नई दिल्ली: आज से 11 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर समुदाय को ‘तीसरे लिंग’ के रूप में मान्यता दी थी और उनके समानता व गरिमा के मौलिक अधिकार को बरकरार रखा था। हालांकि, भेदभाव अभी भी जारी है। इसी बात पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण कदम उठाया।
कोर्ट ने दिल्ली उच्च न्यायालय की एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है। इस समिति का काम रोजगार और शिक्षा के क्षेत्रों में ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक व्यापक समान अवसर नीति का मसौदा तैयार करना है। साथ ही केंद्र सरकार को यह भी निर्देश दिया कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए एक संरक्षण प्रकोष्ठ और अपराधों की शिकायत के लिए एक समर्पित राष्ट्रव्यापी टोल-फ्री हेल्पलाइन नंबर तुरंत स्थापित किया जाए।
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त की कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019” और उसके 2020 के नियम अब तक केवल कागजों तक सीमित हैं और इनका क्रियान्वयन “क्रूरता से मृत अक्षरों में बदल दिया गया है।” शीर्ष अदालत ने कहा, संबंधित नियमों के लागू होने के बावजूद, इस समुदाय को हाशिए पर डाले जाने, बहिष्कार और व्यवस्थागत उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है।
पीठ ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों का रवैया बेहद सुस्त और असंवेदनशील रहा है। अदालत ने कहा कि नालसा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2014) के फैसले को 11 साल बीत चुके हैं, जिसमें ट्रांसजेंडर लोगों को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी गई थी और समानता व गरिमा का अधिकार सुनिश्चित किया गया था, लेकिन भेदभाव आज भी जारी है।
पीठ ने कहा, “यह समुदाय भेदभाव और हाशिए पर डाले जाने का सामना कर रहा है, साथ ही स्वास्थ्य सेवा, आर्थिक अवसरों और गैर-समावेशी शैक्षिक नीतियों की कमी उनके संघर्षों को और बढ़ा रही है।”
समान अवसर नीति के लिए कमेटी का गठन
न्यायिक व्यवस्था में सुधार सुनिश्चित करने के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायाधीश आशा मेनन की अध्यक्षता में एक सलाहकार समिति का गठन किया है। इस समिति को शिक्षा और रोजगार के क्षेत्रों में ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक व्यापक ‘समान अवसर नीति’ का मसौदा तैयार करने का काम सौंपा गया है।
समिति को छह महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट तैयार करनी होगी। इसके बाद, केंद्र सरकार को रिपोर्ट मिलने के तीन महीने के भीतर इस नीति को अपनाना और लागू करना होगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कोई संस्थान अपनी खुद की नीति बनाने में विफल रहता है, तो केंद्र सरकार की नीति उस पर स्वतः लागू हो जाएगी।
ट्रांसजेंडर अधिकारों की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या निर्देश जारी किए?
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेष अधिकारों का प्रयोग करते हुए देशभर में ट्रांसजेंडर सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करने के लिए कई बाध्यकारी निर्देश जारी किए हैं। अदालत ने कहा कि हर राज्य और केंद्रशासित प्रदेश में एक अपील प्राधिकारी नियुक्त किया जाए, जहां ट्रांसजेंडर व्यक्ति जिला मजिस्ट्रेट के निर्णय के खिलाफ अपील कर सकें।
इसके अलावा, हर राज्य में एक ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड का गठन किया जाए, जो कल्याण योजनाओं की निगरानी करे और समुदाय के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करे। प्रत्येक जिले में ट्रांसजेंडर प्रोटेक्शन सेल भी स्थापित की जाएगी, जो अपराधों की निगरानी और आवश्यक अभियोजन की जिम्मेदारी निभाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने पूरे देश में एक टोल-फ्री हेल्पलाइन नंबर शुरू करने का निर्देश भी दिया है, ताकि ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्य अपने साथ होने वाले भेदभाव, उत्पीड़न या हमलों की तुरंत रिपोर्ट कर सकें और उन्हें न्याय मिल सके।