सोमवार को संसद में राहुल गांधी ने शिव जी की तस्वीर लहरा कर हिंदू होने का मतलब समझाया और हिंदुओं को नफरत का सौदागर बता दिया। अपने भाषण के दौरान उन्होंने कई बार शिव जी की तस्वीर टेबल से उठाई और फिर टेबल पर पटकी। कुछ लोगों का कहना है कि राहुल गांधी ने ऐसा करके हिंदू धर्म का अपमान किया है। इसके लिए उन्हें माफी मांगनी चाहिए उन पर कार्रवाई होनी चाहिए।
मैं – धर्म सत्ता और राज सत्ता के संदर्भ में मान-अपमान के किसी तर्क को जायज नहीं मानता। इसलिए मेरी नजर में उन्होंने शिव जी की तस्वीर बार-बार टेबल पर रखी और उठाई या फिर हिंदुओं को नफरत का सौदागर कहा – उतना बड़ा मसला नहीं है। ये राहुल गांधी का निजी मत हो सकता है और उनके इस मत को हम लोग सिरे से खारिज कर देंगे।
तो फिर बड़ा मसला क्या है? बड़ा मसला है हिंदू धर्म को तोड़ने की साजिश। हिंदुओं को बांटने की सुनियोजित साजिश। राहुल गांधी ने लोकसभा में जो मूर्खतापूर्ण भाषण दिया है, सत्य और असत्य, हिंसा और अहिंसा का अर्थ समझाने की जो बेतुकी कोशिश की है, निडर और न्यायप्रिय होने का जो पाखंड रचा है – उसमें एक बेहद चिंताजनक राजनीति छिपी हुई है।
शिव जी के बहाने राहुल गांधी ने हिंदुओं को दो धड़े में बांटने की कोशिश की। ये बंटवारा बीजेपी-आरएसएस के हिंदुत्व और कांग्रेस के हिंदूवाद का विभाजन नहीं है। बल्कि शैव और वैष्णव के बीच बांटने की कोशिश की है।
बीजेपी का उभार राम मंदिर आंदोलन से हुआ। बीजेपी ने राम मंदिर के जरिए हिंदुओं को एक करने की कोशिश की है। विपक्षी दल राम के बरक्स दूसरे देवताओं को खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव और कांग्रेसी बुद्धिजीवियों ने परशुराम को खड़ा करने की कोशिश की। वो फेल हो गए। अरवरिंद केजरीवाल ने दिल्ली में शिव जी के अवतार हनुमान को खड़ा करने की कोशिश की। वो दांव भी नहीं चला। उससे पहले गुजरात में द्वारकाधीश धाम जा कर राहुल गांधी को ब्राह्मण के तौर पर स्थापित करने की कोशिश की गई।
लेकिन सॉफ्ट हिंदुत्व का वो दांव भी फेल हो गया। फिर एक सोची समझी रणनीति पर काम तेज हुआ। ये रणनीति है राम के जवाब में शिव को खड़ा करने की रणनीति। और ये सबकुछ अचानक उस दिन नहीं हुआ है। इसकी एक पूरी पृष्ठभूमि है जो काफी समय से तैयार की जा रही है।
इसे समझने के लिए आपको कांग्रेस अध्यक्ष और इंडिया ब्लॉक के चेयरमैन मल्लिकार्जुन खरगे के एक बयान पर गौर करना होगा। लोकसभा चुनाव के दौरान खरगे ने ये बयान छत्तीसगढ़ में दिया था।
राम से शिव ही लड़ सकता है – मल्लिकार्जुन खरगे का ये बयान सिर्फ एक बयान नहीं है बल्कि वो सोच है, वो रणनीति है जिस पर कांग्रेस काम कर रही है। कांग्रेस जानती है कि राम से लड़ने के लिए शिव जी स्वयं जमीन पर नहीं उतरेंगे। फिर जमीन पर राम से, राम भक्तों से कौन लड़ेगा। शिव भक्त लड़ेंगे।
मतलब शिव भक्त का चोला पहन कर राहुल गांधी ये साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि वैष्णव की तुलना में शैव ज्यादा समावेशी हैं। ज्यादा लोकतांत्रिक हैं। इसलिए हिंदुओं को राम से नहीं बल्कि शिव से जुड़ना चाहिए। बीजेपी से नहीं बल्कि राहुल गांधी और कांग्रेस से जुड़ना चाहिए।
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और यहीं से राहुल गांधी और उनके सलाहकारों की सोच गड़बड़ हो जाती है। हिंदू धर्म को लेकर सतही व्याख्या ही हिंदुओं को राम भक्त और शिव भक्त में बांट सकती है। जबकि आम हिंदू परिवार ऐसा नहीं सोचता है।
वो राम भक्त और शिव भक्त एक साथ होता है। शैव और वैष्णव एक साथ होता है। हिंदू दर्शन में शैव और वैष्णव अलग अलग नहीं है। ना ही शक्ति उनसे अलग हैं। सब एक साथ जुड़े हुए हैं। बहुत बारीकी और मजबूती से जुड़े हुए हैं।
इसे समझने के लिए हम राहुल गांधी के भाषण को ही आधार बनाते हैं। राहुल गांधी ने संसद में शिव जी की तस्वीर लहरा कर उनकी गर्दन में लिपटे सांप का उल्लेख किया और बताया कि ये जहरीला सांप है, जिसे देख कर खौफ उत्पन्न होता है। शिव जी ने उसे गले में लपेट रखा है और इससे ये संदेश जाता है कि निडर बनो। डरो मत और डराओ मत।
ये राहुल गांधी और उनके सलाहकारों को पता नहीं होगा कि शिव जी के गले में जो सांप हैं वो कोई साधारण सांप नहीं हैं। वो नागराज वासुकी हैं। समुद्र मंथन में वासुकी ही वो रस्सी बने थे, वो नेती बने थे, जिनको मंदार पर्वत से लपेट कर समुद्र मंथन किया गया था।
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समुद्र मंथन जब शुरू हुआ तो मंदार पर्वत समुद्र में डूबने लगा। इस चुनौती से निपटने के लिए भगवान विष्णु ने कच्छप अवतार लिया और उनकी विशाल पीठ पर मंदार पर्वत को टिका कर शिव के नागराज वासुकी को नेती बना कर समुद्र मंथन किया गया।
समुद्र मंथन में शिव और विष्णु दोनों शामिल थे। मंथन में सबसे पहले विष निकला, जिसके असर से देवता और दैत्य दोनों जलने लगे। फिर उन्हें बचाने के लिए भोले शंकर ने वो विष पी लिया और उसे अपने कंठ में स्थिर कर लिया। इससे उनका शरीर नीला हो गया। इसलिए उन्हें नीलकंठ भी कहते हैं।