक बयान में कहा कि इराकी एयर स्पेस में अमेरिका और इजरायल की तेज गतिविधियां देखी जा रही हैं। ये ‘इराक के खिलाफ जायोनी (इजराइली) हमले की संभावना’ का संकेत देती हैं।
बयान में कहा गया, “कताइब हिजबुल्लाह अपनी चेतावनी दोहराता है कि उसकी प्रतिक्रिया केवल इजराइल तक ही सीमित नहीं होगी, बल्कि इसमें संपूर्ण अमेरिकी मौजूदगी भी शामिल होगी।” कताइब हिजबुल्लाह का यह बयान ऐसे समय में आया है जब इजराइल और लेबनान के बीच संघर्ष की वजह से पूरे क्षेत्र में तनाव बढ़ने की आशंका जताई जा रही है।
इजराइल लगातार लेबनान में एयर स्ट्राइक कर रहा है। उसका दावा है कि वो ईरान समर्थित ग्रुप हिजबुल्लाह को टारगेट कर रहा है। इजराइली हमलों में अब तक 600 से अधिक लेबनानी मारे गए हैं। इस बीच हिजबुल्लाह ने भी पलटवार किया है और इजराइली क्षेत्रों में रॉकेट दागे हैं।
समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के मुताबिक, अल-अस्कर ने ‘इराक इस्लामिक रेजिस्टेंस’, (एक शिया मिलिशिया ग्रुप) से अपने अभियानों की संख्या और पैमाने को बढ़ाने की अपील की। इससे पहले, ‘इराक इस्लामिक रेजिस्टेंस’ ने ‘फिलिस्तीन और लेबनान के लोगों के साथ एकजुटता में’ इजराइली ठिकानों पर कई ड्रोन और मिसाइल हमलों की जिम्मेदारी ली। हालांकि इसने यह नहीं बताया कि हमलें किन टारगेट्स पर किए गए और न ही किसी हताहत की सूचना दी।