राजधानी दिल्ली के एलिट एपीजे अब्दुल कलाम रोड (पहले औरंगजेब रोड) पर हर रोज की तरह ट्रैफिक आ जा रहा है। सड़क के दोनों तरफ लगे घने और बुजुर्ग नीम, इमली और जामुन के पेड़ों के पीछे खड़े बंगलों के कुछ हिस्से दिखाई दे रहे हैं। इन्हीं में से एक बंगले के एक छोटे से हिस्से में सरदार वल्लभ भाई पटेल रहा करते थे। सरदार पटेल के घर का पता था 1, औरंगजेब रोड। वे 1946 में दिल्ली में शिफ्ट हो गए थे।
पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरपरस्ती में बनी अंतरिम सरकार में गृह और सूचना मंत्रालय को देख रहे थे सरदार पटेल। सरदार पटेल ने सरकारी आवास नहीं लिया था। वे 1, एपीजे अब्दुल कलाम रोड पर स्थित बंगले के एक हिस्से में रहने लगे। यह निजी बंगला था बनवारी लाल का। वे सरदार पटेल के मित्र थे। उन्होंने ही सरदार पटेल से अपने बंगले में रहने की पेशकश की थी।
हैदराबाद रियासत में पुलिस एक्शन
सरदार पटेल ने इसी बंगले में रहते हुए देश को आजादी मिलने के बाद 562 रियासतों का भारत में विलय करवाया। यहां पर ही रहते हुए उन्होंने हैदराबाद रियासत में पुलिस एक्शन की रणनीति अपने सलाहकारों के साथ मिलकर बनाई थी। सरदार पटेल के हैदराबाद रियासत में पुलिस कार्रवाई को ‘ऑपरेशन पोलो’ के नाम से जाना जाता है। यह 13 सितंबर, 1948 को सुबह चार बजे शुरू हुआ। इस एक्शन के बाद हैदराबाद का भारत में विलय हो गया था। सरदार पटेल के साथ दिल्ली में उनकी पुत्री मणिबेन पटेल भी रहती थीं।
लगाओ शिलापट्ट सरदार के बंगले पर
अफसोस कि आजाद भारत की इतनी बुलंद शख्सियत के घर के बाहर कोई शिलापट्ट लगाने की किसी ने कोशिश नहीं की ताकि देश की युवा पीढ़ी को पता चलता रहे कि आजाद भारत के इतिहास की कई अहम घटनाओं का साक्षी है सरदार पटेल का दिल्ली का घर। सरदार पटेल रहते तो थे बनवारी लाल के घर में, पर उन्होंने अपने उपयोग के लिए बहुत छोटे से हिस्से को लिया था। उनका जीवन किसी साधु की तरह का था।
पंडित नेहरू के नेतृत्व में जब देश में 1946 में अंतरिम सरकार और 1947 में आजाद भारत की पहली सरकार बनी तो डॉ राजेन्द्र प्रसाद रोड राजेन्द्र प्रसाद रोड (पहले क्वीन विक्टोरिया रोड), सी. राजागोपालाचारी राजाजी मार्ग (पहले हेस्टिंग रोड), बाबू जगजीवनराम कृष्ण मेनन मार्ग (पहले किंग जॉर्ज एवेन्यू) और प्रधानमंत्री नेहरू मोतीलाल नेहरू मार्ग (पहले यार्क रोड) पर स्थित सरकारी बंगलों में रहा करते थे। सरदार पटेल ने अपने लिए बड़ा बंगला नहीं लिया था।
क्यों नहीं बना सरदार पटेल का स्मारक?
सरदार पटेल की 15 दिसंबर,1950 को मुंबई में मृत्यु के बाद सरकार उनके बंगले को अधिगृहीत करना चाहती थी। सरकार वहां पर सरदार पटेल का स्मारक बनाना चाहती थी। बनवारी लाल के परिवार को यह नामंजूर था। अब भी उस 1 एपीजे अब्दुल कलाम रोड पर बनवारी लाल का परिवार ही रहता है।
सरदार पटेल का निधन हुए तो जमाना गुजर गया है। जानकारों का कहना है बनवारी लाल का परिवार सरकार को अपना बंगला मार्केट रेट पर बेचने के लिए तैयार है ताकि यहां पर सरदार पटेल का स्मारक बनाया जा सके। हालांकि अब ‘सरकार ही इसके टेकओवर को लेकर अपने स्तर पर कोई बहुत उत्साही नहीं है।’
सच में यह हैरानी की बात है कि राजधानी में सरदार पटेल जैसी बुलंद शख्सियत का कोई कायदे का स्मारक नहीं है जबकि यहां पर रहते हुए उन्होंने बहुत से अहम फैसले लिए थे। यहां पर गांधी जी, पंडित नेहरू, बाबा साहेब अंबेडकर, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, बाबू जगजीवन राम आदि के स्मारक बन सकते थे, तो सरकार पटेल का स्मारक क्यों नहीं बनाया गया। यह अपने आप में सवाल है।
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सामाजिक कार्यकर्ता जितेन्द्र सिंह शंटी का कहना है, ‘अगर बिड़ला हाउस, जहाँ गांधीजीने अपने जीवन के अंतिम 144 दिन बिताए थे, और 26 अलीपुर रोड जहाँ डॉ. बी.आर. अंबेडकर 1956 में अपनी मृत्यु तक रहे थे, को स्मारक बनाया जा सकता है, तो सरदार पटेल के घर को क्यों स्मारक नहीं बनाया जा सकता है? देश की राजधानी में उनका भी स्मारक होना चाहिए।’
गांधी जी से मिलने वाले अंतिम शख्स रहे पटेल
सरदार पटेल उस मनहूस 30 जनवरी 1948 की तारीख को गांधी जी से मिलने वाले अंतिम शख्स थे। सरदार पटेल उस दिन गांधी जी से मिलने शाम करीब पौने पांच बजे से कुछ देर पहले 5, अलर्बुकर रोड (अब 5, तीस जनवरी मार्ग) पर पहुंचे। वे अपने आवास से सीधे बिड़ला हाउस पहुंचे थे। गांधी जी की सर्वधर्म प्रार्थना सभा का तब समय होने ही वाला था।
उस समय तक प्रार्थना स्थल पर लोग एकत्र होने शुरू हो गए थे। प्रार्थना सभा शाम को पांच बजे शुरू हो जाती थी। आकाशवाणी के लिए उनकी सभा की रिकॉर्डिंग करने वाले के.डी मदान भी पहुंच गए थे। मदान साहब बताते थे- ‘जब बिड़ला हाउस के भीतर से गांधी जी प्रार्थना सभा में शामिल होने के लिए निकले तब मेरी घड़ी के हिसाब से 5.16 मिनट का वक्त था। हालांकि ये कहा जाता है कि 5.17 बजे उन पर गोली चली। उस दिन बापू से मिलने सरदार पटेल आए थे कुछ जरुरी बात करने के लिए।’
खैर, ये रहस्य ही रहा कि सरदार पटेल उस दिन गांधी जी से किस विषय पर बात करने के लिए आए थे और उनके बीच बातचीत किसलिए लंबी चली थी।
बापू, पटेल और मणिबेन
महात्मा गांधी 2 अक्टूबर 1947 को अपने अंतिम जन्म दिन पर बिड़ला हाउस में थे। उन्होंने उस दिन को उपवास, प्रार्थना और अपने चरखे पर अधिक समय बिताकर मनाया। वे उस दिन बहुत निराश और असहाय थे। देश की तब की परिस्थितियों के कारण गांधी जी अकेले और अलग-थलग महसूस करने लगे थे। गांधीजी की निराशा स्पष्ट थी। उस दिन उनसे सरदार पटेल अपने 1 एपीजे अब्दुल कलाम रोड के आवास से मिलने के लिए आए थे।
गांधी जी ने सरदार पटेल से खुलकर बात की और उनसे पूछा, ‘मैंने ऐसा क्या अपराध किया है कि मुझे यह दुखद दिन देखने के लिए जीवित रहना पड़ रहा है?’ सरदार पटेल की बेटी मणिबेन पटेल ने लिखा है कहा, ‘हम वहां उत्साह के साथ गए थे; लेकिन हम भारी मन से लौट आये।’ जब तक सरदार पटेल जीवित रहे, मणिबेन ने उनकी निरंतर सेवा की। उनकी आशाओं और निराशाओं, दुखों और ख़ुशियों को बेहद क़रीब से देखा।
सरदार की मृत्यु के बाद मणिबेन राजनीति में सक्रिय हुईं और लगभग तीन दशकों तक एक सांसद के रूप में समाज सेवा करती रहीं। इस दौरान गांधी जी-सरदार पटेल से मिली सादगी के संस्कारों का आजीवन पालन किया।
मेटकॉफ हाउस में लौह पुरुष
सरदार पटेल के दिल्ली के घर से राजधानी के सिविल लाइंस पर स्थित मेटकॉफ हाउस की दूरी कराब 15 किलोमीटर तो होगी। सरदार पटेल ने इधर ही 21 अप्रैल, 1947 को स्वतंत्र होने जा रहे भारत के नौकरशाहों को सुराज के महत्व पर संबोधित किया था। अपने भाषण में उन्होंने सिविल सेवकों को भारत का स्टील फ्रेम कहा। इसका मतलब यह था कि सरकार के विभिन्न स्तरों पर कार्यरत सिविल सेवक देश की प्रशासनिक व्यवस्था के सहायक स्तंभों के रूप में कार्य करते हैं।
पंजाब कैडर के 1934 बैच के आईसीएस अफसर बदरुद्दीन अहमद ने 1998 में इस लेखक को अपने साउथ दिल्ली के वेस्ट एंड स्थित बंगले में बताया था कि सरदार पटेल दफ्तर के बाद सरकारी अफसरों के साथ अपने आवास में मिलते थे। सरदार पटेल के घर के दरवाजे हर इंसान के लिए हमेशा खुले रहते थे। वे ईमानदारी की मिसाल थे। उनके पास खुद का मकान भी नहीं था। उनका जब निधन हुआ, तब उनके बैंक खाते में सिर्फ 260 रुपए ही थे।
दिल्ली में कब लगी पटेल की मूरत?
सरदार पटेल की ‘दुनिया की सबसे बड़ी’ मूर्ति भले ही गुजरात में हो पर लौह पुरुष की दिल्ली में आदमकद मूर्ति को स्थापित हुए 50 वर्ष से अधिक हो गए हैं। यह गुजरात वाली मूर्ति की तरह 600 फ़ीट ऊंची नहीं है, पर यह सुंदर प्रतिमा है। यह संसद मार्ग के पटेल चौक पर स्थापित है। इसके आगे से रोज बड़ी संख्या में दिल्ली वाले गुजरते हैं लेकिन इस प्रतिमा की सफाई नियमित रूप से नहीं होती। हालांकि यह जिम्मेदारी तो नई दिल्ली नगर परिषद ( एनडीएमसी) की है।
नई दिल्ली क्षेत्र के सोशल वर्कर प्रीतम धालीवाल कहते हैं कि कायदे से महापुरुषों की प्रतिमाओं की नियमित सफाई होनी चाहिए। पर इन्हें तभी देखा जाता है जब इन महापुरुषों की जन्मशती या पुण्यतिथि मनाई जा रही होती है। प्रीतम धारीवाल कहते हैं कि सरदार पटेल की एक मूरत 1 एपीजे अब्दुल कलाम रोड के बाहर भी लगनी चाहिए।
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