हमीदा बानो: 'जो हराएगा, उससे शादी कर लूंगी', भारत की पहली महिला पहलवान...जिसने पुरुषों के अखाड़े में दिखाया अपना दम

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Hamida Bano: India's 'first' female wrestler

हमीदा बानो: भारत की 'पहली' महिला पहलवान (फोटो- गूगल डूडल)

दिनभर में 5 से 6 लीटर दूध, 2.8 लीटर सूप, 1.8 लीटर फलों का रस, लगभग 1 किलो मटन और बादाम, आधा किलो मक्खन, 6 अंडे, दो बड़ी रोटियां और दो प्लेट बिरयानी...ये हमीदा बानो का दिन भर का डायट था, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे भारत की पहली महिला पहलवान थीं। 1940 और 1950 के दशक में हमीदा बानो उस समय कुश्ती की दुनिया में उतरीं जब भारत में महिलाओं के लिए ऐसी कल्पना भी करना मुश्किल था।

लड़ने के लिए महिला पहलवान तो मिलते नहीं थे तो वे पुरुष पहलवानों को ही टक्कर देती थीं और उनकी जीत की कहानियां देश-दुनिया के अखबारों में सुर्खियां बनती थीं। करीब 108 किलोग्राम और 5 फीट 3 इंच (1.6 मीटर) लंबी हमीदा बानो को लेकर एक बात उस समय खूब प्रचलित थीं। वे अपने प्रतिद्वंद्वियों को ऑफर देती थीं कि 'मुझे हराओ तो मैं तुमसे शादी कर लूंगी।' उस दौर में कुश्ती में पुरुषों का वर्चस्व था लेकिन हमीदा बानो के शानदार कारनामों और व्यक्तित्व ने उन्हें दुनिया भर में सुर्खियां दिलाई।

हमीदा देती थीं ऑफर- 'मुझे हराओ और शादी कर लो'

हमीदा बानो ने तब के अखबरों में छपी रिपोर्ट के अनुसार फरवरी 1954 में एक कुश्ती के मुकाबले से पहले पुरुष पहलवानों को ऑफर दिया अगर उन्हें हरा दिया गया तो वे उस पहलवान से शादी कर लेंगी। इस ऐलान के बाद उन्होंने ने दो पुरुष कुश्ती चैंपियनों को हराया। इनमें एक पंजाब के पटियाला से और दूसरे पश्चिम बंगाल के कोलकाता (तब कलकत्ता) से थे। इसके बाद इसी साल मई में वह अपनी तीसरी फाइट के लिए गुजरात के वडोदरा (तब बड़ौदा) पहुंचीं।

वडोदरा में तब हमीदा बानो के आने की खूब चर्चा थी। गाड़ियों पर पोस्टर-बैनर से खूब प्रचार हुआ। बानो को यहां छोटे गामा पहलवान से भिड़ना था। हालांकि छोटे गामा पहलवान ने फाइट के शुरू होने के कुछ समय पहले ही यह कहते हुए अखाड़े में उतरने से इनकार कर दिया कि वे एक महिला से नहीं लड़ेंगे।

इसके बाद बानो अपने अगले प्रतिद्वंद्वी बाबा पहलवान से लड़ीं। यह बाउट एक मिनट 34 मिनट चली और नतीजा वही निकला यानी बाबा पहलवान बानो से शादी का मौका गंवा चुके थे। ये 1954 की बात है। रिपोर्ट्स बताते हैं कि इस समय तक हमीदा बानो कुश्ती के 300 मुकाबले जीत चुकी थीं।

गूंगा पहलवान से फाइट भी हो गई थी रद्द

हमीदा बानो को लेकर 1944 की एक कहानी भी दिलचस्प है। बॉम्बे क्रॉनिकल अखबार की तब की एक रिपोर्ट के अनुसार बानो और पहलवान गूंगा पहलवान के शहर में मुकाबला होना था। इसे देखने के लिए लगभग 20,000 लोग स्टेडियम में आए थे। हालांकि आखिरी मिनटों मे गूंगा पहलवान की कुछ 'असंभव' सी मांगों के बाद इस फाइट को रद्द कर दिया गया। गूंगा पहलवान ने कथित तौर पर मैच के लिए और अधिक पैसे और समय की मांग की थी। मुकाबला रद्द होने की खबर जैसे ही लोगों में पहुंची, वहां बैठे दर्शक बेकाबू हो गए। खूब हंगामा हुआ और भीड़ ने स्टेडियम में जमकर तोड़फोड़ की।

मिर्जापुर से शुरू हुआ था हमीदा बानो का सफर, अलीगढ़ में कुश्ती की ट्रेनिंग

रॉयटर्स की तब की एक रिपोर्ट के अनुसार हमीदा बानो की दिनचर्या में 9 घंटे सोना और छह घंटे कुश्ती के लिए कड़ी ट्रेनिंग करना शामिल था। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में जन्मीं बानो के लिए कुश्ती के शौक को वहां रूढ़िवादी समाज के बीच पूरा करना मुश्किल था। ऐसे में वे बाद में अलीगढ़ आ गई और वहीं एक स्थानीय पहलवान सलाम पहलवान से ट्रेनिंग लेने लगीं।

1987 की अपनी एक किताब में महेश्वर दयाल लिखते हैं कि बानो की लोकप्रियता कुछ दिनों में ही बढ़ने लगी और यूपी से लेकर पंजाब तक उनकी बात होने लगी थी। वे लिखते हैं, 'वह पुरुष पहलवानों की तरह लड़ा करती थीं। हालांकि, कुछ लोग कहते थे कि हमीदा पहलवान और पुरुष पहलवान के बीच मुकाबले से पहले ही एक गुप्त समझौता हो जाता था और प्रतिद्वंद्वी जानबूझकर हारता था।'

हमीदा बानो: महिला के अखाड़े में उतरने पर विरोध भी झेलना पड़ा

बानो को उन लोगों से भी चुनौतियों का सामना करना पड़ा जो उनके बतौर महिला होकर अखाड़े में उतरने पर नाराज थे। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र के पुणे शहर में पुरुष पहलवान रामचन्द्र सालुंके के साथ बानो का मुकाबला रद्द करना पड़ा क्योंकि स्थानीय कुश्ती महासंघ ने इस पर आपत्ति जताई। एक बार तो बानो पर पत्थरबाजी तक हुई। उन्होंने एक मुकाबले में एक पुरुष प्रतिद्वंद्वी को हरा दिया था। यह बात वहां मैच देख रहे कुछ लोगों को इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने हमीदा बानो पर पत्थर बरसाने शुरू कर दिया। अखबार के अनुसार हंगामा इतना बढ़ गया कि पुलिस को हस्तक्षेप करते हुए भीड़ को नियंत्रित करना पड़ा।

महाराष्ट्र में अघोषित बैन...मोरारजी देसाई से की शिकायत

बाद के सालों में यह भी कहा जाता है कि बानो के कुश्ती मैचों पर महाराष्ट्र में अघोषित बैन जैसा लगा दिया गया था। बानो ने तब एक चिट्ठी लिखकर इसकी शिकायत उस समय महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे मोरारजी देसाई से भी की। इस पर देसाई ने जवाब दिया कि मुकाबलों पर उनके जेंडर के आधार पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है बल्कि ऐसा कई प्रमोटरों के बारे में शिकायत मिलने की वजह से किया गया है जो बानो को चुनौती देने के लिए 'डमी' पहलवान उतार रहे थे।

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार 1954 में बानो ने मुंबई (तब बॉम्बे) में एक मुकाबले में रूस की 'फीमेल बीयर' कही जाने वाली वेरा चिस्टिलिन (Vera Chistilin) को भी एक मिनट से भी कम समय में हरा दिया था। उसी साल उन्होंने घोषणा की कि वह अब यूरोप भी जाकर वहां के पहलवानों से लड़ेंगी। हालांकि इतनी जबरदस्त लोकप्रियता के बीच अचानक हमीदा बानो कुश्ती के अखाड़े से दूर हो गईं।

गुमनामी में जब अचानक चली गईं हमीदा बानो

हमीदा बानो के परिवार से जुड़े और उनके करीब रहे लोग बताते हैं कि उनके यूरोप जाने की बात के बाद इस महिला पहलवान की जिंदगी एक अलग मोड़ लेने लगी। इस समय तक बानो और सलाम पहलवान (उनके कोच) अलीगढ़, मुंबई और कल्याण (मुंबई के पास) की यात्रा नियमित तौर पर साथ करने लगे थे। कल्याण में हमीदा बानो और सलाम पहलवान ने एक डेयरी बिजनेस भी खोल लिया था।

बीबीसी के अनुसार बानो के पोते फिरोज शेख (शेख के पिता बानो के दत्तक पुत्र थे) बताते हैं कि बानो के कोच सलाम पहलवान को उनके यूरोप जाने का विचार पसंद नहीं आया। वहीं, सलाम पहलवान की बेटी सहारा बताती हैं कि उनके पिता ने बानो से शादी कर ली थी। सहारा बानो को अपनी सौतेली मां मानती थीं। हालांकि शेख (बानो के पोते), जो हमीदा बानो के 1986 में निधन तक उनके साथ रहे, वे इससे इनकार करते हैं। वे कहते हैं कि बानो निश्चित तौर पर सलाम पहलवान के साथ रहती थीं लेकिन दोनों ने कभी शादी नहीं की।

शेख यह भी दावा करते हैं कि यूरोप जाने से रोकने के लिए सलाम पहलवान ने बानो के साथ मारपीट की। वे छड़ी से मारते थे और बानो के हाथ भी तोड़ दिए थे। शेख के इन आरोपों की तस्दीक बानो के पड़ोसी रहे राहिल खान भी करते हैं। राहिल खान कहते हैं कि इस मारपीट में उनके पैड़ भी टूट दिए गए थे।

सलाम पहलवान की बेटी हालांकि कहती हैं कि दोनों के रिश्ते सौहार्दपूर्ण थे। सलाम पहलवान बाद में अलीगढ़ लौट गए थे जबकि बानो कल्याण में ही रह गई थीं। बीच में बानो एक बार सलाम पहलवान से मिलने अलीगढ़ भी गईं जब वे काफी बीमार थे। बानो ने बाद के कुछ साल कल्याण में ही दूध बेचकर और कुछ कमरे आदि किराये पर देकर अपनी दिनचर्या चलाई। बाद में पैसे की जब तंगी हुई तो उन्होंने सड़क किनारे खाने का सामान वगैरह भी बेचा। साल 1986 में बानो का निधन हो गया।

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