मोदी सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। 58 साल पहले सरकारी कर्मचारियों पर आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने पर लगी पाबंदी को हटा लिया है। इस पर विपक्ष, खासकर कांग्रेस ने गंभीर सवाल उठाए हैं। इस वीडियो में कुछ महत्वपूर्ण सवालों पर चर्चा होगी जैसे….
– ऐसा क्या हुआ कि अचानक केंद्र सरकार ने ये फैसला ले लिया।
-अगर ये बहुत जरूरी फैसला था तो दस साल पहले क्यों नहीं लिया क्योंकि दस साल से तो केंद्र में मोदी की ही सरकार है। तब तो ये फैसला लेना और भी आसान होता क्योंकि 2014 से 2024 तक बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला था।
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– लेकिन इस गठबंधन सरकार के दौर में बीजेपी ने ये फैसला क्यों लिया।
-क्या बीजेपी को ये लग रहा था कि आरएसएस से पंगा लेना ठीक नहीं है।
-क्या आरएसएस को संतुष्ट करने के लिए ये फैसला लिया गया।
-क्या अब बीजेपी को आरएसएस के मजबूत जमीनी संगठन की ज्यादा जरूरत महसूस हो रही है।
-क्या अब बीजेपी को आरएसएस की वैचारिक सहमति की ज्यादा जरूरत है। और वो वैचारिक सहमति इसलिए जरूरी है क्योंकि संघ के कार्यकर्ताओं की ताकत के बगैर बीजेपी की ताकत हल्की पड़ जाती है।
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-क्या सरकार ने संघ को इस नए विवाद में खींचकर ये चिन्हित करना चाहा है कि कौन संघ के साथ है, कौन नहीं है।
-या फिर जब संघ अपने सौंवे साल में प्रवेश करने जा रहा है, उस वक्त उसकी ताकत को नई ऊंचाई देने के लिए ये मोदी सरकार का एक प्रयास है। आखिर हर चीज के बावजूद मोदी भी तो संघ से ही निकले हैं। संघ में ही दीक्षित रहे हैं।
-या बीजेपी को ये बात समझ में आ गई है कि संघ से पंगा लेना ठीक नहीं और उस विरोध को ठंडा करने के लिए मोदी सरकार की चली गई एक चाल है।