क्या जाति-जाति रटने वाले कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के लिए जाति का सवाल सामाजिक न्याय का सवाल है या फिर विशुद्ध राजनीति है। जिस कांग्रेस की महान परंपरा की वो दुहाई देते हैं, क्या वो पार्टी जाति के नाम पर उपेक्षित वंचित तबके के हकों की हामी रही है।
राहुल गांधी जातिगत जनगणना के सवाल पर ऐसा माहौल बना रहे हैं जैसे उनकी पार्टी कांग्रेस या उनके पूर्वजों की सरकार थी तब तो पिछडों दलितों के हक में ही सारा काम हो रहा था और आज नहीं हो रहा है।
क्या ये सही है या इसमें कोई पाखंड है। ये सवाल इसलिए उठ रहा है कि बजट के लिए बनने वाले हलवे में भी जाति का एंगल वो निकाल लाए। कांग्रेस का इतिहास देखें तो एक बात साफ है कि कांग्रेस ब्राह्मणवादी पार्टी है जिसके लिए दलितों-पिछड़ों के हितों का सवाल एक छलावे से ज्यादा नहीं दिखता।
अगर शीर्ष नेहरू नेहरू गांधी परिवार को छोड भी दे तो दूसरे बड़े पदों पर भी इनके राज में कौन रहा है। ये भी इतिहास के पन्नों को पलटकर देख लेना चाहिए। जब नेहरू प्रधानमंत्री थे, तब बिहार के मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह भूमिहार ब्राह्मण, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभपंत ब्राह्मण, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ला ब्राह्मण, पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री विधानचंद्र राय ब्राह्मण थे।
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क्या ऐसा नहीं लगता कि सम्राट और उसके क्षत्रप सभी ब्राह्मण महासभा की नुमाइंदगी कर रहे हैं। फिर इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी तक प्रधानमंत्री बने तो यूपी में कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी से लेकर श्रीपति मिश्रा दोबारा वीओ, वीपी सिंह और वीर बहादुर सिंह मुख्यमंत्री बने।
बिहार में जगन्नाथ मिश्रा से लेकर चंद्रशेखऱ सिंह, बिंदेश्वरी दुबे, भागवत झा आजाद और सत्येंद्र नारायण सिन्हा मुख्यमंत्री बने। जिस यूपी बिहार में सामाजिक न्याय की बात सबसे ज्यादा उठती है, वही पर कांग्रेस का क्या हाल था, आप समझ सकते हैं।
इसीलिए आज कांग्रेस जब जातिगत जनगणना का दांव खेल रही है तो ये देखना भी आपके लिए जरूरी है कि जिस राजनीतिक बुनियाद पर खड़े होकर वो उचक रही है, वो कितनी खोखली है।