रायपुर: छत्तीसगढ़ के छह जिलों के पीने के पानी में खतरनाक हाईलेवल यूरेनियम मिला है। यहां पर युरेनियम का लेवल इतना बड़ा है कि यह विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की अनुशंसित सीमा 15 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से तीन से चार गुना अधिक है।
छत्तीसगढ़ के दुर्ग, राजनांदगांव, कांकेर, बेमेतरा, बालोद और कवर्धा के नमूनों में यूरेनियम का स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से अधिक पाया गया है। बलोड के एक गांव में इसका सबसे खतरनाक स्तर 130 माइक्रोग्राम प्रति लीटर जबकि कांकेर के एक क्षेत्र में 106 माइक्रोग्राम प्रति लीटर पाया गया है।
राज्य के इन छह जिलों की अगर बात करें तो यहां का औसत स्तर 86 से 105 माइक्रोग्राम प्रति लीटर के बीच पाया गया है। इन इलाकों से उठाए गए नमूनों को दोबारा चेक किया गया है जिसमें बाद यह बात सामने आई है।
पीने के पानी में यूरेनियम की मौजूदगी भारत के लिए काफी लंबे समय से चिंता का विष्य रहा है। साल 2022 और 23 में केवल केरल को छोड़कर जहां पर इसका स्तर काफी कम था, पंजाब, हरियाणा और बिहार सहित 12 राज्यों में यूरेनियम का स्तर सीमा से अधिक पाया गया था। जबकि देश के 13 अन्य राज्यों में यह तय सीमा तक ही पाई गई थी।
साल 2022 में बिहार के नौ जिलों के पानी में हाईलेवल यूरेनियम पाए जाने की बात सामने आई थी। पानी में उच्च यूरेनियम के मौजूदगी के कारण लोगों को हड्डियों में दिक्कत, स्किन और किडनी के नुकसान और कैंसर जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के उस समय के अध्यक्ष अशोक कुमार घोष ने प्रेस से कहा था कि पीने के पानी में यूरेनियम का मिलना एक काफी गंभीर चिंता की बात है। कुमार ने यूरेनियम के हाईलेवल को लोगों में कैंसर, फेफड़ों में समस्या और गुर्दे और त्वचा रोगों सहित गंभीर स्वास्थ्य जोखिमों का कारण बताया था।
यूरेनियम वाले पानी के नमूनों के जांच में क्या बात आई है सामने
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के छह जिलों में हाईलेवल यूरेनियन के पाए जाने का खुलासा तब हुआ जब बालोद के देवतराई गांव में 25 साल पुराने बोरवेल के पानी में यूरेनियम की मात्रा अधिक पाई गई है।
गांव के मुखिया दानेश्वर सिन्हा ने बताया कि गांव में इस बोलवेल के अलावा पानी का कोई दूसरा स्रोत नहीं है। उन्होंने बताया कि जब उन्हें पता चला है कि इसमें यूरेनियम पाई गई है तो पानी को दोबारा जांच के लिए भेजा गया है। सिन्हा के अनुसार, गांव में एक दूसरा बोरवेल भी खोला गया है लेकिन इसके पानी के स्रोत का सही से पता नहीं है।
राज्य के सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकालीन विभाग ने इन नमूनों को पहले दो बार चेक किया था और फिर बाद इसे दुर्ग के भिलाई इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में भेजा था। बीआईटी के वैज्ञानिकों ने नमूनों की रीडिंग में 86 से 105 माइक्रोग्राम यूरेनियम प्रति लीटर यूरेनियम की पुष्टि की है।
राज्य में पीने के पानी में यूरेनियम के मौजूदी को दूर करने के लिए भिलाई इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में पूनम देशमुख के नेतृत्व में एक अध्ययन किया था। उन्होंने यूरेनियम वाले पानी को साफ करने के लिए आंवले के पेड़ के छाल का इस्तेमाल किया था। इस पद्धति का पेटेंट भी किया गया था लेकिन अभी तक इसे बड़े पैमाने पर इस्तेमाल नहीं किया गया है।
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डब्ल्यूएचओ और भारत सरकार के मानकों से अधिक पाया गया यूरेनियम
भारतीय यूरेनियम निगम के अनुसार, छत्तीसगढ़ में 100 प्रतिशत ग्रेड यूरेनियम के चार ज्ञात भंडार हैं। इन भंडारों में से तीन भंडार राजनांदगांव जिले में हैं जहां पर दूषित पानी पाया गया था।
छत्तीसगढ़ के छह जिलों के पीने के पानी में यूरेनियम डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित लीमिट 15 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से तीन से चार गुना अधिक दर्ज किया गया है। यही नहीं राज्य के कुछ क्षेत्रों में यह भारत सरकार की प्रति लीटर 30 माइक्रोग्राम की सीमा से भी अधिक पाई गई है।
बता दें कि साल 2017 में डब्ल्यूएचओ ने पीने के पानी में प्रति लीटर 15 माइक्रोग्राम यूरेनियम की सीमा की बात कही थी जबकि भारत सरकार ने 30 माइक्रोग्राम की उच्च स्वीकार्य सीमा निर्धारित किया था।
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ने अपने हालिया रिपोर्ट में इसकी सीमा को 60 माइक्रोग्राम प्रति लीटर तक सुरक्षित माना था। इन सब स्वीकार्य सीमाओं के बावजूद छत्तीसगढ़ के कई जिलों में यूरेनियम का स्तर इससे भी अधिक दर्ज किया गया है।