नई दिल्ली: विराट कोहली ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास का ऐलान कर दिया है। वे करीब 12 सालों तक भारतीय क्रिकेट में आई 'सबसे बड़ी कमी' को पूरा करते रहे। यहां 'सबसे बड़ी कमी' का मतलब सचिन तेंदुलकर से है। 16 नवंबर, 2013...ये आखिरी दिन था जब 24 साल तक भारत के लिए इंटरनेशनल क्रिकेट खेलने के बाद सचिन तेंदुलकर टीम इंडिया के लिए आखिर बार मैदान में उतरे। इसके बाद फैंस की नजरें हमेशा कोहली पर टिकी रही।
123 टेस्ट मैच, 210 पारियां, 9230 रन, 30 शतक और कई मैच जीतने वाले बेहतरीन प्रदर्शनों ने साबित किया कि कोहली कैसे धीरे-धीरे भारतीय बल्लेबाजी की आत्मा और रीढ़ बन गए थे। सफर आसान नहीं था लेकिन कोहली ने खुद को कई मौकों पर साबित किया। कोहली के बारे में एक बार ये तक कहा जाने लगा था कि वे सचिन के 100 इंटरनेशनल शतकों का रिकॉर्ड तोड़ देंगे।
कोहली की छवि एक अजेय खिलाड़ी की तरह बनती जा रही थी। लगभग हर मैच में उनके बल्ले से रन निकलते थे। हालांकि, पिछले तीन-चार सालों वे कुछ मौकों पर संघर्ष करते नजर आए और यही से जो तेजी उनकी रनों में थी, वो कम होने लगी थी। बहरहाल, कोहली अब तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और सुनील गावस्कर के बाद टेस्ट क्रिकेट में भारत के चौथे सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी के रूप में अलविदा कह रहे हैं। कोहली अपने संन्यास के साथ टेस्ट क्रिकेट में टीम इंडिया के लिए एक बड़ा खालीपन भी छोड़े जा रहे हैं।
सचिन, द्रविड़ और गावस्कर से अलग कोहली
कोहली भारत के टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में जाहिर तौर पर महानतम खिलाड़ियों की सूची में शामिल हैं। टॉप-3 की भी बात करें तो कोहली बस एक पायदान नीचे रह गए। इस स्तर पर देखें तो बल्लेबाजी तकनीक, अपने खेल से दर्शकों को स्तब्ध कर देना, दृढ़ता आदि ये सब इन बल्लेबाजों में लगभग एक जैसा नजर आएगा लेकिन पिच पर इन सभी चार खिलाड़ियों के व्यक्तित्व और बल्लेबाजी की शैली साफ तौर पर अंतर को दिखाती है।
गावस्कर बेहद शांत नजर आते थे। ऐसे ही द्रविड़ अकल्पनीय रूप से जुझारूपन लिए नजर आते थे। तेंदुलकर की बल्लेबाजी पिच पर एक गजब की निपुणता का अहसास कराती रही। इन सबसे इतर कोहली शुद्ध रूप से पिच पर जबर्दस्त ऊर्जा से लबरेज नजर आए। उनके हर रन में मानो एक जिद नजर आती थी। यही उनकी काबिलियत रही। वे अपने हावभाव से दर्शकों में जोश भरने में कामयाब रहते। कोई दिखावा नहीं, कोई मुखौटा नहीं...मैच किस स्थिति में है, वो कोहली के चेहरे से पढ़ा जा सकता था।
कोहली ने एक बार स्काई स्पोर्ट्स के साथ इंटरव्यू में नासिर हुसैन से अपनी बल्लेबाजी के बारे में बात करते हुए कहा भी था, 'क्रिकेटर और खिलाड़ी होने के नाते हम खुद को सीमित रखते हैं, यह जाने बिना कि हम कितना कर सकते हैं। मैंने अपने जीवन में कभी कोई सीमा नहीं रखी। अगर मैं तीन पारियों में तीन शतक बना लेता हूं, तो चौथी पारी मेरे लिए एक और मौका होती है।'
कोहली के क्रिकेट करियर के सबसे बेहतरीन साल
साल 2014 के अंत से 2019 तक का दौर कोहली के लिए सबसे खास माना जा सकता है। ये पूर्ण रूप से कोहली का समय था। इस दौरान मात्र 90 पारियों में उन्होंने 5347 रन बनाए, जो उनके कुल टेस्ट स्कोर (9230) के आधे से भी ज्यादा थे। उन्होंने इस दौरान अपने कुल 30 शतकों में से 21 इन्हीं सालों में बनाए और 63.65 की औसत रखी।
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कोहली के लिए ये वो समय था जब उनके बल्ले से शतक हर जगह और हर परिस्थिति में निकले। भले ही सामने स्पिन गेंदबाजी हो या तेज गेंदबाज। फिर चाहे सामने इंग्लैंड के जेम्स एंडरसन हों या फिर ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाज, कोहली जिस भी देश में गए, वहां उनका दमदार प्रदर्शन दिखा।
ये पांच साल भारतीय क्रिकेट के सबसे शानदार सालों में गिना जाएगा। इसी दौर में भारत ने ऑस्ट्रेलिया में पहली सीरीज जीती। ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका उनके पसंदीदा विदेशी स्थान रहे, जहां से खूब रन निकले। दक्षिण अफ्रीका में उनका औसत 49.50 है जो तेंदुलकर और द्रविड़ से भी बेहतर है। कोहली अभी 7 शतकों के साथ ऑस्ट्रेलिया में सबसे ज्यादा शतक लगाने वाले भारतीय हैं। दूसरे स्थान पर तेंदुलकर (6 शतक) हैं।
विदेशी जमीन के आंकड़ों से इतर भारत की पिचों पर कोहली और दमदार नजर आते हैं। भारत में तेंदुलकर के 52.67 और द्रविड़ के 51.35 के मुकाबले कोहली का औसत 55.58 का रहा।
कोहली और तेंदुलकर...और कंधों पर उम्मीदों का भार
भारत के अब तक के क्रिकेट इतिहास में यह दो ऐसे खिलाड़ी रहे हैं, जिनके कंधों पर वाकई क्रिकेट फैंस की उम्मीदों का बड़ा भार रहा। हालांकि, इसमें भी अंतर है। तेंदुलकर पर क्रिकेट की दुनिया में एक लगातार और तेजी से विकास कर रहे और महत्वाकांक्षी क्रिकेट प्रेमियों का भार रहा। वहीं, कोहली के कंधे पर एक ऐसे देश के क्रिकेट प्रेमियों का बड़ा भार आया जो इस खेल की दुनिया में एक तरह से शक्तिशाली बन चुका है और इसके फैंस किसी भी हार पर कड़ाई से सवाल करते हैं। दिलचस्प है कि कोहली ने टेस्ट से उस समय संन्यास की घोषणा की जब वे इस प्रारूप में अपने 10,000 रन पूरा करने की दहलीज पर भी खड़े थे।
कोहली और कप्तानी
कोहली ने टेस्ट में 68 मैचों में कप्तानी भी की। कप्तान कोहली और हेड कोच रवि शास्त्री का यह दौर भारतीय टेस्ट क्रिकेट के इतिहास के सबसे बेहतरीन दौर में एक के तौर पर गिना जाता है। कोहली की कप्तानी में टीम इंडिया ने 68 टेस्ट मैचों में 40 मैच जीते। इसमें ओवरसीज में मिली बड़ी जीत भी शामिल है।
इस तरह कोहली की कप्तानी में भारत ने पहली बार ऑस्ट्रेलिया को उसकी ही धरती पर मात दी। टीम इंडिया ऑस्ट्रेलिया को उसके ही घर पर हराने वाली पहली एशियाई टीम बनी थी।
कोहली टेस्ट क्रिकेट के इतिहास के चौथे सबसे सफल कप्तान हैं। उनसे ज्यादा मैच ग्रीम स्मिथ (53 जीत), रिकी पोंटिंग (48 जीत), और स्टीव वॉ (41 जीत) ने मैच जीते हैं।
कोहली ने 2011 में वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू किया था। उस साल के अंत में ऑस्ट्रेलिया दौरे के बाद उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम में अपनी जगह पक्की कर ली थी। अपने संन्यास के समय वह शतकों के मामले में भारत के चौथे सबसे सफल टेस्ट बल्लेबाज हैं। उनसे ज्यादा टेस्ट शतक केवल सचिन तेंदुलकर (51 शतक), राहुल द्रविड़ (36), और सुनील गावस्कर (34 शतक) ने लगाए हैं।
हालांकि, जब बात दोहरे शतक की आती है तो विराट ने भारत के किसी भी बल्लेबाज से अधिक सात डबल सेंचुरी लगाई है। एक कप्तान के तौर पर टेस्ट शतक लगाने के मामले में भी विराट कोहली सबसे आगे हैं। उन्होंने कप्तान रहते हुए 20 टेस्ट शतक लगाए। कोहली ने पिछले साल टी20 विश्व कप जीतने के बाद सबसे छोटे प्रारूप को भी अलविदा कह दिया था।
(समाचार एजेंसी IANS के इनपुट के साथ)
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