दिल्ली: आईसीसी टी20 वर्ल्ड कप से ठीक पहले दक्षिण अफ्रीकी टीम में अश्वेत खिलाड़ियों के लिए कोटा को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ी है। टीम का चयन हालांकि हो गया है लेकिन सवाल टी20 वर्ल्ड कप के लिए सिर्फ एक अफ्रीकी काले खिलाड़ी को चुने जाने पर उठ रहे हैं। इन सबके बीच दक्षिण अफ्रीका के दिग्गज खिलाड़ी रहे एबी डिविलियर्स ने टूर्नामेंट से पहले इस तरह की बहस को शर्मनाक बताया है और कहा है कि इस तरह की बातें उनके लिए चौंकाने वाली नहीं हैं।
डिविलियर्स ने 2018 में इंटरनेशनल क्रिकेट से संन्यास ले लिया था। उन्होंने कहा कि उन्हें कम से कम इस बात की खुशी है कि वे इस बार केवल दर्शक हैं। डिविलियर्स ने समाचार एजेंसी पीटीआई के साथ एक इंटरव्यू में कहा कि यह शर्मनाक है कि टूर्नामेंट पर ध्यान देने की बजाय कुछ और बातें हो रही हैं। उन्होंने कहा, ‘मेरा मतलब है कि यह नया नहीं है। यह बस शर्मनाक है। अच्छा है कि इस बार मुझे इन सबसे कोई लेना-देना नहीं है। मैं केवल एक दर्शक हूं।’
दक्षिण अफ्रीका की टीम में केवल एक अफ्रीकी काला खिलाड़ी
1 जून से अमेरिका और वेस्टइंडीज में होने वाले टी20 वर्ल्ड कप के लिए दक्षिण अफ्रीकी टीम में सिर्फ एक अफ्रीकी काले खिलाड़ी को चुना गया है। टूर्नामेंट में दक्षिण अफ्रीका अपने अभियान का आगाज 8 जून को नीदरलैंड्स के खिलाफ मैच से करेगा। दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट में 2016 में शुरू की गई नीति के अनुसार एक सीजन के दौरान दक्षिण अफ्रीका की एकादश में छह अश्वेत खिलाड़ियों का होना जरूरी है। इनमें दो काले अफ्रीकी समुदाय से भी होने चाहिए।
इस बार टी20 विश्व कप टीम में कगिसो रबादा एकमात्र काले अफ्रीकी शामिल हैं। जाहिर है यह नीति का उल्लंघन है। वैसे, एक अन्य काले-अफ्रीकी, लुंगी एंगिडी को रिजर्व में रखा गया है जो टीम के साथ दौरा करेंगे। टीम में शामिल अन्य रंग के या अश्वेत खिलाड़ियों में रीजा हेंड्रिक्स, ब्योर्न फोर्टुइन, केशव महाराज, तबरेज शम्सी और ओटनील बार्टमैन शामिल हैं।
डिविलियर्स ने कहा कि विश्व कप से ठीक पहले दक्षिण अफ्रीकी टीम के साथ हमेशा की तरह स्वदेश में विवादास्पद बातें होती हैं। उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि यह एक अच्छी टीम है। लुंगी के लिए निराशा की बात है…उन्होंने थोड़ी फॉर्म खो दी, कुछ चोटें लगीं। अन्यथा, वह शायद टीम में होते और कोई विवाद नहीं होता।’
गौरतलब है कि फिलहाल क्रिकेट दक्षिण अफ्रीका में चयनकर्ताओं की कोई समिति नहीं है और टीम का चयन मुख्य कोच शुकरी कॉनराड और रॉब वाल्टर द्वारा किया जाता है। दरअसल, टीम के चयन के ठीक बाद ही दक्षिण अफ्रीका के पूर्व खेल मंत्री फिकिले मबालुला और पूर्व सीएसए और आईसीसी अध्यक्ष रे माली ने भी टीम की संरचना पर सवाल उठाया था।
अफ्रीकी टीम में कोटा के पीछे की क्या है कहानी?
दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रीय क्रिकेट टीम में मुख्य रूप से 2016 में कोटा सिस्टम शुरू किया गया था, जिसे वहां ‘टार्गेट्स’ कहते हैं। इसका मतलब ये हुआ कि टीम में सभी नस्ल और रंग के खिलाड़ियों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए। इसके लिए दक्षिण अफ्रीका की क्रिकेट बोर्ड ने कोटा सिस्टम बनाया।
यह समझने के लिए कि दक्षिण अफ्रीका में कोटा की जरूरत क्यों पड़ी, सबसे पहले रंगभेद के दौर की कहानी जाननी होगी। इसका कुछ असर अभी भी दक्षिण अफ्रीका में दिखता हैं। 1913 में तब की दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने काले लोगों के लिए जमीन खरीदना गैरकानूनी बना दिया था, जब तक कि वे किसी गोरे मालिक के नौकर न हों।
साल 1948 के बाद कई नस्ल संबंधी कानून पारित किए गए। इनमें ये निर्धारित किया गया कि काले दक्षिण अफ्रीकी कहां रहेंगे, कहां पढ़ाई और काम करेंगे। केवल श्वेत लोगों को मतदान का अधिकार दिया गया और अंतरजातीय संबंधों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसके बाद 1960 और 1963 के बीच, करीब 35 लाख अश्वेत लोगों को जबरन उनके घरों से निकाल दिया गया और अलग-अलग मोहल्लों में डाल दिया गया। रंगभेद कानूनों का विरोध करने के लिए अनगिनत काले दक्षिण अफ्रीकी लोगों को जेल में डाल दिया गया। कई लोगों को मार डाला गया।
खेलों पर रंगभेद का असर
दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद से जुड़े कानून और सत्ता के संरक्षण का असर खेलों पर भी पड़ा। 1956 में तब सत्ता में रही श्वेतों के वर्चस्व वाली ‘नेशनल पार्टी’ पहली खेल नीति लेकर आई। यह घोषणा की गई कि केवल गोरे ही दक्षिण अफ्रीका की राष्ट्रीय टीम का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। रंगभेद कानून इतने कड़े थे कि 1960 में न्यूजीलैंड के माओरी खिलाड़ियों (Maori) को दक्षिण अफ्रीका में खेलने की अनुमति नहीं थी। इस तरह के नस्लवाद के बाद दक्षिण अफ्रीका को ओलंपिक, रग्बी, फीफा और क्रिकेट विश्व कप जैसे प्रमुख खेल आयोजनों से प्रतिबंधित कर दिया गया था।
दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद समाप्त होने के बाद टीमों पर लगे प्रतिबंध हटा लिये गए थे। हालांकि, फिर भी दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट टीम पर इसका असर लंबे समय तक नजर आता रहा। इसे इस बात से समझा जा सकता है कि 1991 में इंटरनेशनल क्रिकेट में दक्षिण अफ्रीकी टीम की वापसी हुई। उसके बाद से 2013 तक केवल पांच काले अफ्रीकी खिलाड़ी नेशनल टीम में खेल सके। इनमें भी मखाया एंटिनी एकमात्र खिलाड़ी रहे जो 100 टेस्ट से ज्यादा खेले। जबकि बाकी चार कुल मिलाकर 17 मैच ही खेल सके।
रंगभेद प्रणाली के कारण होने वाले नस्लीय भेदभाव को दूर करने के लिए दक्षिण अफ्रीका ने सबसे पहले 1998 में एक कोटा प्रणाली शुरू की। तब शर्त यह थी कि प्रत्येक क्षेत्रीय टीम में चार अश्वेत खिलाड़ियों को मैदान में उतारना था। इनमें काले अफ्रीती, मिश्रित नस्ल के लोग और एशियाई मूल के लोग भी शामिल थे। इसे 2007 में आधिकारिक तौर पर हटा दिया गया था। बाद में 2013 में फिर से कोटा सिस्टम क्षेत्रीय क्रिकेट के लिए लाया गया।
जब मखाया एंटिनी ने सुनाया था अपना किस्सा
दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत क्रिकेटर माने जाने वाले मखाया एंटिनी को भी टीम में रंगभेद की तरह ही नस्लवाद का सामना करना पड़ा था। उन्होंने साउथ अफ्रीकन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन के साथ एक इंटरव्यू में बताया था, ‘मैं उस समय हमेशा अकेला रहता था। रात के खाने के लिए जाने के लिए भी कोई मेरा दरवाजा नहीं खटखटाता था। टीम के साथी मेरे सामने ही कुछ योजनाएं बनाते थे लेकिन मुझे इससे बाहर रखते थे। अंदर जब नाश्ते के लिए जाता था तो कोई भी मेरे साथ बैठने नहीं आता था।’
बता दें कि एंटिनी ने 1998 में दक्षिण अफ्रीका के लिए डेब्यू किया था और 101 टेस्ट मैचों में उन्होंने 390 विकेट झटके। वनडे में भी उनके नाम 173 मैचों में 266 विकेट हैं।