नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को धर्म और राजनीति को अलग रखना चाहिए। कोर्ट ने तिरुपति मंदिर के प्रसिद्ध लड्डुओं में मिलावट के आरोपों को लेकर सरकार द्वारा पर्याप्त सबूत के बिना मीडिया में जाने पर नाराजगी जताई।
न्यायमूर्ति बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने तिरुपति लड्डुओं में घी मिलावट के आरोपों पर सुनवाई के दौरान आंध्र प्रदेश सरकार और तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) प्रबंधन से कई सवाल पूछे। कोर्ट ने पूछा कि आखिर मिलावट के दावे को साबित करने के लिए क्या सबूत हैं।
न्यायमूर्ति गवई ने आंध्र प्रदेश सरकार के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी से कहा, “जब आप संवैधानिक पद पर होते हैं, तो यह अपेक्षा की जाती है कि आप राजनीति से धर्म को दूर रखें।”
18 सितंबर को दावा और 25 को हुई एफआईआर
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि चंद्रबाबू नायडू ने इस मामले में एफआईआर दर्ज होने से पहले ही लड्डुओं में मिलावट का मुद्दा उठाया था। कोर्ट ने कहा कि नायडू ने 18 सितंबर को यह दावा किया, जबकि एफआईआर 25 सितंबर को दर्ज हुई और विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन 26 सितंबर को हुआ।
पीठ ने कहा कि यह उचित नहीं था कि एक उच्च संवैधानिक पदाधिकारी सार्वजनिक रूप से ऐसा बयान दे, जो करोड़ों लोगों की भावनाओं को प्रभावित कर सकता है। कोर्ट ने आगे पूछा, “आपने एसआईटी का आदेश दिया। परिणाम आने से पहले प्रेस में जाने की क्या आवश्यकता थी? आपने पहले भी ऐसा किया है। यह दूसरी बार हो रहा है।”
मुकुल रोहतगी ने नायडू सरकार की ओर से तर्क दिया कि ये याचिकाएं गंभीर नहीं हैं और पिछली सरकार के खिलाफ हमला करने के उद्देश्य से लाईं गई हैं। उन्होंने कहा, “टीटीडी ने अपने अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है।”
लड्डुओं में मिलावटी घी के इस्तेमाल का क्या प्रमाण?
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सवाल किया कि क्या इस बात के प्रमाण हैं कि लड्डुओं में मिलावटी घी का इस्तेमाल किया गया था? तिरुपति मंदिर की ओर से वकील सिद्धार्थ लूथरा ने अदालत को सूचित किया कि मामले की जांच जारी है। इस पर न्यायमूर्ति गवई ने पूछा, “फिर प्रेस में तुरंत जाने की क्या जरूरत थी? धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि कोई रिपोर्ट यह साबित नहीं करती कि लड्डुओं में मिलावटी घी का इस्तेमाल किया गया था। इसके जवाब में लूथरा ने बताया कि लोगों ने लड्डू के स्वाद में अंतर की शिकायत की थी। इसपर कोर्ट ने पूछा कि “जिस लड्डू का स्वाद अलग था, क्या उसे लैब भेजा गया यह जानने के लिए कि उसमें मिलावटी सामग्री थी या नहीं?”
न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने कहा, “क्या यह सामान्य समझदारी नहीं है कि आप दूसरा मत लेते? सामान्य परिस्थितियों में हम दूसरा मत लेते हैं। इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि मिलावटी घी का उपयोग किया गया था।”
क्या इस मामले की जांच किसी केंद्रीय एजेंसी से कराई जानी चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से केंद्र से निर्देश लेने को कहा कि क्या इस मामले की जांच किसी केंद्रीय एजेंसी से कराई जानी चाहिए। मामले की अगली सुनवाई गुरुवार 3 अक्टूबर को निर्धारित की गई है।
तीन याचिकाओं पर हो रही थी सुनवाई
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट तीन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिन्हें वरिष्ठ भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी, राज्यसभा सांसद और पूर्व टीटीडी अध्यक्ष वाईवी सुब्बा रेड्डी और तीसरी याचिका इतिहासकार विक्रम संपथ व आध्यात्मिक वक्ता दुष्यंत श्रीधर ने दायर किया है।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने 18 सितंबर को आरोप लगाया था कि पिछली वाईएस जगन मोहन रेड्डी सरकार के कार्यकाल के दौरान तिरुपति लड्डुओं में जानवरों की चर्बी का उपयोग किया गया था। इस बयान ने एक बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया था। जवाब में, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने नायडू पर घिनौने आरोप लगाने और राजनीतिक लाभ उठाने का आरोप लगाया।