नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें संगठन पर दो महिलाओं को अवैध रूप से बंधक बनाए रखने का आरोप था। याचिका कोयंबटूर के एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर, डॉ. एस. कामराज ने दायर की थी, जिन्होंने दावा किया था कि उनकी बेटियाँ गीता (42) और लता (39) को फाउंडेशन में बंधक बनाकर रखा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को खत्म करते हुए पुलिस और अदालत की आगे की कार्रवाई पर रोक लगा दी।
महिलाओं ने किया स्वेच्छा से रहने का दावा
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए दोनों महिलाओं से ऑनलाइन बातचीत की। इस बातचीत में महिलाओं ने स्पष्ट किया कि वे अपनी मर्जी से ईशा फाउंडेशन के आश्रम में रह रही हैं और उन पर किसी प्रकार का दबाव या जोर-जबरदस्ती नहीं की गई है।
महिलाओं के बयानों के आधार पर, सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को पलटते हुए कहा कि हाई कोर्ट को तब ही इस मामले को बंद कर देना चाहिए था जब दोनों महिलाओं ने स्वेच्छा से वहां रहने की बात स्वीकार की थी।
पुलिस जांच और हाई कोर्ट का हस्तक्षेप
इस मामले की जांच 30 सितंबर को मद्रास हाई कोर्ट के आदेश पर शुरू हुई थी। प्रोफेसर कामराज ने याचिका में आरोप लगाया था कि उनकी बेटियाँ, जिन्हें आश्रम में माँ मथी और माँ मायू के नाम से जाना जाता है, को जबरदस्ती मठवासी मार्ग पर चलने के लिए मजबूर किया गया है। इसके बाद हाई कोर्ट ने पुलिस को जांच के आदेश दिए, जिसके तहत 150 पुलिसकर्मियों की एक टीम ने 1 अक्टूबर को आश्रम परिसर में छापा मारा।
हालांकि, पुलिस द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में दोनों महिलाओं ने स्पष्ट रूप से अपने पिता के आरोपों को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि वे अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं और नियमित रूप से अपने माता-पिता से मिलती हैं।
पुलिस को दिए बयान में लोगों ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने 3 अक्टूबर को राज्य पुलिस की आगे की जांच पर रोक लगा दी थी और मामले को अपने पास स्थानांतरित कर लिया था। पुलिस द्वारा प्रस्तुत की गई जांच रिपोर्ट में कहा गया कि दोनों महिलाएँ शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ हैं, और उन्होंने अपनी इच्छा से ईशा फाउंडेशन के मठवासी जीवन को चुना है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि आश्रम के 217 ब्रह्मचारी, जिनमें से 30 का साक्षात्कार किया गया, सभी अपनी मर्जी से वहां रह रहे हैं।
ईशा फाउंडेशन पर अन्य आरोप
पुलिस की रिपोर्ट में ईशा फाउंडेशन के खिलाफ कुछ अन्य चिंताओं को भी उजागर किया गया। पिछले 15 वर्षों में ईशा फाउंडेशन से जुड़े छह लापता व्यक्तियों के मामले दर्ज हुए हैं, जिनमें से पाँच मामलों को बंद कर दिया गया है जबकि एक अभी भी जांच के अधीन है। इसके अलावा, आश्रम की साइट पर अवैध रूप से निर्माणाधीन एक श्मशान और कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से संबंधित आंतरिक शिकायत समिति की निष्क्रियता की भी जांच की जा रही है।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि आश्रम के अस्पताल में पुरानी और एक्सपायर हो चुकी दवाओं का वितरण किया जा रहा था, जिसके खिलाफ शिकायतें दर्ज की गई थीं। ईशा फाउंडेशन में एक डॉक्टर के खिलाफ यौन शोषण की शिकायत भी दर्ज की गई थी, जिसे बाद में गिरफ्तार कर लिया गया था।
ईशा फाउंडेशन की प्रतिक्रिया
ईशा फाउंडेशन ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी अपील में मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को अनुचित बताते हुए कहा कि इसने उनके आश्रम के शांतिपूर्ण संचालन को बाधित किया और उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाया है। फाउंडेशन ने कहा कि हाई कोर्ट का आदेश उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन था और अदालतों तथा कानून प्रवर्तन एजेंसियों को व्यक्तिगत जीवन में बिना ठोस प्रमाण के हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए।
फाउंडेशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कोर्ट में कहा कि दोनों महिलाएँ 24 और 27 साल की उम्र में आश्रम में शामिल हुई थीं और उनके खिलाफ किए गए दावे पूरी तरह से बेबुनियाद हैं। उन्होंने यह भी बताया कि महिलाएँ सार्वजनिक कार्यक्रमों में भाग लेती हैं और अपने माता-पिता के संपर्क में हैं।