नई दिल्ली: देश की सर्वोच्च अदालत ने बच्चों से जुड़े अश्लील कंटेंट को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने फैसले में कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करना और देखना यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम-2012 (POCSO) और आईटी लॉ के तहत अपराध है।
इस फैसले के साथ भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने मद्रास हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि केवल चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना और देखना POCSO अधिनियम के तहत अपराध नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हाई कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाने में ‘भारी गलती’ की है।
क्या था मद्रास हाई कोर्ट का फैसला?
मद्रास हाई कोर्ट का आदेश उस एक मामले में आया था जिसमें 28 वर्षीय एक व्यक्ति एस. हरीश पर अपने फोन पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी कंटेंट डाउनलोड करने का आरोप लगा था। अदालत ने उस व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवागी को रद्द कर दिया था और कहा था कि आजकल युवा पोर्नोग्राफी देखने की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं और समाज को इतना परिपक्व होना चाहिए कि उन्हें दंडित करने के बजाय शिक्षित करे। हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ बच्चों के अधिकार के लिए काम करने वाली संस्थाओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
उस फैसले में मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस एन आनंद वेंकटेश ने कहा था कि केवल किसी के व्यक्तिगत इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना या देखना POCSO अधिनियम और आईटी अधिनियम के तहत अपराध नहीं है। मार्च में मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हाई कोर्ट की टिप्पणी ठीक नहीं थी। वहीं, केरल उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक फैसले में कहा था कि बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री की आकस्मिक या ऑटोमेटिक डाउनलोडिंग सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत अपराध नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसेल में क्या कहा है?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आरोपी 28 वर्षीय शख्स के खिलाफ एक बार फिर आपराधिक कार्यवाही शुरू हो सकेगी। कोर्ट का आदेश POCSO अधिनियम की धारा 15 पर केंद्रित है जो बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री को जमा करने के लिए सजा का प्रावधान करता है।
यह धारा कहती है, ‘कोई भी व्यक्ति जो किसी बच्चे से जुड़ी कोई अश्लील सामग्री संग्रहीत करता है और इसकी रिपोर्ट करने या उसे नष्ट करने में विफल रहता है, उस पर कम से कम पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है। दोबारा अपराध करने पर कम से कम दस हजार रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है। सामग्री को आगे प्रसारित करने या प्रचारित करने के लिए संग्रहीत किया जाता है, तो जुर्माने के साथ-साथ तीन साल तक की कैद की सजा हो सकती है। इसके अलावा व्यावसायिक उद्देश्य के लिए बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री को जमा करने पर तीन से पांच साल की कैद और बाद में दोषी पाए जाने पर सात साल तक की सजा हो सकती है।
जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि इस मामले में ‘मेन्स रिया’ (mens rea, अपराध के पीछे का इरादा/अपराधी की मानसिक स्थिति) की भी जानकारी जुटानी जरूरी है।
कोर्ट ने कहा, ‘हमने बच्चों के उत्पीड़न और दुर्व्यवहार पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी के लंबे समय तक रहने वाले प्रभाव पर कहा है… हमने संसद को POCSO में एक संशोधन लाने का सुझाव दिया है ताकि चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द के स्थान पर बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री (CSEAM) का इस्तेमाल किया जा सके। हमने सुझाव दिया है कि एक अध्यादेश लाया जा सकता है। हमने सभी अदालतों से कहा है कि वे किसी भी आदेश में चाइल्ड पोर्नोग्राफी का उल्लेख न करें।’