क्या बिहार की राजनीति में पीके की दस्तक से आरजेडी की नींद उड़ी हुई है। क्या लालू प्रसाद यादव की पार्टी पीके की राजनीति को पचा नहीं पा रही है और उसे पीके से सबसे ज्यादा खतरा नजर आ रहा है। पीके यानी प्रशांत किशोर। प्रशांत किशोर ने अपनी पार्टी बनाई जन सुराज पार्टी। और ये भी ऐलान कर दिया है कि वो 2025 का विधानसभा चुनाव लड़ेंगे और उस चुनाव में उनकी पार्टी की मौजूदगी बिहार की राजनीति को बदलकर रख देगी। उनकी पार्टी से जिस एक पार्टी में सबसे ज्यादा खलबली मची, वो लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव की आरजेडी है।
इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले 47 साल के पीके सबसे पहले सुर्खियों में तब आए जब 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को शानदार जीत हासिल हुई। तब लोगों को पता चला कि मोदी की चुनावी रणनीति बनाने में परदे के पीछे जो व्यक्ति काम कर रहा था, वो पीके थे। हालांकि उस जीत के कुछ दिनों बाद ही पीके बीजेपी से काफी दूर हो गए और बिहार में नीतीश कुमार और लालू यादव के लिए काम करने लगे। उसका असर भी दिखा।
2015 में बिहार में नीतीश लालू की जोड़ी ने शानदार जीत हासिल कर ली। फिर तो चुनावी रणनीतिकार के रूप में पीके के नाम का डंका बजने लगा। ये सारे चुनावी जीत पीके की चुनावी रणनीति के कौशल को प्रदर्शित करते हैं। इसीलिए जब उन्होंने अपनी पार्टी जन सुराज के चुनावी राजनीति में उतरने का ऐलान किया तो बिहार की राजनीति में खलबली मच गई।
दरअसल प्रशांत किशोर पूरी तरह आक्रामक अंदाज में लडाई कर रहे हैं। जब उनपर ये आरोप लगा कि वो तो पैसे लेकर चुनाव लड़वाते हैं और इसलिए वो धंधेबाज हैं तो प्रशांत बगैर सकुचाए या झिझके ही कहने लगे कि उन्हें कोई धंधेबाज कह रहा है तो वो मान लेते हैं कि धंधेबाज हैं। लेकिन वो खुद को बिहार के बेहतरी के लिए धंधा करने आए हैं।
इस चुनावी धंधे में प्रशांत किशोर के पास जो महत्वपूर्ण चीजें हैं, उनमें एक तो उनके पास लोगों को लामबंद करने की क्षमता है, दूसरे तार्किक विचार हैं, तीसरे पैसे की कमी नहीं है और चौथा वैकल्पिक राजनीति के कई खिलाडियों से सीधा संपर्क है। उनमें से एक पप्पू यादव हैं। पप्पू यादव के साथ पीके की दोस्ती आरजेडी को खटक रही है क्योंकि यादवों के एक तबके के लिए लालू के पुत्र तेजस्वी नहीं बल्कि पप्पू ज्यादा बेहतर सजातीय नेता हैं।
यह भी देखें- MY से Yadav छिटक रहा है, अब BAAP भरोसे तेजस्वी-लालू!