नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों के काटने की घटनाओं में चिंताजनक वृद्धि पर संज्ञान लेते हुए इन्हें सार्वजनिक स्थलों से हटाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने शुक्रवार को अधिकारियों को कुत्तों को शैक्षणिक केंद्रों, अस्पतालों, रेलवे स्टेशनों, सार्वजनिक खेल परिसरों और बस अड्डों से हटाकर शेल्टर होम में भेजने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि इन जगहों पर आवारा कुत्तों और पशुओं को रोकने के लिए उचित बाड़ लगाई जाए। कोर्ट ने कहा कि ऐसे परिसरों की नियमित रूप से निगरानी की जाए।
जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एन वी अंजारिया की पीठ ने निर्देश दिया कि ऐसी जगहों से उठाए गए आवारा कुत्तों को वापस उसी स्थान पर नहीं छोड़ा जाए। शीर्ष अदालत ने आदेश दिया, ‘सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिव इसका कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करें। अन्यथा, अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया जाएगा।’ कोर्ट ने निर्देशों को लागू करने के लिए अपनाई गई व्यवस्थाओं के लिए आठ हफ्तों के अंदर अनुपालन स्थिति रिपोर्ट (कंप्लायंस स्टेटस रिपोर्ट) मांगी। इस मामले की आगे की सुनवाई 13 जनवरी को होगी।
सड़कों और हाईवे से मवशियों को हटाने के भी निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और नगर निकायों को राष्ट्रीय राजमार्गों, राज्य राजमार्गों और अन्य सड़कों से आवारा मवेशियों को हटाना सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया। अदालत ने साथ ही एक हाईवे पैट्रोल टीम भी गठित करने का आदेश दिया जो सड़कों पर आवारा मवेशियों को पकड़कर उन्हें शेल्टर होम में पहुँचाना सुनिश्चित करेगा, जहाँ उनकी उचित देखभाल की जाएगी।
कोर्ट ने कहा, ‘सभी राष्ट्रीय राजमार्गों पर आवारा पशुओं की सूचना देने के लिए हेल्पलाइन नंबर होंगे। सभी राज्यों के मुख्य सचिव इन निर्देशों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करेंगे।’
आवारा कुत्तों से जुड़े केस की पूरी कहानी
सुप्रीम कोर्ट खुद संज्ञान लेकर इस मामले की सुनवाई कर रहा है, जो 28 जुलाई को राष्ट्रीय राजधानी में आवारा कुत्तों के काटने से, खासकर बच्चों में, रेबीज फैलने की मीडिया रिपोर्टों पर शुरू हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने तब फैसला सुनाया था कि राष्ट्रीय राजधानी और आसपास (दिल्ली-एनसीआर) के इलाकों में सभी आवारा कुत्तों को रिहायशी इलाकों से हटाकर शेल्टर होम में भेजा जाना चाहिए, क्योंकि कुत्तों के काटने से रेबीज से होने वाली मौतों के बढ़ते मामले सामने आ रहे हैं। कोर्ट के अनुसार कुत्तों के शेल्टर होम में ऐसे पेशेवर होने चाहिए जो उन्हें संभाल सकें, उनकी नसबंदी और टीकाकरण कर सकें, और कुत्तों को बाहर न जाने दें।
कोर्ट ने तब शहर में आवारा कुत्तों की समस्या को ‘बेहद गंभीर’ बताते हुए, चेतावनी दी थी कि अधिकारियों द्वारा आवारा कुत्तों को उठाने में बाधा डालने वाले किसी भी व्यक्ति या संगठन के खिलाफ ‘कड़ी कार्रवाई’ होगी।
कोर्ट ने नगर निगम अधिकारियों को फीडिंग स्पेस बनाने का भी निर्देश दिया था जहाँ लोग आवारा कुत्तों को खाना खिला सकें। कोर्ट ने यह भी कहा था कि सार्वजनिक रूप से हर जगह आवारा कुत्तों को खाना देने की अनुमति नहीं होगी और यदि इसका उल्लंघन किया गया, तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
नाराजगी जता चुका है सुप्रीम कोर्ट
इससे पहले, सर्वोच्च न्यायालय ने पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) नियमों के क्रियान्वयन में खामियों को लेकर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रति नाराजगी व्यक्त की थी। 27 अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने उसके स्पष्ट आदेशों के बावजूद, अधिकांश राज्य सरकारों द्वारा अनुपालन हलफनामा दाखिल नहीं करने पर सख्त नाराजगी जताई थी। शीर्ष अदालत ने कहा था कि केवल पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) ने ही अपने हलफनामे जमा किए हैं।
जस्टिस नाथ की अध्यक्षता वाली पीठ इस मामले की बारीकी से जांच कर रही है। पीठ इस बात पर जोर दे रही है कि आवारा पशुओं से जुड़ी कई घटनाएं न केवल जन सुरक्षा से समझौता करती हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि को भी खराब करती हैं।
गौरतलब है कि 31 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के उस अनुरोध को भी खारिज कर दिया जिसमें मुख्य सचिवों को वर्चुअल रूप से पेश होने की अनुमति देने की मांग की गई थी। कोर्ट ने सभी को खुद अदालत के सामने उपस्थित होने का निर्देश दिया था।
इससे पहले शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को एबीसी नियमों को लागू करने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण देते हुए हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था, जिसमें नसबंदी अभियान, टीकाकरण कार्यक्रम और पशुओं के लिए शेल्टर होम आदि की स्थापना शामिल है।

