नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार, 11 नवंबर को तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर चुनाव आयोग (EC) से जवाब मांगा है। अदालत ने इसके साथ ही याचिकाकर्ताओं से भी पूछा है कि वे इस प्रक्रिया को लेकर इतने आशंकित क्यों हैं?
तमिलनाडु में एसआईआर को सत्तारूढ़ डीएमके, सीपीआई (एम) और कांग्रेस पार्टी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। वहीं, पश्चिम बंगाल में इस अभ्यास को लेकर कांग्रेस की राज्य इकाई ने हमला किया है।
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में क्या कहा गया?
सुप्रीम कोर्ट में एसआईआर के खिलाफ दायर की गई छह याचिकाओं पर सुनवाई हुई। इस दौरान जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया और याचिकाकर्ताओं से पूछा कि इस प्रक्रिया से आशंकित क्यों हैं?
अदालत ने याचिकाकर्ताओं से यह भी कहा कि यदि पीठ संतुष्ट हो जाती है तो वह इस प्रक्रिया को रद्द कर देगी। सुनवाई के दौरान डीएमके की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया जल्दबाजी में की जा रही है जबकि पहले मतदाता सूची संशोधन करने में तीन साल लग जाते थे।
उन्होंने दलील दी “ऐसा कभी नहीं हुआ। पहले इसमें तीन साल लग जाते थे। अब वे (ईसीआई) एक महीने का समय कह रहे हैं। अंततः लाखों लोग बाहर हो जाएंगे।”
इस पर अदालत ने कहा “आप अपना प्रति-शपथ पत्र (काउंटर एफिडेविट) दाखिल करें। हम नोटिस जारी कर रहे हैं। यदि हम संतुष्ट हैं तो हम इस प्रक्रिया को रद्द कर देंगे। हम सभी रिट याचिकाओं पर नोटिस जारी कर रहे हैं।”
अदालत बिहार में एसआईआर को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार कर रहा है। गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने जून 2025 में बिहार में एसआईआर का निर्देश दिया था। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), नेशनल फेडरेशन फॉर वीमेन सहित कई अन्य याचिकाएं इस प्रक्रिया के खिलाफ दायर की गईं थीं जो अदालत में पहले से लंबित हैं।
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अदालत में विचाराधीन होने के बावजूद चुनाव आयोग ने 27 अक्तूबर 2025 को तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल सहित अन्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में एसआईआर प्रक्रिया लागू की।
डीएमके के संगठन सचिव आरएस भारती द्वारा दायर याचिका में 27 अक्तूबर को चुनाव आयोग के आदेश को रद्द करने की मांग की गई है। पार्टी द्वारा दायर की गई याचिका में कहा गया कि चुनाव आयोग के आदेश असंवैधानिक हैं, चुनाव आयोग की शक्तियों से परे हैं और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के विपरीत हैं।
इस याचिका में कहा गया कि एसआईआर संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 का उल्लंघन करता है। इसमें आगे कहा गया कि इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप वास्तविक मतदाता बड़े पैमाने पर मताधिकार से वंचित हो सकते हैं।
इसमें आगे बताया गया कि तमिलनाडु ने अक्तूबर 2024 से जनवरी 2025 के बीच विशेष सारांश संशोधन (एसआरआर) पहले ही पूरा कर लिया गया है। इस दौरान नए मतदाताओं को शामिल करने और अयोग्य नामों को हटाने के लिए मतदाता सूची अपडेट की गई थी।
कपिल सिब्बल ने क्या दलील दी?
डीएमके की याचिका में कहा गया कि एसआईआर दिशानिर्देश चुनाव आयोग को व्यक्तियों की नागरिकता को सत्यापित करने का अधिकार देते हैं जबकि नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत यह अधिकार केंद्र सरकार के पास है।
पश्चिम बंगाल की याचिकाओं में भी इसी तरह के सवाल उठाए गए हैं।
डीएमके की ओर से सिब्बल ने दलील दी और इस प्रक्रिया पर सवाल उठाए। सिब्बल ने अलग-अलग राज्यों की स्थिति अलग होने की बात कही। इसके साथ ही यह भी कहा कि कई क्षेत्रों में कनेक्टिविटी का अभाव है। जस्टिस कांत ने कहा कि आप लोग इतने आशंकित क्यों हैं?
सिब्बल ने प्रक्रिया की जल्दीबाजी पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा “प्रक्रिया शुरू हो गई है। पहले कम से कम प्रक्रिया के दौरान सूचना दी जाती थी। अब उन्होंने उस प्रक्रिया को बदल दिया है। प्रकाशन से पहले लाखों फॉर्मों का डिजिटलीकरण नहीं किया जा सकता। यह अंततः एक हास्यास्पद प्रक्रिया होगी। हमें समझ नहीं आ रहा कि इतनी जल्दी क्यों है?”
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उन्होंने आगे कहा कि हम सुझाव दे रहे हैं। यह एक महीने में नहीं हो सकता। बंगाल की स्थिति बहुत खराब है। वहां कोई कनेक्टिविटी नहीं है। न 5G है, न 4G। इस पर जस्टिस कांत ने कहा कि आप लोग ऐसा दिखाना चाहते हैं जैसे देश में पहली बार मतदाता सूची तैयार की जा रही है।
सिब्बल ने कहा कि पहले इसके लिए तीन साल का समय लगता था एक महीने का नहीं। इसके बाद अदालत ने चुनाव आयोग से तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में एसआईआर को चुनौती देने वाली सभी नई याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने को कहा।

