एलन मस्क के स्पेसएक्स के स्टारशिप रॉकेट से जुड़े एक सफल परीक्षण ने इतिहास रच दिया। इस टेस्ट में स्टारशिप रॉकेट को उसी लॉन्च पैड पर सुरक्षित उतार लिया गया, जहां से उसने उड़ान भरी थी। यह एक अनोखा कारनामा है जिसे इससे पहले कोई कंपनी या स्पेस एजेंसी नहीं कर सकी थी। स्टारशिप रॉकेट ने अपने पांचवें उड़ान परीक्षण के दौरान उतरते समय अपनी गति को धीमा किया और लॉन्च टावर के ठीक बीच में जाकर बैठ गया।
स्पेसएक्स के इस सफल परीक्षण को पूरी तरह दोबारा इस्तेमाल किए जा सकने वाले रॉकेट को तैयार करने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। इससे भविष्य में स्पेस मिशन और आसान होंगे और इसके भारी-भरकम खर्चों
में कमी करने में भी मदद मिलेगी।
वैज्ञानिक भी नहीं कर पा रहे थे भरोसा
स्पेसएक्स के इंजीनियरों ने बूस्टर (रॉकेट) के सुरक्षित रूप से उतरने पर कहा, ‘यह एक ऐसा दिन है जो इतिहास की किताबों में दर्ज होगा।’
इस टेस्ट के वीडियो भी सामने आए हैं और हर कोई देख कर चकित है। परीक्षण के दौरान सुपर हेवी बूस्टर के नाम से मशहूर रॉकेट का निचला हिस्से पहले प्रयास में जितनी सफाई से लॉन्च टावर पर उतार, इसका अंदाजा कंपनी
से जुड़े वैज्ञानिकों को भी नहीं था। लॉन्च से पहले स्पेसएक्स टीम ने कहा था कि अगर बूस्टर मैक्सिको की खाड़ी में गिर जाता तो भी उन्हें कोई हैरानी नहीं होगी।
The tower has caught the rocket!!
pic.twitter.com/CPXsHJBdUh— Elon Musk (@elonmusk) October 13, 2024
खास बात ये है कि इससे पहले इसी परीक्षण से जुड़े पहले उड़ान के समय रॉकेट लॉन्चिंग के कुछ ही मिनट बाद फट गया था। उस असफलता के महज 18 महीनों बाद ये बड़ी सफलता वैज्ञानिकों को हाथ लगी है।
स्पेसएक्स का कहना है कि वे विफलताएं भी इस विकास की योजना का हिस्सा साबित हुईं क्योंकि विफलता की आशंका के बीच जल्दी-जल्दी लॉन्चिंग से जितना संभव हो सका, उतना डेटा एकत्र किया जा सका और इसका नतीजा है कि कंपनी अपने प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में ज्यादा तेजी से अपना सिस्टम विकसित कर सकी।
कैसे मिली ये बड़ी सफलता?
कंपनी ने बताया था कि इस प्रयास के लिए हजारों मानदंडों को पूरा करना पड़ा। जैसे ही सुपर हेवी बूस्टर ने वायुमंडल में फिर से प्रवेश किया, इसकी गति तेजी से कम होने की प्रक्रिया शुरू हुई। यह कुछ हजार मील प्रति घंटे से अधिक धीमी हो गई।
इसके बाद जब यह लैंडिंग टावर के पास पहुंचा, तो इसके रैप्टर इंजन ने इसकी लैंडिंग को नियंत्रित करने के लिए काम शुरू किया। यह लैंडिंग टावर 146 मीटर ऊंचा (480 फीट) था। इस समय तक ऐसा लगने लगा था कि रॉकेट जैसे हवा में तैर रहा है। इसके नीचे से नारंगी लपटों ने बूस्टर को घेर लिया और यह धीरे-धीरे लैंडिंग टावर में समा गया और पूरी तरह से सही और निर्धारित स्थान पर बैठ गया।
इसी रॉकेट का अंतरिक्ष यान वाला हिस्सा पहले ही अलग हो गया था और अपने स्वतंत्र इंजन की बदौलत यह 40 मिनट बाद हिंद महासागर में गिरा। कुल मिलाकर यही वह मॉड्यूल है, जिसे तैयार करने की कोशिश हो रही है। इसे भविष्य के स्पेस अभियानों में अंतरिक्ष यात्रियों के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा।