नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार, 17 नवंबर को टेट्रा पैक में शराब बिक्री को लेकर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। अदालत ने एक मामले में सुनवाई के दौरान कहा कि इसकी पैकेजिंग फ्रूट जूस की तरह दिखती है और कोई स्वास्थ्य संबंधी चेतावनी भी नहीं है जिससे बच्चे चुपचाप शराब लेकर स्कूल जा सकते हैं।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ ने भारत के दो सबसे अधिक बिकने वाले व्हिस्की ब्रांड ऑफिसर्स च्वाइस (Officer’s Choice (Allied Blenders & Distillers)) और ऑरिजिनल च्वाइस (Original Choice (John Distilleries)) के बीच लंबे समय से चल रही ट्रेडमार्क सुधार विवाद में क्रास याचिकाओं की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान क्या कहा?
अदालत ने इस मामले में सुनवाई के दौरान कहा कि “यह जूस की तरह दिखती है। बच्चे इसे स्कूल ले जा सकते हैं। सरकारें इसकी अनुमति कैसे दे रही हैं?” अदालत ने यह भी कहा कि इन पैकेट्स (टेट्रा पैक) में शराब जैसे ‘बिल्कुल’ नहीं दिखते और इन पर कोई वैधानिक चेतावनी भी नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह की बिक्री की अनुमति केवल राज्य के राजस्व हितों के लिए दी जा रही है जिसमें जन-स्वास्थ्य के जोखिमों को बहुत कम ध्यान दिया गया है।
अदालत ने आगे कहा “सरकारें राजस्व में रुचि रखती हैं। लेकिन इससे स्वास्थ्य पर कितना खर्च बर्बाद होता है?” दोनों कंपनियों के बीच यह विवाद काफी पुराना है। यह विवाद 1990 के दशक की शुरुआत से चल रहा है। ऑफिसर्स च्वाइस का पहली बार इस्तेमाल 1988 में हुआ था। इसे असाइनमेंट के जरिए अधिग्रहित किया गया और बाद में पंजीकृत कराया गया।
वहीं, ऑरिजिनल च्वाइस ने 1995-96 में बाजार में प्रवेश किया और पंजीकरण भी हासिल किया। दोनों कंपनियों की बाजार में भारी हिस्सेदारी है। बार एंड बेंच की खबर के मुताबिक, बीते दो दशकों में इनकी संयुक्त बिक्री 60,000 करोड़ रुपये से ज्यादा हो गई है। दोनों ही कंपनियों का दावा है कि वे भारत की शीर्ष पांच व्हिस्की ब्रांड में शामिल हैं।
अदालत ने सुनवाई के दौरान क्या चिंता जताई?
अदालत ने सुनवाई के दौरान कई बिंदुओं पर चिंता व्यक्त की –
क्या ऑरिजिनल च्वाइस ऑफिसर्स च्वाइस से भ्रामक रूप से समान है?
क्या दोनों कंपनियों ने साझा प्रत्यय (Choice) – जिसे दोनों ने अस्वीकार किया है – भ्रम पैदा करने के लिए पर्याप्त है?
क्या रंग, बैज, एपेलॉट और लेबल लेआउट एक भ्रामक ‘समग्र प्रभाव’ पैदा करते हैं।
गौरतलब है कि इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी अपीलीय बोर्ड ने साल 2013 में दोनों पक्षों की सुधार याचिकाओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि दोनों ब्रांड भ्रामक रूप से समान नहीं थे और प्रतिद्वंद्वी लेबल भ्रम नहीं पैदा करते थे।
मद्रास हाई कोर्ट में 12 साल चला मामला
दोनों ही पक्षों द्वारा इसके खिलाफ रिट याचिकाएं दायर की गईं। मद्रास हाई कोर्ट ने 2013 के आईपीएबी के आदेश को रद्द कर दिया और ऑरिजिनल च्वाइस की सुधार याचिका को स्वीकार कर लिया और ऑफिसर्स च्वाइस की याचिका को रद्द कर दिया।
हाई कोर्ट ने सुनवाई में माना था कि एपीएबी ने केवल ‘च्वाइस’ शब्द की जांच करके एक मौलिक त्रुटि की थी जबकि उसने रंग योजनाओं, ऑफिसर्स बैज रूपांकनों और समग्र व्यापार पोशाक सहित प्रतिस्पर्धी लेबल और उपकरण चिन्हों की अनदेखी की थी।
हाई कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया था कि ट्रेडमार्क समानता का मूल्यांकन समग्र रूप से किया जाना चाहिए न कि घटकों का विश्लेषण करके। अदालत ने इस दौरान पाया कि ‘ऑफिसर्स च्वाइस’ और ‘ऑरिजिनिल च्वाइस’ के बीच संरचनात्मक संरचनाएं सुधार के लिए पर्याप्त हैं।
अदालत ने एबीडी (Allied Blenders & Distillers) के विरुद्ध खाधड़ीपूर्ण असाइनमेंट के तर्कों को खारिज कर दिया और कहा कि पंजीकरण बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदित बाद के कॉर्पोरेट पुनर्गठन के माध्यम से परिपक्व हो गया था।
इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां आज (17 नवंबर) को सुनवाई के दौरान कहा कि यह विवाद दो दशकों से अधिक पुराना है और करीब 12 साल हाई कोर्ट में चला। अदालत ने पूछा कि क्या लंबी मुकदमेबाजी के बजाय ब्रांडिंग में बदलाव करके सुलझाया जा सकता है?
इस दौरान दोनों पक्ष रंग योजना, प्रतीक चिन्ह की स्थिति के साथ-साथ ‘च्वाइस’ शब्द की शैली में बदलाव पर विचार करने पर सहमत हुए। इसके बाद अदालत ने मध्यस्थता के लिए दोनों पक्षों को रिटायर्ड जस्टिस एल नागेश्वर राव के पास भेजा।

