श्रीलंका में अनुरा कुमारा दिसानायके को राष्ट्रपति चुने जाने के साथ ही देश की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हो गया है। वामपंथी नेता अनुरा दिसानायके, जो जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) के नेता और नेशनल पीपल्स पावर (एनपीपी) गठबंधन के प्रमुख चेहरे हैं, ने मौजूदा राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को हराकर जीत हासिल की। इस चुनाव में 42.31% वोट प्राप्त करने वाले दिसानायके श्रीलंका के पहले मार्क्सवादी राष्ट्रपति बने हैं।
चुनाव जीतने के बाद, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें बधाई देते हुए कहा कि श्रीलंका का भारत की “नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी” में एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसके जवाब में दिसानायके ने भी दोनों देशों के बीच सहयोग को और मजबूत करने की प्रतिबद्धता जताई। दिसानायके की यह जीत न केवल श्रीलंका की राजनीति में एक बड़ा परिवर्तन माना जा रहा है, बल्कि भारत के साथ उनके भविष्य के संबंधों को भी नई दिशा देने वाली साबित हो सकती है।
भारत के प्रति अनुरा दिसानायके का रुख?
हालांकि अनुरा दिसानायके की पार्टी का इतिहास भारत विरोधी रहा है, लेकिन उन्होंने अब भारत के साथ सकारात्मक और संतुलित संबंध बनाए रखने की इच्छा जाहिर की है। उनकी पार्टी, जनता विमुक्ति पेरामुना (JVP), ने एक समय भारतीय प्रभाव के खिलाफ जोरदार संघर्ष किया था। पार्टी के संस्थापक रोहाना विजेवीरा ने 1980 के दशक में “भारतीय विस्तारवाद” पर व्याख्यान देकर इसे श्रीलंका के हितों के खिलाफ बताया था।
1987 में जब भारत-श्रीलंका समझौता हुआ, तो जेवीपी ने इसके विरोध में एक हिंसक विद्रोह का नेतृत्व किया, जिसे सरकार ने कड़े बल से कुचल दिया था। बावजूद इसके, अब राष्ट्रपति बने दिसानायके ने भारत के साथ संवाद और सहयोग का नया दृष्टिकोण पेश किया है। उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि श्रीलंका किसी भी बाहरी शक्ति, चाहे वह भारत हो या चीन, के अधीन नहीं होगा, और अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखेगा।
चुनाव से पहले मीडिया से बातचीत में दिसानायके ने अपनी प्रमुख नीतियों पर रोशनी डाली, जिनसे भारत के प्रति उनके बदलते रुख का संकेत मिलता है। उनका यह नया दृष्टिकोण दिखाता है कि वे अंतरराष्ट्रीय संबंधों को पुनर्स्थापित करने के लिए तैयार हैं, जिसमें भारत एक महत्वपूर्ण सहयोगी के रूप में शामिल हो सकता है। यह बदलाव श्रीलंका के राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है, खासकर भारत के साथ संबंधों के संदर्भ में।
दिसानायके की क्या रहेगी विदेश नीति?
श्रीलंका के नए राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके की विदेश नीति का मुख्य उद्देश्य श्रीलंका के समुद्री, स्थल और वायु क्षेत्र का ऐसा उपयोग रोकना है, जो भारत या क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बन सकता है। साथ ही आर्थिक सुधारों के दौरान भारत का समर्थन श्रीलंका के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, इसको भी वह बखूबी समझते हैं।
7 महीने पहले (फरवरी 2024) में जब वे भारत के दौरे पर आए थे तो इस दौरान उनकी मुलाकात भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से हुई। बैठक में द्विपक्षीय संबंधों को और गहरा करने पर चर्चा हुई। जयशंकर ने भारत की “पड़ोसी पहले” और “सागर” (SAGAR – Security and Growth for All in the Region) नीतियों का हवाला देते हुए श्रीलंका को भारत का भरोसेमंद सहयोगी बताया था। भारत से लौटने के बाद, मीडिया से बातचीत में दिसानायके ने स्पष्ट किया कि इन उच्च-स्तरीय बैठकों का मतलब उनकी पार्टी की राजनीतिक या आर्थिक नीतियों में बदलाव नहीं है।
उन्होंने कहा था कि सूचना प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में हम भारत से बहुत कुछ सीख सकते हैं और एनपीपी इस दिशा में भारत की मदद की उम्मीद कर रहा है। दिसानायके ने श्रीलंका में बदलाव लाने के लिए प्रतिबद्धता जाहिर करते हुए कहा था कि इस परिवर्तन के लिए हमें अंतरराष्ट्रीय समर्थन की आवश्यकता होगी। हमें पूंजी और प्रौद्योगिकी की जरूरत है। एक अलग-थलग देश के रूप में हम सफल नहीं हो सकते, इसलिए हमें अंतरराष्ट्रीय संबंधों को और मजबूत करना होगा।”
रिपोर्टों की मानें तो उनकी नीति क्षेत्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए आर्थिक अवसरों का अधिकतम लाभ उठाने पर केंद्रित रहेगी। इसके अलावा, वह एक मजबूत और लचीली विदेश नीति अपनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जो वैश्विक परिस्थितियों के अनुरूप हो और श्रीलंका के राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सके।
दिसानायके की यह कूटनीति पहले के श्रीलंकाई नेताओं से अलग है। वह भारत और चीन जैसे वैश्विक शक्तियों के साथ संतुलित और व्यावहारिक संबंध बनाने के पक्षधर हैं। उनकी विदेश नीति श्रीलंका को क्षेत्रीय स्थिरता के केंद्र में रखते हुए आर्थिक और राजनीतिक अवसरों का लाभ उठाने पर केंद्रित है।