Thursday, October 16, 2025
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तालिबान ने ₹60.54 हजार करोड़ के अमेरिकी हथियार लौटाने की ट्रंप की मांग खारिज की

काबुलः अफगानिस्तान में तालिबान ने 2021 में अमेरिकी सेना द्वारा छोड़े गए सैन्य उपकरण लौटाने से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान ने दावा किया है कि उन्हें ISIS-K (इस्लामिक स्टेट खुरासान) के खिलाफ लड़ाई के लिए अधिक हथियारों और उन्नत उपकरणों की आवश्यकता है।

ट्रंप की चेतावनी और तालिबान की प्रतिक्रिया

डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में एक रैली में कहा था कि यदि तालिबान अमेरिकी सैन्य उपकरण, जिनमें विमान, युद्धक हथियार, वाहन और संचार उपकरण शामिल हैं, वापस नहीं करता है, तो अफगानिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक सहायता बंद कर दी जाएगी।

ट्रंप ने कहा, “अगर हम हर साल अरबों डॉलर खर्च कर रहे हैं, तो उन्हें बता दें कि जब तक वे हमारे सैन्य उपकरण वापस नहीं करेंगे, उन्हें पैसा नहीं मिलेगा।” हालांकि, तालिबान ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वे उपकरण लौटाने के बजाय उनका इस्तेमाल ISIS-K जैसे आतंकवादी संगठनों के खिलाफ करेंगे।

अफगानिस्तान छोड़ते समय छोड़े गए थे हथियार

अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान में 20 साल के लंबे सैन्य अभियान के बाद 2021 में देश छोड़ दिया था। इस दौरान सेना ने लगभग 7 अरब डॉलर मूल्य (60.54 हजार करोड़ रुपए) के सैन्य उपकरण पीछे छोड़ दिए, जिन पर तालिबान ने नियंत्रण कर लिया।  इन उपकरणों में विमान, सैन्य वाहन, हवा से जमीन पर मार करने वाले हथियार, संचार उपकरण और अन्य सामग्री शामिल थी।

ट्रंप की मांग को नकारने के बावजूद, तालिबान अमेरिका के साथ रिश्ते सुधारने का इच्छुक है। तालिबान ने अमेरिका के नए प्रशासन से अपील की है कि उन्हें लगभग 9 अरब डॉलर की जमी हुई विदेशी मुद्रा भंडार तक पहुंचने की अनुमति दी जाए। तालिबान का कहना है कि वे आर्थिक संकट से जूझ रहे देश को स्थिर करने और अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करने के लिए अमेरिका के साथ शांतिपूर्ण संबंध स्थापित करना चाहते हैं।

तालिबान को राजनयिक मान्यता नहीं

हाल ही में, तालिबान ने घोषणा की कि उसने एक अमेरिकी नागरिक के बदले में एक अफगानी कैदी को रिहा किया है। हालांकि चीन, पाकिस्तान और रूस जैसे कुछ देशों ने तालिबान के राजदूतों का स्वागत किया है, लेकिन उन्होंने तालिबान शासन को आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं दी है।

पिछले वर्ष, चीन तालिबान को राजनयिक मान्यता देने वाला पहला देश बना, लेकिन तालिबान शासन को अब भी मानवाधिकार हनन और अन्य मुद्दों के कारण व्यापक आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। तालिबान की वर्तमान रणनीति स्पष्ट रूप से अपने नियंत्रण वाले सैन्य उपकरणों का उपयोग देश की सुरक्षा और सत्ता को स्थिर करने के लिए करना है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय मान्यता और सहायता प्राप्त करने की उनकी कोशिशें अब भी बाधाओं का सामना कर रही हैं।

अनिल शर्मा
अनिल शर्माhttp://bolebharat.com
दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में उच्च शिक्षा। 2015 में 'लाइव इंडिया' से इस पेशे में कदम रखा। इसके बाद जनसत्ता और लोकमत जैसे मीडिया संस्थानों में काम करने का अवसर मिला। अब 'बोले भारत' के साथ सफर जारी है...
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