देहरादूनः उत्तराखंड सरकार ने राज्य के लिव-इन-रिलेशनशिप नियमों में सुधार को लेकर एक हलफनामा दायर किया गया। इसमें अदालत को सूचित किया गया कि वह अधिक “लचीलेपन” के लिए समान नागरिक संहिता (UCC) के तहत कुछ प्रावधानों में बदलाव कर रही है। सरकार ने इसको लेकर 78 पन्नों का हलफनामा दायर किया है।
हाई कोर्ट में यह हलफनामा एडवोकेट जनरल एसएन बाबुलकर उत्तराखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस जी नरेंद्र और जस्टिस सुभाष उपाध्याय की पीठ के समक्ष 15 अक्टूबर को प्रस्तुत किया था। इसमें कहा गया कि इन संशोधनों में रजिस्ट्रार कार्यालय का नियम, 380 शामिल है। इसमें उन शर्तों की सूची दी गई है जिनके तहत लिव-इन-रिलेशनशिप का पंजीकरण नहीं किया जा सकता।
ये ऐसी स्थितियां हैं जहां कपल निषिद्ध स्तर के संबंध में आते हैं। यदि कपल में एक या दोनों पहले से विवाहित हों या फिर किसी अन्य संबंध (लिव-इन) में रह रहे हैं। इसके अलावा यदि कपल में एक नाबालिग है तो भी इसका पंजीकरण नहीं किया जा सकता है।
लिव-इन रिलेशनशिप के नए नियमों में क्या होंगे बदलाव?
उत्तराखंड सरकार द्वारा दिए गए हलफनामे के मुताबिक, प्रस्तावित परिवर्तन लिव-इन रिलेशनशिप के संबंधों के लिए पंजीकरण और समाप्ति प्रक्रिया में सुधार, पुलिस के साथ सूचना साझा करने के नियमों को स्पष्ट करने और अस्वीकृत आवेदनों के लिए अपील की अवधि बढ़ाने पर भी केंद्रित है।
संशोधित प्रावधानों के तहत रजिस्ट्रार और स्थानीय पुलिस के बीच डेटा साझा करने के दायरे को रोकने का प्रयास करता है। इसके साथ ही यह स्पष्ट करता है कि इसे केवल “रिकॉर्ड रखने के उद्देश्यों” के लिए किया जाता है।
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नए प्रावधानों में पहचान प्रमाण पत्र के तौर पर आधार कार्ड की अनिवार्यता में भी सुधार किया गया है। पहले के प्रावधानों में विभिन्न पंजीकरणों और घोषणा प्रक्रियाओं के लिए इसका इस्तेमाल अनिवार्य था। इन सुधारों का प्रमुख उद्देश्य आवेदकों को आधार की बजाय पहचान के अन्य दस्तावेजों को देने का एक विकल्प मुहैया कराता है। खासकर यह उन मामलों में होगा जहां वे मुख्य आवेदक नहीं है।
उत्तराखंड सरकार के हलफनामे में और क्या कहा गया?
उत्तराखंड सरकार द्वारा दिए गए हलफनामे के मुताबिक, प्रस्तावित परिवर्तन लिव-इन रिलेशनशिप के संबंधों के लिए पंजीकरण और समाप्ति प्रक्रिया में सुधार, पुलिस के साथ सूचना साझा करने के नियमों को स्पष्ट करने और अस्वीकृत आवेदनों के लिए अपील की अवधि बढ़ाने पर भी केंद्रित है।
संशोधित प्रावधानों के तहत रजिस्ट्रार और स्थानीय पुलिस के बीच डेटा साझा करने के दायरे को रोकने का प्रयास करता है। इसके साथ ही यह स्पष्ट करता है कि इसे केवल “रिकॉर्ड रखने के उद्देश्यों” के लिए किया जाता है।
नए प्रावधानों में पहचान प्रमाण पत्र के तौर पर आधार कार्ड की अनिवार्यता में भी सुधार किया गया है। पहले के प्रावधानों में विभिन्न पंजीकरणों और घोषणा प्रक्रियाओं के लिए इसका इस्तेमाल अनिवार्य था। इन सुधारों का प्रमुख उद्देश्य आवेदकों को आधार की बजाय पहचान के अन्य दस्तावेजों को देने का एक विकल्प मुहैया कराता है। खासकर यह उन मामलों में होगा जहां वे मुख्य आवेदक नहीं है।