Thursday, October 16, 2025
Homeभारतअदालतों द्वारा घोषित वक्फ संपत्तियों को डि-नोटिफाई नहीं किया जा सकता, चाहे...

अदालतों द्वारा घोषित वक्फ संपत्तियों को डि-नोटिफाई नहीं किया जा सकता, चाहे वह ‘वक्फ बाय यूजर’ हो या वक्फ बाय डीड: SC

नई दिल्ली: वक्फ अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि जिन संपत्तियों को अदालतों ने पहले ही वक्फ घोषित कर दिया है, उन्हें डि-नोटिफाई (वक्फ की सूची से हटाया) नहीं किया जा सकता—चाहे वह ‘वक्फ बाय यूजर’ हो या वक्फ बाय डीड।

न्यायालय ने विशेष रूप से उन ऐतिहासिक मस्जिदों का हवाला दिया, जो 14वीं से 16वीं सदी के बीच बनी थीं और जिनके पास कोई रजिस्ट्री या विक्रय पत्र नहीं हो सकता। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि इस तरह की धार्मिक संपत्तियों के लिए “वक्फ बाय यूजर” की व्यवस्था को खारिज करना न्यायसंगत नहीं होगा।

SC ने ‘वक्फ बाय यूजर’ प्रावधान को हटाने के निर्णय पर स्पष्टता मांगी

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने केंद्र सरकार से ‘वक्फ बाय यूजर’ प्रावधान को हटाने के निर्णय पर स्पष्टता मांगी। 

पीठ ने कहा, “आपने अभी तक इस सवाल का जवाब नहीं दिया — क्या ‘वक्फ बाय यूजर’ को मान्यता दी जाएगी या नहीं? अगर नहीं दी गई, तो यह पहले से स्थापित स्थिति को पलटना होगा। ऐसे मामलों में आप रजिस्ट्रेशन कैसे करेंगे? आप यह नहीं कह सकते कि ऐसे कोई भी दावे असली नहीं होंगे।”

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वक्फ संशोधन अधिनियम में दिया गया वह प्रावधान, जिसके तहत यदि किसी संपत्ति पर जांच चल रही हो कि वह सरकारी जमीन है या नहीं, तो उसे वक्फ नहीं माना जाएगा- उसका कोई प्रभाव नहीं होगा।

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी- “मान लीजिए कोई दुकान है या कोई मंदिर जिसे वक्फ घोषित किया गया है, तो यह कानून यह नहीं कहता कि उसका उपयोग बंद कर दिया जाएगा। यह केवल कहता है कि जब तक हम निर्णय ने लें, उसे कोई लाभ नहीं मिलेगा।”

इस पर सीजेआई खन्ना ने सवाल किया, “फिर किराया कहां जाएगा? फिर उस प्रावधान का औचित्य क्या है?” मेहता ने कहा कि यह नहीं कहा गया है कि उसका वक्फ रूप में उपयोग रुक जाएगा।

‘क्या हिंदू धार्मिक न्यासों में भी मुसलमान शामिल होंगे?’

इस बहस के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने यह सवाल भी उठाया कि यदि केंद्र सरकार वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने की बात कर रही है, तो क्या वह हिंदू धार्मिक न्यासों और देवस्थानम बोर्डों में मुसलमानों को भी शामिल करने की अनुमति देगी? 

गौरतलब है कि इस अधिनियम की वैधता को चुनौती देते हुए कुल 72 याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB), जमियत उलेमा-ए-हिंद और कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी की याचिकाएं भी शामिल हैं। शीर्ष अदालत मामले में कल भी सुनवाई जारी रखेगी। सीजेआई संजीव खन्ना ने विधेयक के पारित होने के बाद हुई हिंसा की निंदा करते हुए इसे बहुत परेशान करने वाला बताया।

 

अनिल शर्मा
अनिल शर्माhttp://bolebharat.com
दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में उच्च शिक्षा। 2015 में 'लाइव इंडिया' से इस पेशे में कदम रखा। इसके बाद जनसत्ता और लोकमत जैसे मीडिया संस्थानों में काम करने का अवसर मिला। अब 'बोले भारत' के साथ सफर जारी है...
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments

डॉ उर्वशी on कहानीः इरेज़र
मनोज मोहन on कहानीः याद 
प्रकाश on कहानीः याद 
योगेंद्र आहूजा on कहानीः याद 
प्रज्ञा विश्नोई on कहानीः याद 
डॉ उर्वशी on एक जासूसी कथा