नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने ‘बुलडोजर एक्शन’ पर सख्त टिप्पणी की है और कहा कि यह किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है। कोर्ट ने बुधवार (13 नवंबर) को अपने फैसले में कहा कि मनमाना रवैया बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि अधिकारी इस तरह मनमाने तरीके से काम नहीं कर सकते। कोर्ट ने ‘केवल इसी आधार पर वे किसी अपराध के आरोपी हैं’, किसी के घर या निजी संपत्तियों को गिराने पर अंकुश लगाने के लिए दिशानिर्देश भी तय कर दिए।
जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ ने माना कि इस तरह की कार्रवाइयों से आरोपियों के अधिकारों का उल्लंघन होता है। कोर्ट ने कहा कि यह सामूहिक दंड देने के जैसा है, जिसकी संविधान में अनुमति नहीं है। कोर्ट ने कहा कि ऐसी कार्यवाई से अन्य किरायेदार भी गलत तरीके से दंडित होते जिन पर कोई आरोप नहीं है, और यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आश्रय के अधिकार का भी उल्लंघन है।
अवैध बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश
अवैध बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी ओर से जारी दिशानिर्देशों में कहा है कि बिना पूर्व कारण बताओ नोटिस के कोई ध्वस्तीकरण नहीं किया जा सकता। अनाधिकृत संरचनाओं पर कार्रवाई से 15 दिन पहले आवश्यक तौर पर मालिक को नोटिस भेजा जाना चाहिए, ताकि अगर वह चाहे इस आदेश को चुनौती दे सके।
इसके अलावा नोटिस में विध्वंस के कारणों और कार्रवाई को चुनौती देने के लिए सुनवाई की तारीख का जिक्र होना चाहिए। अगर कोई शख्स ध्वस्तीकरण को चुनौती नहीं देना चाहता, तो भी उन्हें उन हिस्सों को खाली करने के लिए पर्याप्त समय मिलना चाहिए, जिसे गिराया जाना है।
कोर्ट ने कहा कि नोटिस को रजिस्टर्ड पोस्ट से भेजा जाना चाहिए और इसे अनाधिकृ निर्माण के बाहर भी चिपकाया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि 15 दिन का समय नोटिस मिलने के बाद से गिना जाएगा।
अदालत ने स्पष्ट तौर पर कहा कि इन दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने पर अवमानना की कार्रवाई हो सकती है। इसमें मुआवजे के साथ-साथ, विध्वंस का आदेश देने वाले अधिकारियों को संपत्ति की क्षतिपूर्ति के लिए स्वयं भुगतान करने के लिए कहा जा सकता है।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर किसी सार्वजनिक स्थान जैसे कि सड़क, फुटपाथ, निकटवर्ती रेलवे लाइन या किसी रिवर बेल्ट या जल निकाय में कोई अनधिकृत संरचना बनी हो ऐसे मामलों में ये निर्देश लागू नहीं होंगे।
नोटिस भेजने और सुनवाई की पूरी प्रक्रिया भी कोर्ट ने की तय
कोर्ट ने कहा कि तारीखों में हेरफेर या अन्य किसी भी आरोप बचने के लिए ये जरूरी होगा कि जैसे ही नोटिस विधिवत तामील हो जाए, इसकी सूचना कलेक्टर/जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय को डिजिटल रूप से ईमेल द्वारा भेजी जाएगी। कलेक्टर/जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय से भी मेल की प्राप्ति का ऑटो-जेनेरेटेड जवाब आना चाहिए।
कोर्ट के निर्देश के अनुसार डीएम एक नोडल अधिकारी नामित करेंगे और एक ईमेल पता तैयार करेंगे। इसे ईमेल पते की जानकारी एक महीने के भीतर भवन नियमों के प्रभारी सभी अधिकारियों को भेजी जाएगी।
इसके अलावा प्रत्येक नगरपालिका प्राधिकरण को सुप्रीम कोर्ट के 13 नवंबर के फैसले की तारीख से तीन महीने के भीतर एक डिजिटल पोर्टल बनाना होगा जिसमें सेवा, नोटिस चिपकाने, जवाब, कारण बताओ नोटिस, पारित आदेश के बारे में सभी विवरण उपलब्ध होंगे।
नामित प्राधिकारी नोटिस के बाद दूसरे पक्ष को व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर देगा। इस सुनवाई का पूरा विवरण दर्ज किया जाएगा। प्राधिकरण के अंतिम आदेश में नोटिस प्राप्तकर्ता के तर्क, प्राधिकरण के निष्कर्ष और कारण शामिल होंगे। इसमें इसकी भी बात होगी कि क्या अनधिकृत निर्माण के मामले में समझौता योग्य मौके है, या क्या पूरे निर्माण को ध्वस्त किया जाना होगा? आदेश में यह वजह भी बताया जाना जरूरी होगा कि क्यों ध्वस्तीकरण ही एकमात्र विकल्प उपलब्ध है।
ध्वस्तीकरण की वीडियोग्राफी जरूरी
कोर्ट ने कहा कि अनधिकृत निर्माण को हटाने के लिए मालिक को एक अवसर दिया जाना चाहिए। केवल 15 दिनों की समाप्ति के बाद और मालिक/कब्जाधारी ने अनधिकृत निर्माण को नहीं हटाया है या यदि अपीलीय प्राधिकारी ने आदेश पर रोक नहीं लगाया है, तो संबंधित प्राधिकारी उसे ध्वस्त करने के लिए कदम उठाएगा।
कोर्ट ने यह भी कहा कि अनधिकृत निर्माण का केवल वही हिस्सा गिराया जा सकता है, जिसका कोई समाधान नहीं है। इसके अलावा ध्वस्तीकरण से पहले प्राधिकरण को विस्तृत निरीक्षण रिपोर्ट तैयार करनी होगी।
ध्वस्तीकरण की कार्यवाही की वीडियोग्राफी कर उसे रखा जाएगा। इस पूरी प्रक्रिया में भाग लेने वाले पुलिस और नागरिकों की सूची के साथ विध्वंस रिपोर्ट को नगर आयुक्त को भेजा जाएगा और इसे डिजिटल पोर्टल पर भी प्रदर्शित किया जाएगा।